रायपुर. सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम कानून बनाने के लिए प्रदेश में मुहिम तेज कर दी गई है. इस मुहिम को लेकर अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने प्रदेश के सभी विधायको को पत्र लिखा  है और आगामी विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम कानून बनाने के लिए पहल करने अपील की है. जिससे इस प्रताड़ना को झेल रहे लोगों को न्याय मिल सके.

लगातार बढ़ते जा रहे है सामाजिक बहिष्कार के मामले

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि प्रदेश में सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं. ग्रामीण अंचल में ऐसी घटनाएं बहुतायत से होती है. जिसमें जाति व समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का कहना न मानने, पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने पर किसी व्यक्ति या उसके पूरे परिवार को समाज व जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है. उसका समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है. कुछ मामलों में तो स्वच्छता मित्र बनने पर, तो कहीं आरटीआई लगाने पर भी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है.

अधिनियम का समर्थन करने पर किया वरिष्ठ सदस्य का सामाजिक बहिष्कार

इस मामले में सामाजिक पंचायतों के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने बहिष्कार अधिनियम का समर्थन करने पर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग आयोग के एक वरिष्ठ सदस्य का ही सामाजिक बहिष्कार कर दिया है. पूरे प्रदेश में 25 हजार से अधिक व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के शिकार हैं.

महाराष्ट्र में लागू सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ जन जागरण एवं प्रताड़ित लोगों की मदद के लिए पिछले कुछ वर्षो से लगातार कार्य कर रही है. समिति सभी जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर आगामी विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ कानून बनाने की मांग कर रही है. इसी परिप्रेक्ष्य में महाराष्ट्र विधानसभा में सभी सदस्यों ने सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम के संबंध में महत्वपूर्ण कानून को बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से 11 अप्रैल 2016 को पारित कर दिया तथा 20 जून 2017 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के बाद 3 जुलाई 2017 से पूरे महाराष्ट्र में लागू भी कर दिया गया. इसी छत्तीसगढ़ में भी सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम की आवश्यकता महसूस की जा रही है.

लगातार किया जाता है प्रताड़ित

डॉ. मिश्र ने कहा कि सामाजिक बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति व उसका परिवार गांव में बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है. पूरे गांव-समाज में बहिष्कृत परिवार से न ही कोई बातचीत करता है और न ही उससे किसी प्रकार का व्यवहार रखता है. उस बहिष्कृत परिवार को हैन्ड पम्प से पानी लेने, तालाब में नहाने व निस्तार करने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने, पंगत में साथ बैठने की मनाही हो जाती है. यहां तक उसे गांव में किराना दुकान में सामान खरीदने, मजदूरी करने, नाई, शादी-ब्याह जैसे सामाजिक सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने से वंचित कर दिया जाता है. जिसके कारण वह परिवार गांव में अत्यंत अपमानजन स्थिति में पहुंच जाता है और उसका गांव में रहना मुश्किल हो जाता है. सामाजिक पंचायतें कभी-कभी सामाजिक बहिष्कार हटाने के लिए भारी जुर्माना, अनाज, शारीरिक दंड व गांव छोडने जैसे फरमान जारी कर देती है.

सामाजिक बहिष्कार के चलते लोगों की हो रही है मौत

डॉ. मिश्र ने आगे कहा कि सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से आत्महत्या, हत्या, प्रताड़ना व पलायन की खबरें लगातार समाचार पत्रों में आती रहती है. इस संबंध में अब तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है. इसलिए ऐसे मामलों में कोई उचित कार्यवाही नहीं हो पाती है और न ही रोकथाम का कोई प्रयास होता है. सामाजिक बहिष्कार के मामलों के आंकड़ों को लेकर नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो, राज्य सरकार, पुलिस विभाग के पास कोई अब तक जानकारी या फिर रिकार्ड नहीं है. इस बात का पता सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त हुई जानकारी से चला है. जबकि ऐसी घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही है.

विधायकों पत्र लिखकर की मामले में पहल करने की अपील

इस संबंध में सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम 2016 जो पिछले दिनों प्रादेशिक गृह मंत्रालय द्वारा दावा आपत्ति के लिए सार्वजनिक किया गया था, उस पर अनेक संस्थाओं एवं व्यक्तियों ने अपनी राय दी थी, डॉ. मिश्र ने आगामी विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम कानून बनाने के विधायकों से पहल करने की अपील की है. जिससे इस प्रताड़ना को झेल रहे लोगो को न्याय मिल सके.

के.