रायपुर. बेबी किलर संजीवनी एक्सप्रेस-108 का मामला सुनकर हर किसी का दिल पसीज गया. छत्तीसगढ़ के राजधानी में घटित ये शर्मनाक घटना राष्ट्रीय मीडिया चैनलों में सुर्खियाँ बन चुका है. इस मामले पर नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर सीएम को पत्र लिखा है. इधर 108 के लापरवाह कर्मचारी-अधिकारी ने सफाई देने सामने आ चुके हैं. यहाँ ये बताना भी लाजिमी होगा कि इस संवेदनशील मामले पर मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने भी कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है.

ये लिखा है है सिंहदेव ने पत्र में…

संजीवनी एंबुलेंस 108 की लापरवाही के कारण हुए नवजात बच्चे की मौत की जांच एवं दोषी के विरुद्ध कार्यवाही बाबत डॉ रमन सिंह का ध्यान राजधानी रायपुर में घटित एक लोमहर्षक घटना की ओर दिलाना चाहूंगा. जिसमें 108 संजीवनी एंबुलेंस का दरवाजा लॉक होने के कारण एक मासूम की असामयिक मौत हो गई. परिजन अपने 2 माह के बच्चे के इलाज हेतु 108 एंबुलेंस में मेकाहारा लाए थे. जहां एंबुलेंस का दरवाजा लॉक होने के चलते बच्चे का दम घुट गया. लगभग ढाई घंटे तक बच्चा एंबुलेंस में बंद था. इस दौरान एंबुलेंस में ऑक्सीजन भी खत्म हो गया. जिसके कारण मेकाहारा परिसर में ही बच्चे की मौत हो गई.

इस प्रकरण में प्रथम दृष्टया विभागीय कर्मचारियों द्वारा लापरवाही की पुष्टि होती है. जिसका खामियाजा एक परिवार को अपने बच्चे को खोकर चुकाना पड़ा. किसी भी स्थिति में इस लापरवाही जनित घटना के लिए दोषी व्यक्तियों को माफ नहीं किया जा सकता है. इस घटना से जुड़े अन्य पहलुओं जैसे दरवाजा लॉक होने पर कांच को क्यों नहीं तोड़ा गया. दरवाजा खोलने के अन्य वैकल्पिक उपाय समय पर क्यों नहीं किए गए. एंबुलेंस में जब बच्चे को आपातकालीन स्थिति में लाया गया जो उसे तत्काल उतारा क्यों नहीं गया. एंबुलेंस में ही क्यों छोड़ दिया गया इत्यादि पहलुओं की भी समीक्षा होनी चाहिए. इस मामले की सूक्ष्मता से जांच परीक्षण किया जाते हुए दोषियों के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध कर कानूनी कार्रवाई की जावे. ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो.

108 के अधिकारी-कर्मचारी ने दी ये सफाई…

पीआरओ पंकज रहांगडले ने कहा कि इस केस को हैंडल करने में मात्र 15 मिनट का समय लगा है. हॉस्पिटल पहुंचते ही पहले 10 से 12 मिनट गेट खोलने की कोशिश की गई. बाद में ड्राइवर साइड की खिड़की से बच्ची को बाहर निकालकर अंबेडकर में भर्ती कराया गया. इस केस को हैंडल करने में कहीं भी दो से ढाई घंटे का समय नहीं लगा. साथ ही घटनाकारी संजीवनी एक्सप्रेस में कार्यरत कर्मचारी शंकर लाल साहू का कहना है कि बच्ची का पल्स, बीपी, हार्ट रेट कुछ भी काम नहीं कर रहा था. बच्ची को पहले ही निकाल लिया गया था. बाद में एम्बुलेंस को गैरेज ले जाकर गेट खुलवाया गया.

ये रहा घटनाक्रम…

प्रदेश के सबसे बड़े अंबेडकर अस्पताल में मंगलवार को जीवन देने वाली संजीवनी एक्सप्रेस ने मासूम की जान ले ली. एंबुलेंस का दरवाजा नहीं खुलने की वजह से मासूम ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया. मासूम के परिजन उसे उपचार के लिए संजीवनी एक्सप्रेस में लेकर पहुंचे थे लेकिन दरवाजा नहीं खुल पाया. लापरवाही की ये घटना अंबेडकर अस्पताल के परिसर में हुई, ड्राइवर दरवाजा खोलने की कोशिश करता रहा अंत तक दरवाजा नहीं खुला और मासूम की सांस थम गई.

अस्पताल सूत्रों के मुताबिक 2 माह बच्चे के दिल में छेद था और उसे नया रायपुर के सत्य साईं अस्पताल जाना था लेकिन संजीवनी का चालक उन्हें अंबेडकर अस्पताल लेकर पहुँच गया. बच्चे का परिवार बिहार के गया जिले के रहने वाला है. बच्चे के पिता ने बताया कि वो ट्रेन से रायपुर आये थे, बच्चे की ज्यादा तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें इमरजेंसी सेवा के संजीवनी एक्सप्रेस को स्टेशन बुलाया और इसी से वे अस्पताल पहुंचे थे.