जगदलपुर। यहां विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पूरे धूमधाम ने मनाया जा रहा है. काछन गादी की रस्म पूरी करने के बाद जोगी बिठाई की रस्म भी पूरी कर ली गई है. मान्यताओं और रीति-रिवाजों के बीच मनाए जाने वाले बस्तर दशहरा में हर रस्म का अपना एक खास महत्व होता है.
जोगी बिठाई रस्म का खास महत्व
दशहरा पर्व के दौरान किसी भी तरह का विघ्न नहीं हो, इसलिए जोगी बिठाई की रस्म पूरी की जाती है. विधि-विधान के साथ बस्तर दशहरे के आयोजन स्थल सिरा सहार चौक भवन के अंदर विशेष तरह का गड्ढा बनाया गया है. इस गड्ढे में हल्बा जनजाति का युवक पूरे 9 दिनों तक बिना खाए-पिए मां आदिशक्ति की आराधना में लगा रहता है. मान्यता है कि वो बस्तर के महाराजा के प्रतिनिधि के रूप में निर्जला उपवास करता है. जोगी बिठाई की रस्म के बाद जोगी यहां साधना करते हैं.
काकतीय वंश के राजा पुरुषोत्तम देव ने 14वीं शताब्दी में बस्तर दशहरा की परंपरा शुरू की थी.
बस्तर दशहरा समिति के सदस्य बनमन प्रसाद पाणिग्रही ने बताया कि अब जोगी बिठाई की रस्म के बाद आज से दंतेश्वरी माई की परिक्रमा शुरू होगी. बता दें कि बस्तर दशहरे में होने वाली रथ परिक्रमा दुनियाभर में प्रसिद्ध है.
75 दिनों का बस्तर दशहरा
गौरतलब है कि बस्तर दशहरा 75दिनों तक मनाया जाता है. सबसे पहले काछन गादी की रस्म होती है, जिसमें बस्तर महाराजा कमलचंद्र भंजदेव को काछन देवी निर्विघ्न बस्तर दशहरा मनाने की अनुमति देती है. इस दौरान एक छोटी सी कन्या बेल के कांटों के झूले पर झूलती हुई बस्तर महाराजा को फल देकर दशहरा मनाने की अनुमति देती है. माना जाता है कि कन्या के रूप में स्वयं देवी रहती हैं, जिनसे बस्तर महाराजा दशहरा मनाने की अनुमति लेते हैं.
आज से लोकोत्सव होगा शुरू
आज से यहां लोकोत्सव का शुभारंभ होगा. इसमें सरकार के अलग-अलग विभागों के विकास कार्यों और जनकल्याणकारी योजनाओं की प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया जाएगा.