सुशील सलाम, कांकेर। कांकेर जिले के कई स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है. कई स्कूल तो केवल एक शिक्षक के ही भरोसे चल रहे हैं. शिक्षक की कमी के चलते बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. जाहिर है कि ऐसे में नौनिहालों का भविष्य खतरे में है.
जहां बच्चे और उनके परिजन एक सुनहरे भविष्य की कामना करते हैं और चाहते हैं कि वे पढ़-लिखकर कुछ बन सकें. अपनी और अपने परिवार की ख्वाहिशों को पूरा कर सकें. समाज और देश के लिए कुछ कर सकें. लेकिन बिना अच्छी बेसिक पढ़ाई के ये संभव नहीं है. ऐसे में जिले में शिक्षा का ये हाल उन्हें मायूस करता है.
प्राथमिक शाला में सिर्फ एक शिक्षक
कांकेर के अंतागढ़ विकासखंड के कोटकोड़ो गांव के प्राथमिक शाला में पढ़ने वाले करीब 28 बच्चों को शिक्षा देने का जिम्मा मात्र एक शिक्षक मेघनाथ नेताम ने उठा रखा है. हालांकि सरकार ने यहां दो शिक्षकों की नियुक्ति कर रखी है. उसके बाद भी एक शिक्षक हातिम बोहरा साल में सिर्फ दो बार स्कूल में दर्शन देने आते हैं. बच्चों ने बताया कि कांकेर में रहने वाले गुरुजी हातिम बोहरा खास मौकों पर ही दिखाई पड़ते हैं.
बच्चों ने बताया कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर केवल झंडा फहराने के लिए ही शिक्षक हातिम बोहरा आते हैं. ऐसे में उनकी इस लापरवाही और कामचोरी से बच्चों का भविष्य अधर में है. पाठ्यक्रम भी अधूरा है. वहीं दूसरे शिक्षक मेघनाथ नेताम भी बच्चों को मोबाइल पर वीडियो दिखाकर कुछ ही देर में निकल लेते हैं. पूछताछ करने पर बच्चों ने बताया कि दोपहर ही गुरुजी बच्चों की छुट्टी कर देते हैं और खुद भी अपने घर चले जाते हैं.
ग्रामीण जुगरूराम कोर्राम की मानें तो स्कूल में कई वर्षों से शिक्षक के पद खाली पड़े हैं. गांववालों ने जिला प्रशासन से कई बार शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने की मांग की, लेकिन उनकी आवाज अब तक अनसुनी है.
स्कूल में पीने तक पानी भी नहीं उपलब्ध
कोटकोड़ो गांव में प्राथमिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पीने का साफ पानी भी नसीब नहीं हो रहा है. स्कूल के सामने भले ही दो हैंडपंप लगाया गया है, लेकिन दोनों हैंडपंप बंद पड़े हैं. बच्चों को झरिया का पानी पीकर अपनी प्यास बुझानी पड़ रही है. स्कूल के पीछे एक शौचालय का निर्माण किया गया है. उसे देखकर पता चलता है कि कई महीनों से शौचालय का इस्तेमाल नहीं किया गया है, क्योंकि शौचालय में पानी ही नहीं है और शीट पर कचरा और मिट्टी भरा हुआ है.
सरकारी दावे खोखले
अब सरकार शिक्षा को लेकर दावे तो बड़े-बड़े करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर ये दावे खोखले ही नज़र आते हैं. जिस तरह से शिक्षा विभाग के आला अधिकारी इन स्कूलों का न तो निरीक्षण करते हैं और न तो लापरवाह शिक्षकों पर कार्रवाई, उससे विभाग की मंशा भी जगजाहिर हो जाती है. इसलिए सरकार को चाहिए कि वो बड़े-बड़े दावे और वादे न करे, बल्कि स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई सुचारू रूप से शुरू करवाए.