बिलासपुर- छत्तीसगढ़ राज्य के एकमात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय से आम नागरिकों को बहुत उम्मीदें रहती हैं,लेकिन दुुर्भाग्यजनक बात ये है कि ये नकारात्मक बातों के लिये अधिक जाना जाता रहा है.फिलहाल यह विश्वविद्यालय एक शिक्षक द्वारा एक छात्रा को प्रताड़ित करने के मामले को लेकर सुर्खियों में है.हालात ये है कि कुलपति विश्वविद्यालय से बाहर हैं और छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को सुरक्षा के लिये आंदोलन करना पड़ रहा है.

विश्वविद्यालय में अध्ययनरत कई छात्राओं से लल्लूराम डॉट कॉम ने बात की,तो नाम न छापने की शर्त पर छात्राओं ने बताया कि कुलपति प्रोफेसर अंजिला गुुप्ता से सभी को यह उम्मीद थी कि महिला होने के नाते वे कुछ और नहीं,तो कम से कम महिलाओं के लिये एक सुरक्षित और संवेदनशील माहौल देंगी,लेकिन इनके पूरे कार्यकाल के दौरान हुआ ठीक उल्टा ही है.महिलाओं से संबंधित यौन उत्पीड़न समिति का अस्तित्व मात्र कागजों में है. न तो इसके सदस्यों के नाम,संपर्क नंबर,कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के विरुद्ध महिलाओं के अधिकार संबंधित जानकारी कहीं भी विश्वविद्यालय में नजर नहीं आते. कुलपति की संवेदनहीनता के कारण सरकार की यह महत्वपूर्ण समिति औपचारिकता मात्र बनकर रह गई है.

विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं को तो समाज के आदर्श प्रस्तुत करना चाहिये,लेकिन यहां स्थिति यह है कि यूजीसी के निर्देश के बाद भी परिसर में ना तो सेनेटरी नेपकिंस वेंडिंग मशीन है, ना ही छोटे बच्चों के लिये झूला घर. अगर बाहर से किसी काम से आने वाली महिला का दुधमुंहा बच्चा है,तो उसके लिये फीडिंग कक्ष की व्यवस्था भी नहीं है.

महिला कुुलपति की संवेदनहीनता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि आज तक कुलपति ने परिसर की छात्राओं को बुलाकर कभी उनकी सुरक्षा और सुविधा से संबंधित चर्चा करने की जरुरत नहीं समझी. छात्राओं के ऊपर छींटाकशी, दुर्व्यवहार आदि रोजमर्रा की बातें हो गई है.अति यह है कि इसमें विश्वविद्यालय के नियमित शिक्षकों के नाम खुलकर सामने आ रहें हैं,लेकिन कुलपति के कानों में जूं भी नहीं रेंग रही. इस प्रकार के गतिविधियों के विरोध करने हेतु छात्राओं को हिम्मत दिलाने की कोई व्यवस्था नहीं है.विश्वविद्यालय परिसरों में जेंडर के प्रति सेंसिटिविटी जागृत करने के लिये यूजीसी के निर्देश पर बनने वाली एक और समिति के नोडल अधिकारी हेतु कुलपति को कोई महिला शिक्षिका योग्य प्रतीत नहीं हुई और उन्होंने इस महत्वपूर्ण समिति का नोडल अधिकारी एक पुरुष शिक्षक को बनाया हुआ है. छात्र-छात्राएं बताते हैं कि इसकी चयन समिति में भी महिला शिक्षिकाएं नाममात्र संख्या में रखी जाती हैं.

पूर्व कुलपति डॉ लक्ष्मण चतुर्वेदी के समय में विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद में भी एक महिला शिक्षिका को रखा गया था और उनका फोन नंबर सभी के लिये उपलब्ध था. उस समय ये व्यवस्था थी कि किसी भी समय किसी भी छात्र-छात्रा द्वारा एसएमएस से भी की गई शिकायत का स्वयं कुलपति तुरंत संज्ञान लेते थे.छात्र बताते हैं कि इन परंपराओं को भी महिला कुलपति ने निरंतर रखने की जरुरत नहीं समझी. छात्राएं बताती हैं कि वर्तमान कुलपति से मिलना लगभग नामुमकिन है. पिछले साल शिक्षा विभाग की एक छात्रा ने एक छात्र की छेड़खानी से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी,लेकिन इस घटना के बाद भी कुलपति द्वारा छात्राओं के उत्पीड़न रोकने,छात्राओं को सुरक्षित होने का विश्वास दिलाने के लिये कोई कदम नहीं उठाये गये. बल्कि जब भी कोई ऐसी घटना होती है,छात्राओं के उपर ही सख्ती की जाती है, विशेषकर छात्रावास की छात्राओं के ऊपर. परिसर की सुरक्षा का यह हाल है कि अवकाश के दिन छात्रावास की छात्राओं को दिन के समय भी बिना अनुमति अपने विभाग और लाइब्रेरी तक में जाने की अनुमति नहीं है. इन सब अव्यवस्थाओं से छात्राओं का असंतोष लगातार पनपने लगा है.

गुरु घासीदास विश्वविद्यालय की स्थिति देखकर सब यही कहने लगे हैं कि अगर महिला कुलपति होने के बाद भी छात्राओं की सुरक्षा और सुविधाओं के प्रति संवेदनशीलता नहीं है,तो महिला कुलपति बनाने से कोई फायदा नहीं है.