शिवम मिश्रा रायपुर/अम्बिकापुर। लॉकडाउन के दौरान पशु प्रेमियों की सक्रियता अनेक लोगों ने देखी, लेकिन आज हम ऐसे शख्स से परिचय कराने जा रहे हैं, जो लॉकडाउन से दशकों पहले बीते 25 सालों के लगातार गौ सेवा मंडल सरगुजा के नाम से सेवा कर रहे हैं. दिन हो चाहे रात, ठंड हो चाहे बरसात, बारहों महीने 24 घंटे अजय ताम्रकार सेवाभाव से बेजुबान चौपायों की मदद में लगे रहते हैं.

अजय ताम्रकार बताते हैं कि जब वे 20 साल थे, तो उन्हें गायों की स्थिति को देखकर बहुत खराब लगता था, उन्हें तब लगा कि सड़को पर लाचार पड़ी गायों की सेवा करनी चाहिए. तभी से उन्होंने अंबिकापुर में रहते हुए लगभग 3 जिलों में गौ सेवा की शुरुआत की. उनके इस कार्य को देखते हुए कई लोग गौ सेवा के अभियान के साथ जुड़े लाचार गायों की मेडिकल से लेकर सभी देखभाल के खर्च उठाते हैं.

अजय बताते है कि उनकी खुद की एक दोपहिया और चार पहिये की वर्कशॉप है, जिसमें काम करते-करते वह गौ सेवा भी करते हैं. दिनभर में उनके पास 4 से 5 मामले आते हैं. कई बार देर रात तक लोगों के कॉल आया करते हैं, देर रात गौ सेवा के लिए उनके साथ उनकी 10 साल की बच्ची और पत्नी भी जुट जाती हैं. गौ सेवा के लिए अजय कई बार ऐसी जगह जाना पड़ता है, जहां जाना खतरे से खाली नहीं होता. यहां तक उन्हें तैरना नहीं आने के बाद भी वे गौ रक्षा के लिए कई बार नदियों और कुएं में कूद चुके हैं.

वे बताते हैं कि रास्ते पर पड़ी लाचार गायों को देखकर लोग उन्हें कॉल करते हैं, वे उन गायों को अपने घर पर लाकर उनका इलाज करवाते हैं, जब गायें पूरी तरह स्वस्थ हो जाती है, तो उन्हें उनके मालिक या फिर आस-पास के गांव में किसी जरूरतमंद किसान को दे देते हैं. जिससे उनका भी घर चलता रहे, अर्थव्यवस्था बनी रहे. गौ सेवा के लिए जरूरत की सभी चीजें अजय ने खुद ही खरीद ली है, सभी सामान को एक साथ एक कार में रख कर हर वक़्त अपने साथ रखते हैं, पता नहीं कब किस चीज की जरूरत पड़ जाए.

अजय ने बदलते समय को देखते हुए सोशल मीडिया के अपने फेसबुक एकाउंट में भी गौ सेवा की लगातार पोस्ट डालने लगे हैं, जिसे देख लोगों की जागरूकता बढ़ी है, और आस-पास के लोग भी गायें को तकलीफ में देख है, तो उन्हें कॉल करते है, जिससे वे जल्द से जल्द वहां पहुचकर गाय की जान बचा लेते है. फेसबुक एकाउंट में पोस्ट डालने से उन्हें पिछले 3 महीनों में 40 से ज्यादा गायों की सूचना प्राप्त हुई है. जो उनके इस सेवा के लिए सुविधाजनक होता है.

अजय ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में बताया कि लोग गाय तो पाल लेते है, लेकिन उन्हें खुला बाहर छोड़ देते हैं. कई बार गायें हाईटेंशन वायर की चपेट में आने से मर जाती हैं, कई बार कुत्ते गायों को घायल कर देते हैं. जब से वे इस कार्य में आये है, तब से उनके जानकारी में करीब 50 से ज्यादा गायें कुत्तों के काटने से रैबीज से मर गई हैं. गायों की इस दशा को देख बहुत दुख होता है, इसीलिए इस काम कर के उन्हें मन को शांति मिलती है.