आशुतोष तिवारी जगदलपुर। छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला अपनी ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों के कारण बहुत ही खास है. यूं तो यह क्षेत्र अपनी आदिवासी सांस्कृतिक आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है लेकिन इसकी एक महत्वपूर्ण पहचान यहां मनाया जाने वाला दशहरा है. यहां के लोग दशहरा लगभग 75 दिनों तक मनाते हैं जिसमें आखिरी के पंद्रह दिन सबसे खास माने जाते हैं. इसमें कई तरह की रस्में निभाई जाती है जिसमें बस्तर दशहरे की सबसे महत्वपूर्ण रस्म निशा जात्रा को कल रविवार को रात 02 बजे पूर्ण विधि विधान के साथ पूरा किया गया. इस रस्म को काले जादू कि रस्म भी कहा जाता है. प्राचीन काल में इस रस्म को राजा महाराजा बुरी प्रेत आत्माओं से अपने राज्य कि रक्षा के लिए निभाते थे. जिसमे हजारों बकरों, भैंसों यहां तक कि नर बलि भी दी जाती थी. लेकिन अब केवल 12 बकरों कि बलि देकर इस रस्म कि अदायगी शहर के गुडी मंदिर में पूर्ण कि गई.
निशा जात्रा कि यह रस्म बस्तर के इतिहास में बहुत ह़ी महत्वपूर्ण स्थान रखती है. बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि समय के साथ इस रस्म में बदलाव आया है. पहले इस रस्म में कई हजार भैंसों कि बलि के साथ साथ नर बलि भी दी जाती थी. इस रस्म को बुरी आत्माओं से राज्य कि रक्षा के लिए अदा किया जाता था. अब इस रस्म को राज्य में शान्ति बनाए रखने के लिए निभाया जाता है.
इस अनोखी रस्म को देखने देश विदेश से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं. समय के साथ आज भारत के अधिकतर इलाको कि परम्पराएं आधुनिकीकरण की बलि चढ़ गई हैं.लेकिन बस्तर दशहरे की ये परंपरा यूँही अनवरत चली आ रही है.