रायपुर- राज्य की कला, संस्कृति और साहित्य की गौरवशाली धरोहर को संरक्षित करने के लिहाज से भूपेश सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए ‘छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद’ के गठन को मंजूरी दे दी है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में आज हुई कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई. यह परिषद एक स्वायत्तशासी इकाई के रूप में काम करेगा. मुख्यमंत्री इस परिषद के अध्यक्ष और संस्कृति मंत्री उपाध्यक्ष होंगे. प्रदेश के जाने-माने साहित्यकार, कलाकार, लोक कलाकार परिषद के सदस्य होंगे. इनका मनोनय सरकार करेगी.

छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति और साहित्य की बदौलत अविभाजित मध्यप्रदेश ने देश-दुनिया में अनूठी पहचान कायम की थी, लेकिन राज्य गठन के बाद इस दिशा में कभी भी सुध नहीं ली गई. संस्कृति विभाग महज आयोजन कराने और कलाकारों को बेहिसाब भुगतान करने तक सीमित हो गया था. राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक-साहित्यिक धरोहर और उन्हें सहेजने के पक्षधर रहे चेहरे इस दौरान हाशिए पर रहे. कभी भी इसके स्थायी विकास के लिए कदम नहीं उठाए गए. भूपेश सरकार की पहल ने अब एक नई दिशा तय की है.
 
छत्तीसगढ़ फिल्म विकास निगम, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सृजन पीठ, घासीदास शोधपीठ समेत राज्य स्तरीय पुरस्कार और सम्मान भी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के अधीन होंगे. राज्य में साहित्य अकादमी, कला अकादमी और आदिवासी एवं लोक कला अकादमी का गठन किया जाएगा. परिषद के गठन के साथ सांस्कृतिक विरासत का लेखा-जोखा दर्ज किया जा सकेगा. 
 
परिषद के गठन को मंजूरी मिलने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा ने कहा कि अविभाजित मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति और साहित्य के धरोहर से ही समृद्ध होती रही. मध्यप्रदेश के संग्रहालय छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर से गौरवान्वित होती रही, लेकिन छत्तीसगढ़ गठन के बाद इस दिशा में कभी कोई पहल नहीं की गई. राज्य सरकार की यह बड़ी सोच है. 

बीते साल नवंबर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने मातहत अधिकारियों को परिषद की सैद्धांतिक सहमति देते हुए गठन की प्रक्रिया के निर्देश दिए थे. उन्होंने कहा था कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति की परम्परा सदियों से चली आ रही है. जमीन से जुड़ी व मिट्टी की सुगंध और संस्कृति से सराबोर कलाओं को बचाए रखना हमारी जवाबदारी है. कलाकारों को संरक्षण नहीं मिलने से नई पीढ़ी लोक संस्कृति से अनजान है अथवा विमुख होती जा रही है. लोक कलायें हमारी धरोहर एवं अस्मिता हैं. इनकी रक्षा हेतु हर संभव प्रयास किया जाना है.