लेखक वो फूल हैं जहां भी हों अपनी सुगंध बिखेरेंगे. लेखक सरकारी नौकरी में हो तो वो गुलाब की तरह काँटों से घिरा ज़रूर है पर उसकी सुगंध कौन रोक सकता है? पन्ने पलटिये सरकारी प्रशासनिक बड़े पदों पर रहते कई लेखकों ने अपने अंदाज़ में सर्वोत्कृष्ट लिखा. अपनी निर्धारित सीमा के भीतर अपने अलग अंदाज में तो बात रखी ही जा सकती है चाहें कितनी ही लक्ष्मण रेखाएं क्यों न खींची हों. ये कहना अभी सरकारी नौकरी में हूं सेवानिवृत्ति के बाद लिखूंगा वो लेखक ही कैसा? वो पुष्प ही कैसा जिससे उसकी सुगंध न फैले.

श्री लाल शुक्ल जी के ‘राग दरबारी ‘ ने हिंदी साहित्य में एक अलग जगह बनाई. सोचिये उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े पदों पर आसीन रहे , सूचना निदेशक रहे अफसर ‘राग दरबारी ‘ से सत्ता और सरकार को आईना दीखा देते हैं . ये और बात है इस उपन्यास को काफी समय तक प्रकाशित होने की अनुमति न मिली थी पर जब प्रकाशित हुआ तो इसकी लोकप्रियता ने न जाने कितने रिकॉर्ड ध्वस्त किए.1969 में श्रीलाल शुक्ल को राग दरबारी ‘ पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला. 1986 में ये दूरदर्शन पर धारावाहिक के रूप में भी लोकप्रिय रहा. इसी कड़ी में इनका ‘बिश्रामपुर का संत’ भी याद रखें.

श्री लाल शुक्ल का बहुत सी भाषाओं अंग्रेजी , अवधी ,हिंदी ,उर्दू संस्कृत पर सामान अधिकार था. सुप्रसिद्ध कवि और प्रशासक रहे सुदीप बैनर्जी की कविताएँ कौन भुला सकता है .सुदीप जी नहीं हैं पर उनकी कविताओं के चिराग जल रहे हैं ..

”एक और बच्चा मर गया
गिनती में शुमार हुआ
तमाम मेहनत से सीखे ककहरे
पहाड़े गुना भाग धरे रह गए….”

सुदीप बनर्जी कवि, चिंतक, साहित्यशिल्पी और मध्य प्रदेश शासन में प्रमुख सचिव, मानव संसाधन विकास मंत्रालय में सचिव रहे. वरिष्ठ आई .ए .एस ने कभी सिविल सेवाओं पर 2008 में एक लम्बा आलेख लिखा था ,वो ढूंढ के पढ़िए समझ आएगा सुदीप बैनर्जी का मतलब. भोपाल गैस त्रासदी के संदर्भ में उनकी लिखी कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है:

”…मैंने देखा है ऐसों को अक्सर
सब बेखबर हैं
अपने-अपने धंधों में मशगूल
इतनी तबाही के बाद इतना बड़बोलापन
इतने जन्मोत्सव, इतने इश्तेहार
हम सब समकालीन हैं, इन सबके हमराह
जरायमपेशे में या चश्मदीद
खामोशी के गुनाहगार…”

हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार, कवि रवीन्द्रनाथ त्यागी को सरस्वती सम्मान, चकल्लस पुरस्कार, टेपा पुरस्कार, व्यंग्यश्री पुरस्कार, शरद जोशी पुरस्कार और हरिशंकर परसाई पुरस्कार मिले. हरिशंकर परसाई ने त्यागी जी के लिए कहा था ‘ ‘इतना विट संपन्न गद्य मुझसे लिखते नहीं बनता..’ रवीन्द्रनाथ त्यागी सिविल सर्विसेस की परीक्षा में सफल होकर इंडियन डिफेन्स एकाउंट्स में पदस्थ थे.

पूर्व पुलिस महानिदेशक विभूति नारायण राय जो महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति रहे उन्होंने पुलिस के उच्च पदों पर रहते जो लिखा वो कितनाचुनौती पूर्ण है. ‘शहर में कर्फ्यू ‘ ,’किस्सा लोकतंत्र ‘ ,’तबादला ‘ जैसे उपन्यासों से जो आवाज़ उठाई ऐसे कितने आईपीएस हैं ? खासकर ऐसे कितने आईपीएस लेखक हैं ? फिलहाल मैंने बात सिर्फ हिंदी लेखक – अफसरों तक सीमित रखी है वरना उस ज़माने में गैर हिंदी लेखक कवि सीताकांत महापात्र जैसे न जाने कितने रहे हैं..

उत्तर प्रदेश के ही वरिष्ठ अफसर और प्रसिद्ध लेखक गोविन्द मिश्र को याद करिए. उनका उपन्यास ‘अरण्य तंत्र ‘कैसे अफसरशाही का कच्चा चिटठा बेबाकी से खोलता है .गोविन्द मिश्र जी ने 53 से ज़्यादा किताबें लिखीं. वे केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष से सेवानिवृत्त हुए हैं. लाल पीली जमीन, हुजूर दरबार जैसे कई उल्लेखनीय हैं.

कभी बस्तर के कलेक्टर रहे आईएएस डॉ बीडी शर्मा जिन्होंने बाद में अपना जीवन आदिवासियों, शोषितों और वंचितों को समर्पित किया , उनकी किताबें और सारा लेखन जनता के लिए अमूल्य निधि है. वो बेहतरीन लेखक थे और ‘गणित जगत की सैर’, ‘बेज़ुबान’, ‘वेब ऑफ़ पोवर्टी’, ‘फ़ोर्स्ड मैरिज इन बेलाडिला’, ‘दलित्स बिट्रेड’ उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं और सबसे पहले नाम आना चाहिए अशोक वाजपेयी का जिन्होंने एमपी को ही नहीं देश को भारत भवन दिया . सत्रह कविता संग्रह सहित न जाने कितनी किताबें ,कितने अनुवाद ,कितना संपादन उन्होंने किया .

सारी असहमतियों के बावजूद दूसरा अशोक वाजपेयी हिंदी प्रदेशों से कोई निकला ? अशोक वाजपेयी की तीखी आलोचना करने के बावजूद राजेंद्र यादव ने लिखा था “सबके बावजूद मैं इतना वाजिब श्रेय अशोक वाजपेई को ज़रूर देना चाहूंगा कि देश के हर प्रांत में करोड़ों के बजट और तेजस्वी आईएएस अफसर बैठे हैं -मगर भारत भवन सिर्फ अशोक ही बनवा सकता था ….[क्यों नहीं कोई दूसरे हिंदी – प्रदेश से कोई दूसरा अशोक वाजपेई सामने आया ?] कला और संस्कृति के क्षेत्र में शीर्षस्थ लोगों को अपने साथ वही जोड़ सकता था .वह पैनी दृष्टि वाला समीक्षक .प्रतिभाशाली कवि,अत्यंत समर्थ भाषा शिल्पी और सक्रिय स्वप्नदर्शी है –योजना से लेकर क्रियान्वयन तक कुशल व्यवस्थापक …..”

‘अगले वक़्तों के हैं ये लोग ‘ पर आज की पीढ़ी के अफसरों की कितनी पुस्तकें आयीं ? देश के लिए इन्होने क्या लिखा ? सोशल मीडिया में इनमें कई ट्रेंड करते हैं पर साहित्य में इनका क्या योगदान है ? देश के मुद्दों पर ये क्या सोचते हैं ? क्या अब इस पीढ़ी में लेखक नहीं हैं ? लेखक तो मिसरी की वो डली है जिसमें भी डाला जायेगा धीरे -धीरे अपनी मिठास छोड़ेगा ही. सवाल है आज के अफसरों में लिखने की कुछ मिठास या खटास ही सही, ये बची है ?

लेखक – अपूर्व गर्ग