पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. सुपेबेड़ा में 14 साल में किडनी की बीमारी से अब तक 102 मौते हो गई है. सरकारें बदली, राज्यपाल समेत 7 बार मंत्रियों का दौरा हुआ और दर्जन भर से ज्यादा शोध, अब तक 30 करोड़ रुपये भी फूंक दिए गए, फिर भी बीमारी की वजह ढूंढने में सिस्टम नाकाम रहा. अब भी 40 से 50 साल की उम्र के 32 लोग ऐसे हैं जिनका क्रिएटनीन लेवल बढ़ा हुआ है. इनमें से 9 नए मरीज जिन्हें 4 महीने पहले पता चला कि अब उनका भी किडनी इफेक्ट हो गया है. वहीं आज एक और व्यक्ति ने इसी बिमारी से दम तोड़ दिया. करीब 4 साल से वह किडनी की बीमारी से पीड़ित था.

कांशीराम उम्र 62 वर्ष का क्रिएटिनिन लेवल केवल 2.2 था, किडनी इफेक्ट के अलावा उसे शुगर, खांसी, एनिमिया जैसी अन्य बीमारी के अलावा जल जाने के कारण उसकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई थी. BMO अंजू सोनवानी ने बताया कि पहले के शिविरों में उसके किडनी संबंधी रोगों का पर्याप्त इलाज किया जा चुका था. मंगलवार को CHC की टीम ने घर पहुंचकर इलाज किया था. उसे हॉस्पिटल में भर्ती होने कहा को कहा गया था. इलाज के दौरान ही उसकी मौत हो गई.

गरियाबंद में किडनी की बिमारी का कलंक

गरियाबंद जिले के ओड़िशा सीमा से लगे अंतिम छोर में बसे सुपेबेड़ा वासियों की आंखों में अब मौत की दहशत नजर आने लगी है. 2009 के बाद से इस गांव में अब तक जिसे भी किडनी की बीमारी हुई वो दो से चार साल के भीतर चल बसा है. एक-एक करके अब तक कुल 102 लोगों ने किडनी की बीमारी से दम तोड़ा है. मृतकों का रिकार्ड पंचायत में दर्ज है. जिसमें मौत की वजह किडनी बीमारी बताई गई है. सरकारी रिकार्ड के मुताबिक वर्तमान में बीमार लोगो की संख्या महज 6 से 7 बताई जा रही है. लेकिन गांव में अभी 32 लोग ऐसे हैं जिनका क्रिएटनीन लेवल बढ़ा हुआ है. इनमें से 4 ऐसे हैं जिनका क्रिएटनिं लेवल 3 पॉइंट से ज्यादा है. इनमें से एक प्रेमजय क्षेत्रपाल का डायलसीसी सरकारी खर्च पर एम्स की देख रेख में हो रहा है. बाकी 3 अपने-अपने स्तर पर ओड़िशा और आंध्र के निजी अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं. सभी की उम्र 40 से 50 साल के बीच का है. इनमें 9 नए मरीज हैं जिन्हें मार्च में हुए सरकारी खून जांच अभियान के बाद से पता चला है कि उनके किडनी में इंफेक्शन आ चुका है.

परिवार के 12 सदस्य खो चुके, अब 13वें को बचाने संघर्ष जारी

किडनी की बीमारी से सुपेबेड़ा के क्षेत्रपाल परिवार को बड़ा नुकसान हुआ है. अब तक इस परिवार के 12 लोग किडनी की बीमारी से दम तोड़ा है. अब परिवार के प्रेमजय क्षेत्रपाल (46 वर्ष) इससे ग्रसित हो गए हैं. क्रिएटनीन लेवल 4 से ज्यादा है. घर में रहकर एम्स की देखरेख में पैरोटोनियल पद्धति से सरकारी खर्च पर डायलिसी जारी है. खाने की दवा इन्हें खरीदनी पड़ती है. प्रेमजय ने बताया कि 20 दिनों से दवा खत्म हो चुकी है, दौरे पर आ रहे अफसरों को भी पता है. एक बार रायपुर जाने वहां से दवा लाने में 3 हजार रुपये का खर्च है. घर पर खड़ी बाइक की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसका सौदा हो चुका है. दो चार दिनों में खरीददार आएगा. पैसे मिलने के बाद दवा ला सकूंगा. प्रेमजय के बड़े भाई प्रेम प्रकाश ने कहा कि पिछले 5 वर्षों में उनके परिवार ने पहले भी ट्रेक्टर, स्कॉर्पियो और बाइक बेचकर इलाज करवाया है. अफसोस की किसी की जान नहीं बचा सके. क्षेत्रपाल परिवार में अभी 16 सदस्य हैं. जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है. कुछ बच्चे और कमाने वाले कि संख्या 2 से 3 रह गई है. प्रेम प्रकाश ने बताया कि आंध्र के किडनी पीड़ित गांव श्रीकाकूलम में जिस तरह सरकार पीड़ित के परिवार को मासिक आर्थिक सहायता करती है, वैसे यहां भी करने वे लगातार मांग कर रहे हैं. राज्यपाल, सीएम और मंत्रियों के समक्ष इस मांग को रख चुके हैं. प्रेम प्रकाश ने कहा कि भरेपूरे परिवार के आधे सदस्य तो चले गए जो हैं, अब आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं. गांव नहीं तो हमारे परिवार को सरकार विस्थापित करे. हम जाना चाहते हैं. रोज दहशत भरी जिंदगी जी रहे हैं. उन्होंने बताया कि डर के कारण परिवार के कुछ सदस्य देवभोग में किराए के मकान से रह रहे हैं.

सरकार ने की साफ पानी की व्यवस्था, लेकिन उससे नहा रहे ग्रामीण

किडनी की बीमारी दूर करने के लिए सरकार ने 3 साल पहले सवा करोड़ खर्च कर सुपेबेड़ा के 6 हैण्डपम्प में आयरन और फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगा दिया. कुछ दिनों तक लोग इसका पानी पीते भी रहे, यही सोचकर की इससे किडनी की रोग नहीं होगा. इस पानी के सेवन के बाद भी किडनी रोग का होना रुका नहीं. 2018 से अब तक 42 लोगों ने दम तोड़ दिया. लोग यह भी जान गए कि आयरन और फ्लोराइड रहित पानी किडनी की नहीं दांत और हड्डी ने होने वाले रोगों से निजात दिलाता है, तो ज्यादातर लोगो ने इस प्लांट के पानी को पीने के बजाए नहाने और कपड़ा धोने का इस्तेमाल में लाने लगे. पीछले 4 सालों से किडनी की बीमारी से पीड़ित गगन आडील (50वर्ष) अपने बेटे के साथ फ्लोराइड रिमूवल प्लांट के पानी से नहा रहे थे. लाइन में 4 अन्य भी अपनी बारी का इंतजार करते नजर आए. पीड़ित गगन ने भी कहा कि पानी की वजह से किडनी खराब होती तो आसपास 10 किमी की परिधि में भी बीमार नजर आते. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि किडनी रोगी केवल हमारे गाव में है. ऐसे में साधारण पानी पिएं या रिमूवल प्लांट का या फिर तेल नदी का, क्या फर्क पड़ेगा?

पानी में हैवी मैटल्स और जैनिटिक होना बीमारी की वजह

राज्य सरकार के निर्देश पर संचालक स्वास्थ्य सेवाएं ने वर्ष 2015 से 2018 तक रायपुर के इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय के अलावा नागपुर, दिल्ली, बैंगलुरू, विशाखापट्टनम के विभिन्न संस्थाओं से कई शोध कराए गए. रिसर्चरों ने सुपेबेड़ा के विभिन्न स्रोतों से पानी के अलावा, दूध, अनाज, मिट्टी तक का सेंपल लिया. इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ रिपोर्ट जबलपुर की टीम ने भी जांच की. इन्ही जांच के हवाले सीएमएचओ एन आर नवरत्न ने कहा कि वहां के जल स्रोतों में कैडमियम, क्रोमियम जैसे हैवी मैटल्स पाए जाने की पुष्टि की गई है. बीमारी की वजह कुछ हद तक पानी के अलावा अनुवांशिक (जैनिटिक) होने का भी दावा रिसर्चरों के रिपोर्ट में किया है.

बजट परिवर्तन की पेंच में फंसा तेल नदी का पानी

सुपेबड़ा से तेल नदी का पानी देने सामूहिक जल प्रदाय योजना के तहत 2019 में राज्य बजट में ओवरहेड टैंक के जिस काम के लिए 9 करोड़ रुपये की राशि की स्वीकृति दी गई थी, जल जीवन मिशन लागू होते ही योजना को केंद्रीय योजना के बजट में शामिल कर दिया गया. टेंडर भी लगे, पर पुराने SOR दर पर प्राक्कलन तैयार थे, तो काम नहीं हुआ. नए दर के आधार पर 10,34 करोड़ की मंजूरी दी गई. 10 सितम्बर को कार्य स्थल को देखने पहुंचे मुख्य अभियंता राजेश गुप्ता ने बताया कि टेंडर 12 सितम्बर तक भरा जाना है. टेंडर प्रक्रिया खत्म होते ही इसी वर्ष कार्य शुरू कर दिया जाएगा.

सरकार के काम पर सवाल खड़े कर रही रिपोर्ट

राज्य स्तरीय प्रयोगशाला और अनुसंधान केंद्र रायपुर ने जुलाई महीने में सुपेबेड़ा के 26 जल स्रोतों के पानी की जांच की थी. 25 जुलाई को जारी किए गए रिपोर्ट के मुताबिक संस्था ने पानी में पाए जाने वाले सभी 26 तत्वो का विश्लेषण किया था. रिपोर्ट के मुताबिक दूसरी जगहों की तरह सभी वाटर सोर्स की रिपोर्ट सामान्य बताई गई. ऐसे में सवा करोड़ की लागत से पूर्वर्ती सरकार ने रिमूवल प्लांट क्यों लगाया? हेवी मेटल के पुनः परीक्षण के लिए छतीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद विज्ञान भवन को 18 अगस्त को सुपेबड़ा के 26 और सेनमूड़ा के 10 सैंपल भेजा गया है. जिसकी रिपोर्ट आना बाकी है.

इलाज की सुविधाएं बढ़ाई गई

सुपेबेड़ा में मौत और बीमार लोगों का आंकड़ा लगातार बढ़ा है. इसके साथ-साथ मौजूदा सरकार ने इलाज की भी सुविधाएं बढ़ा दी. पिछले 3 साल में यहां PHC खोली गई. डॉक्टर समेत स्टाफ की मंजूरी मिली, देवभोग और जिले में डायलिसिस की सुविधा दी गई. घर में रहकर पैरोटोनियल डायलिसीस भी शुरू कराया गया. निरीक्षण और निगरानी बढ़ाने के अलावा किडनी पीड़ितों की देखरेख के लिए राजधानी में भी विशेष कर्मी तैनात किए गए. इन सबके बीच पिछले 12 सालों में ऐसी कोई व्यवस्था नजर नहीं आई कि जिससे सरकार ये दावा करती कि अब आगे से कोई बीमार नहीं पड़ेगा.

183 मौतों में से 101 किडनी की बीमारी से ग्रसित

ग्राम पंचायत सुपेबेड़ा के जन्म मृत्यु पंजीयन में दर्ज मौत के आंकड़े बताते हैं कि 2009 से अगस्त 2022 तक किडनी की बिमारी से 101 लोगों ने दम तोड़ा है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग इन आंकड़ों को मानने से इंकार कर रहा है.

वर्ष कुल मौत किडनी से मृत्यु

2009 09 05

2010 11 06

2011 09 03

2012 11 05

2013 11 09

2014 12 10

2015 12 11

2016 16 10

2017 18 12

2018 19 08

2019 13 05

2020 14 06

2021 13 05

2022 15 07 (सितंबर तक)

इसे भी पढ़ें :