कहते है अपनी ख़ुशी के लिए तो हर कोई जीता है, पर जो दूसरो की तकलीफ़ को अपना समझ कर उनकी तकलीफ़ में शामिल हो वही इंसानियत है. असली पुण्य की कमाई दूसरों को सुख दे कर मिलता है और उसका कोई मोल नहीं होता.
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गरियाबंद में तेज गर्मी की वजह से जहां घरों में बैठे लोग परेशान हैं. वहीं कुछ ऐसे लोग भी है जिनके पेट की आग के सामने तपती गर्मी भी छोटी है. जिले में जूते बेचने वाले मोची हो या सब्जी विक्रेता धूप की मार एक साथ सभी झेल रहे हैं. गरियाबंद मेंन रोड हो या बाजार खुले आसमान के नीचे लगाया जा रहा है. नवतपा में 40-45 डिग्री की तपती गर्मी में भी रोड किनारे दुकान लगाने वाले छोटे दुकानदार सब्जी वाले और मोचियों के पास एक छतरी के नीचे बैठने के अलावा और कोई दूसरा सहारा नहीं है. ऐसे समय पर एक नाम जो सबको याद आता भावेस. समाज सेवी भावेश समाज सेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है. हर साल वो प्याऊ लगाते है. साथ ही रेहड़ी मज़दूर और सड़क किनारे बैठे दुकानदारों को धूप से बचने के लिए निःशुल्क छतरी भी वितरण करते है,पूरे जिले में भावेश की इस सरहानिय पहल की चर्चा है और लोग उन्हें भी भावेश भाई छतरी वाले कहते है.
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मेन रोड पर मोची का काम कर रहे मोची बताते हैं कि सुबह 9 बजे से वो जूते चप्पल लेकर घर से निकलते है और रोड पर ही अपना दुकान लगाते है. मेंन रोड में कही पर भी शेड या छांव नहीं होने की वजह से सुबह से ही गर्मी पड़ने लगती है और धूप में ऐसे ही उन्हें जूते बेचने के साथ पोलिस करने के लिए बैठना पड़ता है.
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उनका कहना है कि उनके पास ना तो दुकान है और ना ही वे आर्थिक रूप से इतने मजबूत है कि वे किराए से दुकान ले कर अपना जीवन यापन करे. रोड में बैठने के आलावा उनके पास और कोई रास्ता नहीं है. पेट की आग बुझानी है तो ये गर्मी झेलनी ही होगी. ऐसे में रोड में बैठना और गर्मी सहन करना बर्दाश्त से परे है और ऐसे वक्त में भावेश ने रोड में ही हमें धूप से बचने के लिए बड़ी छतरी लगा दी जो मेरे लिए बेहद कारगार साबित हो रहा है. मैं दिल से उनका धन्यवाद करता हूं की वो हम जैसे छोटे दुकानदारो की पीड़ा समझ कर हमें धूप से बचाने के लिए छतरी लगा रहे है. वहीं गायत्री मंदिर के सामने सड़क किनारे मोटर सायकल की दुकान लगाने वाले मिस्त्री राजा ने कहा भावेश ने आज मेरे दुकान आ कर एक छतरी दिया, मैं उनका दिल से धन्यवाद करता हूं.
अगर हम समर्थ हैं तो हमे लोगों का दिल खोलकर मदद करना चाहिए- भावेश
हमने मनुष्य योनि में जन्म लिया है तो हमारा यह कर्म भी होना चाहिए कि हम दूसरों के काम आ सकें. अपने सामर्थ्य से, अपने साधन से जो ईश्वर के द्वारा हमें प्रदत वरदान है. उन लोगों में बांटना चाहिए, जिसको इसकी आवश्यकता होती है, तब ही हम अपने मनुष्य होने के स्वरूप को साकार कर सकेंगे. भावेश सिन्हा कहते है मुझे अच्छा लगता है की मैं किसी के काम आ सकूं इसकी शुरुआत मैंने पिछले साल से की है. रोड से गुजरते वक़्त जब मैं रेहड़ी मज़दूरी करने वाले ठेले और रोड पर बैठे लोगों को तपती धूप में काम करते देखता हूं तो लगता है जब हम एसी और कूलर में गर्मी का सामना नहीं कर पा रहे है. उस स्थिती में ये बिचारे कैसे अपना जीवन यापन कर रहे है और इसी लिए मुझसे जो हो सका वो मैंने किया. मैंने दुकान छतरी लगा दी और उनके चेहरे पर मुस्कान देख कर मुझे बहुत खुशी हुई.
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मैं सभी व्यपारी भाइयों से निवेदन करता हूं. आप सभी जिससे जितना हो सके अपने से छोटे व्यापारियों का मदद करें, उनका सहारा बने और साथ ही तेज गर्मी है. इसे देखते हुए बाहर से आए ग्रामीणों के लिए पानी की व्यवस्था करे अगर हम पांच-पांच दुकानदार एक साथ मिलकर प्याऊ लगा दे तो पूरे जिला मुख्यालय में आए बाहर से आए किसी भी व्यक्ति को पानी के लिए भटकना नहीं पड़ेगा, आख़िर ये शहर हमारा है.
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