जो ख़बरों में और चर्चा में नहीं है ‘पाकिस्तानी परमाणु बम के जनक’ अब्दुल कादिर खान नहीं रहे … ए .क्यू .खान पेशे से एक धातु शोधक थे .सत्तर के दशक में वे हॉलैंड के एक यूरेनियम एनरिचमेन्ट फैसिलिटी में कार्यरत थे . वैसे ए .क्यू .खान ने स्नातक डिग्री भोपाल से ली थी .बाद में विभाजन के बाद पाकिस्तान आ गए थे. विभाजन की पीड़ा भूल नहीं पाते थे और कहा था -‘भोपाल ने मेरे साथ बहुत बुरा सलूक किया था ‘ उनका ये दर्द हमेशा बना रहा.

दर्द ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो को भी था .पूर्वी बंगाल के हाथ से निकल जाने ,बांग्लादेश बनने और हिन्दुस्तान के हाथों मिली करारी पराजय भुट्टो भूल नहीं पाते थे . जब 1974 में इंदिरा गाँधी ने परमाणु परीक्षण किया था ,तब प्रधानमंत्री रहे भुट्टो ने कहा था ‘पाकिस्तान को घास ही क्यों न खानी पड़े पर परमाणु बम ज़रूर बनाएगा.

भुट्टो ने परमाणु बम पर तो चुनौती कबूल करते घास तक खाना मंज़ूर कर लिया पर ठीक उसी वक़्त
हिन्दुस्तान में पब्लिक सेक्टर्स एक के बाद खड़े होते जा रहे थे , राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया हो रही थी पर सुई तक न बना पाने वाले पाकिस्तान के उस प्रधानमंत्री ने अपने देश के औद्योगिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए , लोकतंत्र की बहाली के लिए कभी घास खाने की बात नहीं की !

साल 1974 में जब भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, ए .क्यू .खान फिज़िकल डायनमिक्स रीसर्च लेबोरेटरी में ही काम कर रहे थे. अमरीकी पत्रिका फॉरेन अफ़ेयर्स में साल 2018 में छपे एक लेख में कहा गया था, “इस घटना ने ख़ान के भीतर छिपे राष्ट्रवाद को एक तरह से चुनौती दी और पड़ोसी मुल्क से बराबरी करने में पाकिस्तान की मदद करने की कोशिश करने लगे.”

इसी साल उन्होंने पाकिस्तानी खुफ़िया विभाग के साथ काम करना शुरू कर दिया था. एक का भारत से डर और दूसरे की नफ़रत ने ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो और ए .क्यू .खान का मिलन करवाया . आगे अंधराष्ट्रवादी प्रतियोगिता में दौड़ते दोनों देशों ने ‘बम नहीं रोटी चाहिए – युद्ध नहीं शांति चाहिए ‘ इस जनभावना को दरकिनार कर परमाणु परीक्षण किये .

11 मई और 13 मई 1998 में पोखरण -2 टेस्ट किये तो पूरे देश में राष्ट्रवादी ज्वार सा आ गया था ,इसके ठीक कुछ दिनों बाद पाकिस्तान ने 28 मई 1998 को बलुचिस्तान प्रांत के चगाई में अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया .

हिन्दुस्तान में पोखरण की रेत घुमाई जा रही थी तो पाकिस्तान लम्बे जश्न में डूबा रहा . ये वही दोनों मुल्क़ जश्न मना रहे थे जो अपने अवाम को रोटी ,कपड़ा ,मकान ,चिकित्सा ,शिक्षा की बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करवाने में असफल रहे थे ..

इधर ए .क्यू .खान पाकिस्तान में पूजे जाने लगे ,प्यार से ‘ मोहसिन ए पाकिस्तान ‘ कहलाये गए . परमाणु के अंधराष्ट्रवाद में डूबी जनता ने उन्हें सर आँखों पर बैठाया और इतना दुलारा कि खान साहब बेहद अहंकारी ,व्यक्तिवादी और अति महत्वाकांक्षी हो चले .

एक मौके पर ए .क्यू .खान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के सलाहकार और लेखक हुसैन हक़्क़ानी
से कहा उन्हें पाकिस्तान का सबसे बड़ा अवार्ड ‘निशान- ए-इम्तियाज़ ‘ मिले जो उन्हें मिला भी .उन्होंने ये भी कहा वो किसी दूसरे देश में होते तो राष्ट्रपति होते और देश को बचाने वाला फरिश्ता समझे जाते .

हक़्क़ानी कहते हैं ए .क्यू .खान को कोई मोहसिन ए पाकिस्तान कहता तो चिढ़ते और कहते कि ‘मोहसिन ए पाकिस्तान ‘[ पाकिस्तान का संरक्षक ] अवार्ड के रूप में आखिर उन्हें क्यों नहीं दिया जाता ?

ए .क्यू .खान ने 2011 में लिखा भी था ” एक ऐसा देश जो खुद साइकिल की चेन भी नहीं बना सकता , अल्प अवधि में उसका परमाणु और मिसाइल पावर बन जाना ,पश्चिम देशों के विरोध के बावजूद ,चमत्कार से कम नहीं है .”
इस तरह एक अंधराष्ट्रवादी मुद्दे से कोई जितना अहंकारी बन सकता था ,उतने ए .क्यू .खान बन चुके थे .

इसी तरह एक अंधराष्ट्रवादी मुद्दे से कोई जितना भ्रष्ट बन सकता था उससे कहीं ज़्यादा ए .क्यू .खान भ्रष्ट
हो चुके थे …

…पर जब अंधराष्ट्रवाद की हवा चलती है तो ऐसे बड़े- बड़े लोगों पर हाथ डालते हाथ कांपते हैं .कहा जाता था कि 1980 और 1990 के दशक में इस्लामाबाद के सबसे ताक़तवर व्यक्ति डॉ. ख़ान ही थे.

इस दौरान ये तथ्य सामने आया कि ए .क्यू .खान ने क़रीब 13 बार उत्तर कोरिया का दौरा किया और उन्होंने उत्तर कोरिया को यूरेनियम संवर्धन की तकनीक दी साथ ही लीबिया को भी परमाणु तकनीक बेची.
पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी आत्मकथा में इस पर विस्तार से लिखा है.उन्होंने लिखा है कि ए .क्यू .खान राष्ट्र के हीरो हो चुके थे . परवेज़ मुशर्रफ़ ने ए .क्यू .खान की करतूत का सिलसिलवार वर्णन कर लिखा कैसे खान ने दुनिया के सामने पाकिस्तान की फ़ज़ीहत कराई .

उन्होंने लिखा -” मुझे काफी तेजी से अन्तर्राष्ट्रीय चिंताओं को संतुष्ट करना था और उधर अपने इस हीरो की समर्थक पाकिस्तान की जनता को क्षुब्ध होने से रोकना था …उन पर खुला मुकदमा चलाना कठिन था ,जनता विरोध करेगी फिर चाहे तथ्य कैसे भी हों .”

परवेज़ मुशर्रफ़ की इन पंक्तियों पर गौर करिये , सोचिये कोई भी यदि झूठा राष्ट्रवाद फैलाकर देश लूटे ,लोगों को खतरे में डाले तो भी उस पर ‘जन भावनाओं ‘ को ध्यान में रखते हुए ऊँगली तक नहीं उठाई जा सकती …!!!

समझिये !!!

आगे ए .क्यू .खान पर मुक़दमा न चलाने का आश्वासन देकर उन्हें केंद्रीय मंत्री का दर्ज़ा देकर सलाहकार बनाया गया इस तरह पाकिस्तान सरकार ने जनता को नाराज़ किये बिना जनता के हीरो को अपनी निगरानी में रखते हुए ससम्मान परमाणु कार्यक्रम से अलग रखा !

वैसे रविवार को पाकिस्तान का राष्ट्रध्वज आधा झुका रहा . खान को एक ऐसा व्यक्ति बताया गया है जिन्होंने मुस्लिम जगत का पहला परमाणु बम बनाया. ये सच भी है गरीबी ,बेरोजगारी झेलते पाकिस्तान ने इनके नेतृत्व में परमाणु बम बनाया . इससे पहले कभी कुलदीप नैयर से इनके इंटरव्यू जो बातचीत पर आधारित थी ,उसमे खान ने संकेत दिए थे अगर पाकिस्तान परंपरागत युद्ध में हारेगा तो परमाणु हथियार के इस्तेमाल से नहीं चूकेगा .

कुलदीप नैयर का यह इंटरव्यू बहुतचर्चित हुआ .इसे पाकिस्तान के न्यूक्लियर स्टैंड के तौर पर भी देखा गया .बाद में बम आया भी , जनता फूली न समाई …इसलिए ए .क्यू .खान के न रहने पर इस बात को भी याद रखना चाहिए कैसे झूठा राष्ट्रवाद किसी बम से कम खतरनाक नहीं.

लेखक – अपूर्व गर्ग

(ये लेखक के निजी विचार हैं)