फेसबुक अपने बोट्स के आपसी संवाद को लेकर किए गए प्रयोग को लेकर सुर्खियों में है. हुआ यूं था कि फेसबुक ने दो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बोट्स बनाए थे. इन्हें आपस में अंग्रेजी में बातचीत करने के लिए प्रोग्राम किया गया था. लेकिन इसे चलाने वाले उस समय भौंचक्के रह गए जब इन्होंने अपनी खुद की भाषा बना ली और उसी भाषा में आपस में बातचीत करने लगे. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का ये प्रयोग जब असफल हुआ तो फेसबुक को घबराकर ये प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा.

ये प्रोजेक्ट दुनिया में भविष्य के एक खतरे का संकेत है. ये किस तरह का खतरा है इसे समझने के लिए कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है. आप अपने मोबाइल की ओर नज़र उठाकर देख लीजिए और सोचिए पांच साल में ये कैसे और कितनी तेज़ी से आपके हाथ में बदला. ऐसा कोई काम शायद ही बचा हो जो मोबाइल पर निर्भर न हो.

आज आपका मोबाइल आपकी आवाज़ के कमांड पर काम करता है. अगर आप ब्लूटुथ का इस्तेमाल करते हैं तो यह मोबाइल आपकी वॉइस कमांड को समझता है. आप बोलकर कॉल कर सकते हैं, एसएमएस कर सकते हैं. बोलकर लिख सकते हैं. जल्द ही वायस कमांड से आप फेसबुक, व्हाट्सअप जैसे थर्ड पार्टी के एप्लीकेशन कर पाएंगे. यानी बहुत जल्द आपका मोबाइल एक ऐसे रोबोट में तब्दील हो जाएगा जो आपके पीए की तरह काम करेगा. आप उसे बोलिए वो उसे सुनकर आपके आदेश का अनुपालन करेगा आपको बेहतर विकल्प सुझाएगा.

इस दिशा में क्या काम हो रहा है इसे समझने के लिए आप गूगल प्ले स्टोर पर जाईए और पर्सनल असिस्टेंट सर्च करिए आपको कई एप्प मिलेंगे जो आपके पीए की तरह काम करते हैं. आप उन्हें अलार्म सेट करने को कहिए. रिमाइंडर कराईए. कुछ नोट कराईए. ये सभी आपके मौखिक आदेश को सुनते ही उस पर अमल करते हैं.

अभी गूगल का वाइस कमांड इनता सटीक काम करता है कि वो एक ही भाषा के अलग-अलग जगहों के उच्चारण को समझ सकता है. अगर उससे गलती हो जाए तो उसे सुधारकर तुरंत ठीक कर लेता है. अब गूगल ने अपने कई अहम एप्प को अगले जेनरेशन में ट्रांसफॉर्म करना शुरु कर दिया है. अगला जेनरेशन यानी जहां आप कंप्यूटर को आवाज़ के जरिए संचालित करेंगे.

गूगल ट्रांसलेटर, ट्रांसक्रिस्प्शन और नेवीगेशन अब करीब अस्सी फीसदी मौखिक आदेश का अनुपालन करने में दक्ष हैं. आपको कहीं जाना है तो अब आपको किसी से रास्ता पुछने की जरूरत नहीं पड़ती आपको गूगल का नेवीगेशन जिसे मैप के नाम से जाना जाता है आपके गंतव्य तक पहुंचा देता है. रास्ते में हर मोड़ पर यह वाइस के द्वारा आपको गाईड करता है. अगर आप गलत जाते हैं तो फौरन वैकल्पिक मार्ग सुझाता है.

सिर्फ गूगल ही नहीं बल्कि कई कंपनियां कंप्यूटर को नए जेनेरेशन में ले जाने को तैयार हैं जहां काम करने के लिए आपको कुछ लिखना या टाइप नहीं करना पड़ेगा बल्कि ये सीधे आपकी बात सुनकर काम करेगा. एक बार ये काम शुरु होते ही दुनिया के सारे कंप्यूटर इसी तर्ज पर बदल दिए जाएंगे. तब इस दुनिया में अचानक कई अरब कंप्यूटर रोबोट में तब्दील हो जाएंगे.

जब इंसानों की जगह मशीनें लेती हैं तो एक तरफ उत्पादन बढ़ता है तो दूसरी तरफ बेरोज़गारी. यहां तो मामला रोबोट का है. आम लोगों की ज़िंदगी के साथ एक दक्ष कंप्यूटर या रोबोट का जुड़ना लाखों लोगों को पल भर में बेरोज़गार कर सकता है. मशीने बड़ी तेज़ी से काम करने में इंसानों की जगह ले रही हैं. रिसर्च, ट्रांसलेशन, ट्रांसक्रिप्शन जैसे काम गूगल और फेसबुक ने खत्म करने की शुरुआत कर दी है.

ओला और एमाज़ोन जैसी साइट ने टैक्सी और दुकानदारी के व्यवसाय को बुरी तरह प्रभावित किया है. ऑनलाइन शॉपिंग साइट की वजह से अमेरिका में कई मॉल्स बंद हो गए हैं. फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर और गूगल के फीचर्स वीडियो प्रोडक्शन को ज़रूरत को कम करते जा रहे हैं. लाइब्रेरी अब डिजिटल हो चुकी है. ये एप्प पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के शुरुआती स्वरुप हैं. 

फेसबुक पर वीडियो चैट करते हुए आज जो स्टीकर्स अप्लाई करते थे पहले वो ऑफलाइन बिना ग्राफिक्स और थ्रीडी एनिमेशन आर्टिस्ट के संभव नहीं था लेकिन अब एक एप्प यही काम कर रहा है. आपका फोन इतना स्मार्ट है कि वो हाई एंड कैमरे का काम करता है. उसने कैमरामैन की ज़रूरत को खत्म कर दिया है. इसी तरह एनिमेटेड एंकर और वीओ आर्टिस्ट आ गए हैं. क्रोमा से कहीं जाकर शूटिंग करने की ज़रूरत खत्म हो गई है.

कुछ समय के बाद कॉल सेंटर का सारा काम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युक्त रोबोट या सिस्टम करते दिखेंगे. कभी सोचा है कि मकान बनाने वाले रोबोट जब मार्केट में आ जाएंगे तो कितने करोड़ लोग बेरोज़गार होंगे. दरअसल हम उस वक्त में जी रहे हैं जिसमें बड़ी तेज़ी से टैक्नालिजी धीरे-धीरे विकास के नाम पर इंसानी ज़रूरत को खत्म करती जा रही है. इस बात पर यकीन करना आसान नहीं है कि दुनिया की सबसे कठिन और बड़ी मशीनों में शुमार जेट विमान के निर्माण में केवल एक आदमी की ज़रूरत पड़ती है. बाकी सारा काम रोबोट कर रहे हैं. इसी तरह मेडिकल में सर्जरी के काम के लिए रोबोट पर डॉक्टरों से ज़्यादा भरोसा किया जा रहा है.

 

क्या वाकई में हम मशीनों को खिलौना बनाते जा रहे हैं या फिर हम खुद मशीनों के हाथ धीरे-धीरे खिलौना बनते जा रहे हैं. अगर आप व्यापक स्तर पर देखें तो मुझे दूसरी बात ज्यादा सही प्रतीत होती है. हम अनजाने में उसी दिशा में बढ़ रहे हैं और जो पूंजी की ताकत हमें उसी ओर धकेल रही हैं.

जिसे हम आज विकास मान रहे हैं. प्रकारांतर से वो इंसानों की ज़रूरत को प्रकृति में खत्म करके आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस युक्त रोबोट का युग लाने की दिशा में बढ़ने की कवायद है. इस बात को समझने के लिए सबसे अच्छा उदाहरण सड़क है. भारत में बड़ी तेज़ी से सड़कों को चौड़ा करने का काम चल रहा है. जंगल, पहाड़ को काटकर सड़कें बनाई या चौड़ी की जा रही हैं. क्या वाकई में ये सड़के हमारे लिए बन रही हैं. या फिर ये सड़कें ज़्यादा से ज़्यादा गाड़ियों यानी मशीनों के लिए बन रही है. इसी तरह हर क्षेत्र में हो रहा है.

कुछ समय बाद इन सड़कों पर बिना ड्राइवर के गाड़ियां चलेंगी. गूगल, एप्पल, टेस्ला सहित कई कंपनियां इस पर काम कर रही हैं. कभी भी इसे लांच किया जा सकता है. इसी तरह ड्रोन आने वाले समय का बिना पायलट की हवाई जहाज़ हैं. अलीबाबा के संस्थापक जैक मा और महान वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग भी मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आने वाले समय में बेरोज़गारी का सबसे बड़ा कारण बनेगा. जैक मा इसकी वजह से तीसरे विश्वयुद्ध की भविष्याणी करते हैं तो स्टीफन हैकिंग कहते हैं कि भावनात्मक, रचनात्मक और पर्यवेक्षण जैसे काम ही इंसानों के पास बचेंगे बाकी सारे काम आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस वाले रोबोट्स या कंप्यूटर के पास चले जाएंगे.

दरअसल, इंसान इतनी तेज़ी से मशीनों की तरफ भाग रहा है ये सब अवश्यभावी लगता है. इंसान के पास सोचने का वक्त खत्म हो चुका है. क्योंकि हमारी तालीम हमारी व्यवस्था ने ऐसी दुनिया बनाकर रख दी है जहां इंसानों से ज़्यादा कद्र मशीनों की है. हम हर हफ्ते कंप्यूटर में नई टैक्नोलॉजी का अविष्कार कर रहे हैं ताकि हम ज़्यादा फास्ट और ज़्यादा आधुनिक और सहूलियतों वाले बन सकें. इसके लिए हमने इंजीनियरों की फौज तैयार कर दी है.

कभी थोड़ा सा आपको वक्त मिलेगा तो सोचिए कि इंसानी ज़िंदगी को बेहतर और स्वस्थ्य बनाने रखने के लिए डॉक्टर तैयार करने के लिए हम क्या कर रहे हैं. हम मशीनों की तुलना में बीमारियों से लड़ने के लिए ज़रूरी रिसर्च में कम पैसा क्यों खर्च कर रहे हैं. जाहिर है हमारे लिए इंसानों से ज़्यादा कीमती मशीनें या रोबोट्स हो चुके हैं.