अमृतांशी जोशी,भोपाल। मध्यप्रदेश में जातिगत जनगणना को लेकर सियासत तेज हो गई है। इसे लेकर बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने हो गई है। कांग्रेस के पूर्व मंत्री अरूण यादव ने यूपीए सरकार में हुई जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग की। इसके साथ कांग्रेस ने आबादी के हिसाब से आरक्षण देने की मांग की। वहीं बीजेपी ने भी इस पर पलटवार किया है। 

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बीजेपी के पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य ने बयान देते हुए कहा कि कांग्रेस के नेता हिंदुस्तान के दलित गरीब को कभी आगे नहीं आने दिया।  57 साल केंद्र में सरकार रही मध्य प्रदेश में भी सालों सरकार रही, किसने मना किया कि जातिगत जनगणना मत कीजिए। पूर्व मंत्री ने कहा कि सत्ता के समय में उन्होंने क्यों जातिगत जनगणना नहीं की। सत्ता हाथ से चली गई तो इन्हें सारी गणना याद आ रही है। लाल सिंह आर्य ने कहा कि झूठे वादे करना भ्रम पैदा करना और वोट के लिए राजनीति करना यही कांग्रेस के राज में हुआ है। 

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पूर्व मंत्री ने तंज कसते हुए कहा कि अगर कांग्रेस कुछ कर लेती तो नरेंद्र मोदी को आयुष्मान कार्ड ना बनाना पड़ता, ना ही शौचालय बनवाना पड़ता और ना ही बैंक में खाते खुलवाने पड़ते। इससे साफ पता चल रहा है कांग्रेस ने कुछ नहीं किया है। दलित और पिछड़ा वर्ग कांग्रेस के लिए केवल वोट बैंक है। 

कांग्रेस के पूर्व  केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कही थी ये बात 

जातिगत जनगणना को लेकर कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कहा कि मनमोहन सरकार के समय जातिगत जनगणना का काम किया गया था, सिर्फ रिपोर्ट जारी करना बाकि था। लेकिन पिछले 10 साल में सरकार ने कुछ नहीं किया। आखिर सरकार आंकड़े जारी क्यों नहीं कर रही है। देश के पिछड़ों  के लिए उनका क्या एजेंडा है इसको पिछड़ा वर्ग को बताए।

जातिगत जनगणना पर वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर का बयान

जातिगत जनगणना की मांगजातिगत जनगणना पर वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि कोई भी पार्टी मांग करे, ये पूरी तरह वोट की राजनीति है।  जिन वर्गों के लिए ये मांग की जा रही है उन वर्गों का हक़ इसमें कैसे संरक्षित होगा। उन्होंने कहा कि अंबेडकर को याद कीजिए, वो हमेशा ये चाहते थे कि ये जो हमारा पिछड़े समाज के या अलग अलग समुदायों के लोग है, 

ऐसे समाज के लोग मुख्यधारा में किसी के साथ भी कॉम्पिटिशन कर सके। ज़रूरत इस बात की है कि उनकी योग्यता को बढ़ाया जाए। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है। इस तरह की चीजों से समाज का बिखराव बढ़ता है। चार चौं खाने खुल जाते हैं समाज के हित में यह मांग बिलकुल नहीं है। 

आखिर क्या है जातिगत जनगणना ?

जाति के आधार पर आबादी की गिनती को जातीय जनगणना कहते हैं। किस तबके की कितनी हिस्सेदारी, कौन वंचित रहा, जातीय जनगणना से हर बात का पता चलता है। जातियों की उपजाति का भी पता चलता है। उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता चल पाता है। यह धर्मों, भाषाओं और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से संबंधित डेटा भी प्रकाशित करता है। 

जातिगत जनगणना का इतिहास

भारत में आखिरी बार जातीय जनगणना ब्रिटिश शासन के दौरान 1931 में हुई थी। यही जनगणना 1941 में भी हुई लेकिन आंकड़े जारी नहीं किए गए। अगली जनगणना 1951 में तब हुई, जब देश आजाद हो चुका था। तब सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही गिना गया। तब से जनगणना का 1951 वाला पैमाना ही चल रहा है। साल 2011 में की गई आखिरी जनगणना हुई। कोरोना के कारण 2021 में गणना नहीं हो पायी। 2011 की जनगणना के लिए जाति के आंकड़े एकत्र किए गए थे, लेकिन डेटा को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। 

जातिगत जनगणना के समर्थन में तर्क

समर्थन करने वाले कहते हैं कि जातीय पिछड़ेपन का पता चल सकेगा। आंकड़ा पता चलने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का फायदा देकर। उन्हें मजबूत बनाया जा सकता है,जातीय जनगणना से किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की स्थिति का पता चल पाएगा। इससे योजनाएं बनाने में आसानी होगी। 

जातीय जनगणना के विपक्ष के तर्क

अगर किसी भी जाति की संख्या बढ़ती है। तो वह सरकार में अपनी बढ़ी हुई हिस्सेदारी मांगेगा। हर जनगणना में आदिवासी और दलितों की गिनती होती है। 
लेकिन अगर जातिगत जनगणना हुई तो ओबीसी और जनरल वर्ग भी गिने जाएंगे। 
अगर इनकी आबादी बढ़ी तो SC/ST या OBC आरक्षण पर नई रार मच सकती है। 
परिणाम ये होगा कि समावेशी विकास की अवधारणा को गहरी चोट पहुंचेगी। 

अचानक क्यों चर्चा में जातिगत जनगणना ?

विपक्षी राजनीतिक दलों ने मांग उठाई। कांग्रेस, जदयू, राजद, एनसीपी, द्रमुक और आम आदमी पार्टी समेत कई विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी कर्नाटक रैलियों में दो दिनों में दूसरी बार जातिगत जनगणना की मांग की। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने पीएम मोदी को लिखा पत्र। बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक उठी है जाति आधारित जनगणना की मांग। महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता अजीत पवार ने फरवरी में मांग की थी। 

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