आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। बस्तर के पेय पदार्थों में से एक ‘मंडिया पेज’ औषधीय गुणों से भरपूर है. रागी से बने इस मंडिया पेज में कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है. कैल्शियम और विटामिन सी से भरपूर इस पेय का गर्मी के मौसम में बस्तर में अधिकतर लोग सेवन करते हैं. डायबिटीज के मरीजों के लिए यह रामबाण की तरह है.

आदिवासी के घरों में मंडिया पेज बनाना सामान्य बात है. खासकर गर्मियों के मौसम में इसकी डिमांड काफी बढ़ जाती है, एक तरफ जहां शहरवासी अपनी प्यास बाजार में मिलने वाले विभिन्न तरह के कोल्ड्रिंक्स और अन्य तरह के सॉफ्ट ड्रिंक से बुझाते हैं, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण अंचलों में तेज गर्मी और धूप से बचाव के लिए ग्रामीणों के लिए ‘मंडिया पेज’ रामबाण होता है. औषधीय गुणों से परिपूर्ण मंडिया पेज शरीर को ताकत देने का काम करता है.

रागी को 12 महीने रखते हैं अपने पास

बस्तर के अंचलों में ग्रामीण रागी को पीसकर बनाते हैं, और 12 महीनों अपने पास रखते हैं. हालांकि, यह बरसात और ठंड में शरीर में काफी ठंड पैदा करता है, इसलिए तेज धूप और गर्मियों में मंडिया पेज का कोई तोड़ नहीं है. बस्तर के आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉक्टर केके मिश्रा के मुताबिक, मंडिया पेज ग्रामीणों के सेहत का सबसे बड़ा राज है, शहरी लोगों की तुलना में ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोग हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ होते हैं, और उनकी जीविका भी काफी लंबी होती है. इसके पीछे बस्तर के वनोपज है. विभिन्न तरह के भाजी खाने के साथ ही बस्तरवासी मंडिया पेज का नियमित रूप से सेवन करते हैं.

मांग कम होने के साथ घट गई रागी की खेती

आधुनिकता के दौर के साथ ही बाजार में विभिन्न तरह के पेय पदार्थ आ गए हैं और गर्मियों के दिनों में खासकर ठंडे कोल्ड ड्रिंक के डिमांड ज्यादा होने लगी है, यही वजह है कि अब लोग इस मंडिया पेज को पहले के मुकाबले उतना महत्व नहीं दे रहे हैं. बस्तर के जानकार श्रीनिवास रथ का कहना है कि बस्तर में अब ग्रामीण अंचलों में बेहद कम लोग ही रागी की खेती कर रहे हैं, और अधिकतर मात्रा में रागी पड़ोसी राज्य ओडिशा से बस्तर पहुंच रही है.

कभी बस्तर का रागी जाता था दूसरे प्रांतों में

जगदलपुर शहर में रहने वाले आटा चक्की संचालक अब्बास ने बताया कि हर साल उनके पास बड़ी मात्रा में लोग रागी पिसवाने पहुंचते थे. गेहूं के आटे के साथ-साथ रागी की सबसे ज्यादा डिमांड थी और इसे पिसवाने आया करते थे. लेकिन अब बहुत कम लोग मंडिया आटा लेने पहुंचते हैं. उन्होंने ने भी वक्त के साथ आए बदलाव की बात कहते हुए बताया कि पहले बस्तर में उत्पादित रागी दूसरे राज्यों में भेजी जाती थी, लेकिन अब आलम यह है कि ओडिसा से रागी बस्तर पहुंच रही है.