रायपुर. आर्थिक तंगी, दरिद्रता व अन्य पैसों से संबंधित समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए हमारे शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं. इस उपायों के माध्यम से हम इस सभी परेशानियों से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं. हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्त्रोतों का उल्लेख मिलता है जिनसे पैसों से संबंधित सभी परेशानियां जल्द दूर हो जाती है. लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहिए. अतः लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए सबसे अच्छा दिन शक्रवार का माना जाता है. इस दिन लक्ष्मी प्राप्ति के लिए दुर्लभ श्री श्अष्टलक्ष्मी स्तोत्रश् करना चाहिए. इसका शुक्रवार के दिन श्रद्धापूर्वक पाठ करने से व्यक्ति को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.

स्त्रोत पाठ करने के लिए ऐसे करें पूजन

स्त्रोत का पाठ करने के लिए घर को गंगा जल से शुद्ध कर लें और ईशान कोण की दिशा में माता लक्ष्मी कि प्रतिमा या तस्वीर लगा लें. इसके साथ ही यदि श्री यंत्र हो तो उसे भी स्थापित कर लें. श्री यंत्र को सामने रख कर उसे प्रणाम करना चाहिए और अष्टलक्ष्मियों का नाम लेते हुए उन्हें प्रणाम करें व धूप, दीप, गंध और श्वेत फूलों से माता की पूजा करनी करें. इसके पश्चात उक्त मंत्र बोलना चाहिए. पूजा करने के बाद लक्ष्मी जी कि कथा सुनें. इस दिन लक्ष्मी जी को खीर का भोग लगाएं.

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र

1.आद्य लक्ष्मी – पद्म पुराण में कथा है कि पार्वती के पूछने पर शिव जी बताते हैं कि देवी आद्य लक्ष्मी और विष्णु भगवान दोनों ही सर्वत्र व्याप्त हैं. देवी लक्ष्मी ही सबकी आदिभूता, त्रिगुणमयी और परमेश्वरी हैं. जो भक्त देवी आद्य लक्ष्मी की पूजा करता है उनके लिए संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं हैं. देवी आद्य लक्ष्मी का निवास सूर्य के मध्य में है. इस दृष्टि से देवी कुष्मांडा ही आद्य लक्ष्मी हैं.

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहोदरि हेममये,

मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि, मंजुल भाषिणी वेदनुते।

पंकजवासिनी देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनी, आद्य लक्ष्मी परिपालय माम्।।

2. धान्यलक्ष्मी – ये संसार में धान्य यानि अन्न या अनाज के रूप में वास करती हैं. धान्य लक्ष्मी को मां अन्नपूर्णा का ही एक रूप माना जाता है. इनको प्रसन्न करने के लिए कभी भी अनाज या खाने का अनादर नहीं करना चाहिए.

अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी, वैदिक रूपिणि वेदमये,

क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि, मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।

मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।

3. धैर्य लक्ष्मी – मां लक्ष्मी का ये रूप भक्तों को धैर्य लक्ष्मी प्रदान करती है, जिससे ऐसी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, जो धैयपूर्वक आपके पास निवास करती है.

जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि, मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,

सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते।

भवभयहारिणी पापविमोचिनी, साधु जनाश्रित पादयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।

4. गजलक्ष्मी – गज लक्ष्मी हाथी के ऊपर कमल के आसन पर विराजमान हैं. मां गज लक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी के रूप में पूजा जाता है. इनकी आराधना से संतान की प्राप्ति होती है. राजा को समृद्धि प्रदान करने के कारण इन्हें राज लक्ष्मी भी कहा जाता है.

जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये,

रथगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते।

हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणी पादयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनी, गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम्।।

5. संतानलक्ष्मी – संतान लक्ष्मी को स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है. इनके चार हाथ हैं तथा अपनी गोद में कुमार स्कंद को बालक रूप में लेकर बैठी हुई हैं. माना जाता है कि संतान लक्ष्मी भक्तों की रक्षा अपनी संतान के रूप में करती हैं.

अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि, राग विवर्धिनि ज्ञानमये,

गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते।

सकल सुरासुर देवमुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनी, सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम्।।

6. विजयलक्ष्मी – माता लक्ष्मी के इस रूप को जय लक्ष्मी या विजय लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है. मां के इस रूप की साधना से भक्तों की जीवन के हर क्षेत्र में जय–विजय की प्राप्ति होती है. जय लक्ष्मी मां यश, कीर्ति तथा सम्मान प्रदान करती हैं.

जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,

अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर, भूषित वसित वाद्यनुते।

कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शंकरदेशिक मान्यपदे,

जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विजयलक्ष्मी परिपालय माम्।।

7. विद्यालक्ष्मी – मां के अष्ट लक्ष्मी स्वरूप का आठवां रूप विद्या लक्ष्मी है. ये ज्ञान, कला तथा कौशल प्रदान करती हैं. इनका रूप ब्रह्मचारिणी देवी के जैसा है. इनकी साधना से शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है.

प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये,

मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे।

नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्।।

8. धनलक्ष्मी – मां लक्ष्मी के स्वरूप को धन लक्ष्मी कहा जाता है. इनके एक हाथ में धन से भरा कलश है तथा दूसरे हाथ में कमल का फूल है. धन लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं तथा कर्ज से मुक्ति मिलती है. पुराणों के अनुसार, मां लक्ष्मी ने ये रूप भगवान विष्णु को कुबेर के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिया था.

धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि, दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,

घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम, शंख निनाद सुवाद्यनुते।

वेद पुराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम्।।

अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।

विष्णु वक्षरूस्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी।।

शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयरू।

जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्।।

इस प्रकार अष्ट लक्ष्मी की पूजा एवं मंत्रजाप, दान तथा सत्संग करने से जीवन में समस्त कष्ट अवश्य दूर होंगे.