रायपुर। 16 जुलाई 2019 वह दिन था जब सुश्री अनुसुईया उइके राष्ट्रीय जनजाति आयोग के कार्यालय में उत्तरप्रदेश के कलेक्टरों से वहां के जाति प्रमाण पत्र से जुड़े समस्या के समाधान के लिए चर्चा कर रही थी। तभी यह खबरें चलने लगीं कि उन्हें छत्तीसगढ़ के राज्यपाल का दायित्व सौंपा गया। उन्हें इस बात का अंदेशा नहीं था कि उन्हें इस महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। इसलिए उन्होंने खुद तस्दीक की। एक तरफ उन्हें आयोग के कार्यकाल पूर्ण करने से पहले पहले थोड़ा अचरज हुआ पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने पर खुशी भी हुई। उन्होंने 26 जुलाई की शाम तक अपने बचे हुए कामकाज को निपटाया और 27 जुलाई 2019 को छत्तीसगढ़ पहुंची। छत्तीसगढ़ पहुंचते ही उन्हें अहसास हो गया था कि यह वह राज्य है जिसकी 32 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासियों की है और आधे से अधिक भूभाग 5वीं अनुसूची क्षेत्र अर्थात आदिवासी बाहुल्य इलाका है।
शपथ से पहले उन्होंने छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह को नमन किया और उसके बाद उन्होंने शपथ की प्रक्रिया पूर्ण की। चूंकि सुश्री उइके ने यह संकल्प लेकर ही छत्तीसगढ़ पहुंची थी कि मुझे जो दायित्व मिला है, उसके परम्परागत अवधारणा के विपरीत आम लोगों, आदिवासियों और दीन-दुखियों के लिए काम करेंगी। सबसे पहले उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की समस्या को जानने के लिए सर्व आदिवासी समाज के राजभवन आने पर उन्होंने घंटों छत्तीसगढ़ की खासियत और यहां की समस्याओं की जानकारी ली। उन्होंने निर्देश दिया कि यदि कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उनके दरवाजे पर पहुंचता है तो उनकी समस्या सुने बिना उन्हें जाने न दें, इसके लिए कठिन प्रक्रिया का पालन न करें। कुछ ही दिनों में उनकी सक्रियता की जानकारी छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में पहुंची और अभी तक जो कभी राजभवन के दरवाजे भी नहीं पहुंचे थे, वे छत्तीसगढ़ के अति पिछड़ी जनजाति के लोग थे। उन्हें किसी प्रक्रिया की जानकारी नहीं थी। सुश्री उइके को जैसे ही जानकारी मिली उन्हें अंदर बुलाया और अपने कार्यालय में उनका अभिवादन किया और उनकी समस्या सुनी ही नहीं, उनके समाधान के लिए तुरंत कार्यवाही की और कुछ दिनों के भीतर उनकी वर्षों से लंबित विशेष भर्ती प्रक्रिया को शासन ने हरी झंडी दे दी।
सुश्री उइके यह जानती थी कि छत्तीसगढ़ के लोगों में इतनी सरलता है कि कई बार उन्हें अपनी बात रखने में भी संकोच होता है और इसी कारण छोटी-छोटी समस्या भी नहीं सुलझती। उन्होंने इसके लिए पहल की और बिना किसी विशेष प्रोटोकाल के समस्याओं से जुड़े आवेदन स्वीकार करना शुरू किए और उसके लिए एक ‘ट्रेकिंग सिस्टम’ बनाने के निर्देश दिए, जिससे उनकी समस्या का समाधान कागजों में न हो, जमीनी स्तर में हो। सुश्री उइके ने निरंतर मीडिया और आम जनता से संपर्क बनाएं रखा, तभी उन्हें आदिवासी जिला गरियाबंद के ग्राम सुपेबेड़ा की जानकारी मिली, जहां के कई लोग किडनी की बीमारी से काल-कलवित हो गए थे। यह सिलसिला रूक नहीं रहा था। उन्होंने सारे निर्धारित कार्यक्रमों को रद्द किया और स्वयं सुपेबेड़ा पहुंची और ग्रामीणों से मिलकर समस्या की वास्तविकता को जाना और उस मंच से ही आवश्यक निर्देश दिए। यही नहीं, उन्होंने अपना व्यक्तिगत मोबाईल नंबर आम जनता को दिया और कहा कि वे किसी भी समस्या के लिए राजभवन आएं और सीधे बात करें।
आगे उनकी तकलीफों का ध्यान वे स्वयं रखेंगी। उनकी पहल पर स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री ने मंच से ही 24 करोड़ के कार्यों की घोषणा की जो करीब 15 वर्षों से लंबित था। साथ राज्यपाल ने 132 के.वी. विद्युत सब स्टेशन को प्रारंभ करने के निर्देश दिए। सुश्री उइके का मानना है कि योजनाएं काफी सारी बनती है लेकिन उनका क्रियान्वयन और असल व्यक्ति को लाभ पहुंचना जरूरी है। इसलिए वे स्वयं नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले पहुंची और अधिकारियों की बैठक ली। योजनाओं के क्रियान्वयन की स्थिति और वास्तविकता को जाना। यही नहीं जब मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे मंडल के अन्तर्गत गेज परिवर्तन कार्य के लिए अधिग्रहित जमीन के किसानों को भारतीय रेलवे द्वारा नौकरी देने में विलंब होने पर राज्यपाल ने स्वयं हस्तक्षेप किया और उन्हें कुछ महीने के भीतर ही नौकरी मिल गई।
छत्तीसगढ़ की ज्वलंत समस्या नक्सलवाद के संबंध में सुश्री उइके का मानना है कि उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए आदिवासियों के साथ संवेदनशीलता के साथ पेश आएं और उनके हाथों में काम दें। इसके लिए वे स्वयं आत्मसमर्पित नक्सलियों से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि वे आत्मसमर्पण तो किया लेकिन उनके रहने और रोजगार की पुख्ता व्यवस्था होना चाहिए। उन्होंने मुख्यमंत्री से आत्मसमर्पित नक्सलियों को पक्के मकान देने का आग्रह किया और उन्होंने तुरंत इसकी घोषणा भी की। सुश्री उइके कुलाधिपति के रूप में दीक्षांत समारोह में शामिल होकर मार्गदर्शन दिया बल्कि कोई विद्यार्थी उनके समक्ष समस्याओं को लेकर पहुंचा तो उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए कुलपति और अधिकारियों की बैठक लेकर मौके पर ही समाधान किया। सुश्री उइके दीन-दुखियों की मदद के लिए हमेशा संजीदा रही और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कैंसर बीमारी से पीड़ित मरीज के परिजनों ने एक सामान्य से पत्र के माध्यम से संपर्क किया तो उन्होंने बिना किसी देरी के मदद की। यही नहीं एक सजायाफ्ता कैदी के परिजनों ने सजामाफी की गुहार लगाई तो उनकी परिस्थितियों को देखते हुए मानवता का परिचय देकर उन्हे सजा माफी दी। जब पूरा देश और प्रदेश कोरोना संकट से जूझ रहा था, तब राज्यपाल सुश्री उइके अपने आप को निवास तक सीमित न कर सक्रिय हुई और लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों और नागरिकों एवं विदेश में फंसे विद्यार्थियों को अपने घर पहुंचने की व्यवस्था कराई। साथ ही कोरोना वॉरियर्स की हौसलाअफजाई भी करती रही।
लेखक : सचिन शर्मा, जनसपंर्क अधिकारी, राजभवन