रायपुर. एक फिल्म का डायलॉग है अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, राजा वही बनेगा जो हकदार होगा. भले ये फिल्मी डायलॉग है, लेकिन छत्तीसगढ़ में स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना इसे सही साबित कर रही है. इस योजना ने साबित कर दिया है कि बेहतर शिक्षा पर सभी का हक है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब कांकेर के नरहरदेव शासकीय उत्कृष्ट हायर सेकेंडरी स्कूल पहुंचे तो पालक आभार जताते हुए भावुक हो गए.
रूपा और मुनिका का कहना है कि, हमारी आर्थिक और पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं है कि बच्चों को महंगे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ा सकें. यहां से पहले जिस स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे थे वह नाम के लिए ही इंग्लिश मीडियम स्कूल था. आत्मानंद स्कूल में एडमिशन के बाद बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते हैं. अभी समर कैंप में एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटी भी सिखाई गई है. बच्चों को सेल्फ डिफेंस भी सिखा रहे हैं.
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पढ़ें दो माताओं ने क्या कहा…
केस 1- मैं गुपचुप का ठेला लगाती हूं. आमदनी मुश्किल से 50 रुपए एक दिन में होती है. इसके पहले घर-घर जाकर काम करती थी पर लॉकडाउन में वो भी छूट गया. ससुराल वाले दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे. पति शराब पीकर मारपीट करते रहे, इतने जख्म दिए हैं कि याद भी नहीं करना चाहती. रूपा अपनी कहानी बताते हुए रो पड़ीं. वे आगे कहतीं हैं आप ही बताइये 15 सौ रुपए महीने में क्या घर चलाती, क्या अपने बच्चों को पढ़ा पाती. मैं जब ठेला लेकर निकलती हूं तो बच्चे घर पर रहें, इसकी व्यवस्था भी करनी थी. एक दिन कबाड़ी वाले से तीन सौ रुपए में एक टीवी खरीदी ताकि बच्चे घर में बिजी रहें और मैं काम पर जा सकूं.
केस 2- मुनिका की कहानी भी रूपा की तरह है. पति से घरेलू हिंसा से पीड़ित थीं. चार साल पहले पति ने अकेले छोड़ दिया. पूरी तरह बूढ़े माता-पिता पर निर्भर हैं. मुनिका बतातीं हैं कम उम्र में मेरे हार्ट का ऑपरेशन हो चुका है इसलिए मेहनत का काम नहीं हो पाता है. दो हजार रुपए महीने की दवाई का लगता है. प्राइवेट स्कूल में बच्चों की फीस अफोर्ड नहीं कर सकती इसलिए वहां से निकाल लिया है.
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