यत्नेश सेन, देपालपुर (इंदौर)। मध्य प्रदेश में एक ओर जहां सरकार शिक्षा को लेकर नित नए आयाम चला रही है, वहीं हर बच्चा शिक्षित हो इस बात भी विशेष ध्यान रखा जा रहा है। लेकिन इस बीच कुछ ऐसी चीजें भी सामने आ जाती है, जिससे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और उनके पालकों पर भी इसका काफी असर पड़ता है। ऐसा कहा जाए कि स्कूल संचालक पालकों की जेब में सीधा डाका डाल रहे है, तो यह गलत नहीं होगा।
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दरअसल नए सत्र में स्कूली शिक्षा शुरू होने के पूर्व प्रशासन द्वारा शक्ति करने की बात भी सामने आई थी। वहीं हाल ही में बीते दिनों इंदौर कलेक्टर इलैयाराजा टी ने एक बैठक में स्कूल संचालकों को सख्त हिदायत देते हुए कड़े निर्णय लिए थे, जिसमें उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 (1)(2) के तहत आदेश भी जारी किया था। जिसमें सख्ती से कहा गया था कि कोई भी स्कूल संचालक बच्चों के पालकों को किताबें और ड्रेस के लिए बाध्य नहीं करेगा और ना ही किसी एक काउंटर से किताबें बेची जाएगी अगर ऐसे करते कोई पाया जाएगा तो कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन जिले के देपालपुर क्षेत्र में कलेक्टर के आदेश के ठीक उलट देखने को मिल रहा है। जहां इंदौर कलेक्टर के नियम व आदेश की सरेआम धज्जियां उड़ती दिखाई दे रही है। इस पर क्षेत्रीय प्रशासनिक अधिकारियों का भी ध्यान नहीं है और ना ही क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों का। जहां शिक्षा माफिया जमकर अधिकारियों से सांठगांठ कर पालकों की जेब पर डाका डाल रहे हैं। बाजार में स्कूल संचालकों द्वारा अलग-अलग दुकानों पर किताबें और ड्रेस उपलब्ध कराकर मोटी रकम वसूली जा रही है। यही नहीं, बल्कि बच्चों के पालकों को उसी संस्थान से सामग्री खरीदने के लिए दबाव बनाया जाता है।
सूत्रों के मुताबिक क्षेत्र में कई स्कूल संचालकों की अधिकारियों से सांठगांठ भी है, जिसके चलते वे खुलेआम सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे है। देपालपुर में निजी स्कूल संचालकों की मनमानी का आलम यह है कि उन्होंने बाजार में अलग-अलग कॉपी किताब की दुकानों पर अपने काउंटर बना रखे हैं जहां वे पालकों को पता दे देते हैं कि उनके स्कूल की ड्रेस और कॉपी किताब इन इन दुकान पर मिलेंगे। बस इतना ही नहीं कई स्कूलों की हालत तो यह है कि वह स्कूल से ही किताबें और ड्रेस बेच रहे हैं। लेकिन उन्हें शासन प्रशासन का कोई डर और खौफ नहीं है।
परसेंटेज पर चल रहा किताबों का पूरा खेल
दुकानदारों की मानें तो स्कूल संचालकों से परसेंटेज पर पूरा कारोबार चल रहा है। उनका कहना है कि 50 परसेंट किताबों के पब्लिशर को देना पड़ता है, 40 परसेंट स्कूल संचालक को देना पड़ता है, हमे तो सिर्फ 10 परसेंट राशि का मुनाफा ही मिलता हैं।
ब्लॉक समन्वयक भी नही दे रहे ध्यान
सूत्रों की मानें तो क्षेत्र में संचालित हो रहे निजी स्कूलों की मनमानी लगातार बढ़ती जा रही है जिसके कारण पालको के जेब पर डाका बढ़ता जा रहा है। लेकिन सरकार द्वारा नियुक्त ब्लॉक समन्वयक का इस और कोई ध्यान नहीं है, ना तो वे पालको से जानकारी लेते हैं और ना ही निजी स्कूलों की हालत देखते हैं। ना ही निजी स्कूलों द्वारा की जा रही मनमानी को देखते हैं वह अपने कार्यालय और कार्यालयीन कार्यों में ही व्यस्त रहते हैं।
अधिकारी बोले शिकायत होगी तो जांच कर आगे भेजेंगे
शिक्षा माफियाओं के बढ़ते कारोबार पर जांच को लेकर ब्लॉक समन्वयक माता प्रसाद गोड का कहना है कि पालकों द्वारा अब तक किसी भी प्रकार से शिकायत नही की गई है, अगर कोई शिकायत आती है तो जांच कर उच्च अधिकारियों को अवगत कराया जाएगा।
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