आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा महापर्व की परंपरागत और 600 साल पुरानी जोगी बिठाई रस्म मंगलवार को पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ सम्पन्न हुई। इस ऐतिहासिक परंपरा का आयोजन जगदलपुर के सीरासार भवन में किया गया।इस वर्ष भी जोगी की भूमिका आमाबाल गांव के रघुनाथ नाग निभा रहे हैं, जो पिछले पांच वर्षों से इस दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।

नौ दिनों तक गड्ढे में बैठकर जोगी करते हैं तपस्या

मान्यता है कि मावली माता की विशेष पूजा-अर्चना के बाद जोगी सिरासार चौक पहुंचते हैं और गड्ढे में बैठकर नौ दिनों तक तपस्या करते हैं। इस दौरान वे साधना का संकल्प लेते हैं ताकि माता मावली प्रसन्न हों और दशहरा पर्व निर्विघ्न सम्पन्न हो।

विधि-विधान से हुई शुरुआत

रस्म की शुरुआत मावली मंदिर में पुजारी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुई। इसके बाद माता की पूजा-अर्चना और वहां रखी तलवार की विधिवत पूजा की गई। पूजा उपरांत यही तलवार लेकर जोगी सिरासार भवन पहुंचे और प्रार्थना के पश्चात गड्ढे में बैठकर तपस्या का संकल्प लिया।

अनोखी परंपरा को देखने इटली से पहुंचे पर्यटक

इस पारंपरिक रस्म में मांझी-चालकी, पुजारी, बस्तर राजपरिवार के सदस्य और दशहरा समिति के पदाधिकारी उपस्थित रहे। खास बात यह रही कि इस बार भी इटली से पर्यटक इस अनोखी परंपरा को देखने पहुंचे। इस दौरान इटली के रहने वाले मटिया ने कहा कि वे फोटोग्राफर और डॉक्यूमेंट्रिस्ट हैं और बस्तर फेस्टिवल को देखने आए हैं। उन्होंने कहा कि यहां आकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है और यहां के लोग बेहद अच्छे हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, आई लव बस्तर।”

वहीं रस्म के साक्षी बनने के लिए स्थानीय लोगों की सैकड़ों की भीड़ उमड़ पड़ी। बस्तरवासियों का विश्वास है कि जोगी की तपस्या से माता मावली प्रसन्न होती हैं और विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व बिना किसी विघ्न-बाधा के सम्पन्न होता है।