नई दिल्ली। देश के सामाजिक-धार्मिक ढांचे को देखते हुए हमने सोचा कि यह (समान-लिंग विवाह) हमारी संस्कृति के खिलाफ है. इस तरह के फैसले अदालतों द्वारा नहीं लिए जाएंगे. इस तरह के कदम कानून की प्रक्रिया से आने चाहिए. यह बात अधिवक्ता और बार काउंसिल ऑफ इंडिया अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय बेंच में समान लिंग विवाह पर चल रही सुनवाई को लेकर कही.

बार काउंसिल ऑफ इंडिया अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में बीसीआई और राज्य बार काउंसिलों की रविवार को हुई एक संयुक्त बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया कि भारत सामाजिक-धार्मिक रूप से सबसे विविध देशों में से एक है. कोई भी ऐसा मामला जिससे मौलिक सामाजिक संरचना के साथ छेड़छाड़ की संभावना है, ऐसा मामला जो हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है, उसे अनिवार्य रूप से केवल विधायी प्रक्रिया के माध्यम से आना चाहिए.

बार काउसिंल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अधिवक्ता मनन मिश्रा.

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रस्ताव में कहा गया कि इस तरह के संवेदनशील मामले में सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला हमारे देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हो सकता है. प्रस्ताव में कहा गया है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है. समाज के विभिन्न वर्गों ने इस पर टिप्पणी की है और इसकी आलोचना की गई है. इसके अलावा, यह सामाजिक और नैतिक रूप से संवेदनशील है.

सुप्रीम कोर्ट से इस मुद्दे को संसद के विचार के लिए छोड़ने का अनुरोध करते हुए बार काउंसिल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस पूरे मामले को संसद पर छोड़ देना चाहिए.

बार काउंसिल ने कहा कि हमारे देश के 99.9% से अधिक लोग समान-लिंग विवाह के विचार का विरोध करते हैं. विशाल बहुमत का मानना है कि इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला हमारे देश की संस्कृति और सामाजिक-धार्मिक ढांचे के खिलाफ माना जाएगा. बार आम लोगों का मुखपत्र है और इसलिए यह बैठक इस अति संवेदनशील मुद्दे पर उनकी चिंता व्यक्त कर रही है. संयुक्त बैठक का साफ मत है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई लापरवाही दिखाई तो यह आने वाले दिनों में हमारे देश के सामाजिक ढांचे को अस्थिर कर देगा.

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