Bihar News: सीतामढ़ी जिले के उज्ज्वल कुमार उपकर ने बीपीएससी की 69वीं परीक्षा में टॉप किया है, वे पहले से ही गोरौल (वैशाली) में प्रखंड कल्याण पदाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं, उनका सपना प्रशासनिक सेवा में योगदान देना था. लगातार मेहनत के बाद उन्हें यह सफलता मिली है, उन्होंने हिंदी माध्यम से परीक्षा दी थी. उज्ज्वल का कहना है कि डीएसपी बनकर वे समाज की बेहतर सेवा कर पाएंगे.
घर में खुशी की लहर
उन्होंने बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की 69वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया है. यह खबर उनके घर और पूरे जिले में आग की तरह फैल गई. परिवार और शुभचिंतकों ने उनके घर जाकर बधाई दी. उज्ज्वल इस समय वैशाली जिले के गोरौल में प्रखंड कल्याण पदाधिकारी के रूप में काम कर रहे हैं, उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से यह साबित कर दिया है कि लगन और मेहनत से कुछ भी असंभव नहीं है.
सीतामढ़ी के रहने वाले हैं उज्ज्वल
उज्ज्वल नानपुर प्रखंड के रायपुर गांव के रहने वाले हैं, उनके पिता सुबोध ठाकुर एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक हैं, जबकि मां गुड़िया कुमारी आंगनबाड़ी सेविका हैं, उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव में ही की. उन्होंने किसान कॉलेज, बरियारपुर से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने एनआईटी, उत्तराखंड से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. उज्ज्वल अपने 2 भाइयों और एक बहन में सबसे बड़े हैं, उन्होंने दिल्ली में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की.
हिंदी माध्यम से दी परीक्षा
उज्ज्वल ने हिंदी माध्यम से बीपीएससी की परीक्षा दी. इंजीनियरिंग के बाद उनका लक्ष्य प्रशासनिक सेवा में जाना था. इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने 67वीं बीपीएससी परीक्षा भी दी थी, जिसमें उन्हें 496वीं रैंक मिली थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी तैयारी जारी रखी. इस लगन और मेहनत का ही नतीजा है कि आज उन्होंने 69वीं बीपीएससी परीक्षा में टॉप किया है.
पहली रैंक की नहीं थी उम्मीद
उज्ज्वल सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक अपनी सरकारी नौकरी करते थे. इसके बाद रात 10 बजे से सुबह 2 बजे तक वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते थे, वे यूपीएससी की परीक्षा भी एक बार दे चुके हैं. उज्ज्वल ने बताया कि मुझे पता था कि रिजल्ट अच्छा होगा, लेकिन पहली रैंक की उम्मीद नहीं थी. वे पहले से ही सरकारी नौकरी में थे, फिर भी उन्होंने दोबारा परीक्षा क्यों दी, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि प्रखंड कल्याण पदाधिकारी के रूप में जनसेवा का दायरा सीमित था. डीएसपी बनने के बाद पूरे समाज की सेवा करने का मौका मिलेगा.
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