चंडीगढ़। पंजाब के कुएं से बड़ी संख्या में 2014 में नरकंकाल मिले थे. यहां कुएं से खोदकर निकाले गए 165 साल पुराने मानव कंकाल गंगा के मैदानी क्षेत्र के उन भारतीय सैनिकों के हैं, जिनकी 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश सेना ने हत्या कर दी थी. एक अध्ययन में यह दावा किया गया है. पंजाब के अजनाला शहर के एक पुराने कुएं से बड़ी संख्या में मानव कंकाल मिले थे. इस अध्ययन में हड्डियों, खोपड़ी और दांत के डीएनए टेस्ट से इस बात की पुष्टि हुई है कि मरने वाले सभी उत्तर भारतीय मूल के हैं.
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रिसर्च में पता चला कि उत्तर भारत से ताल्लुक रखते होंगे मृतक
सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) के वैज्ञानिकों ने पंजाब विश्वविद्यालय, बीरबल साहनी संस्थान और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के अन्य शोधकर्ताओं के साथ अपनी रिसर्च में यह पाया है कि अजनाला में नरसंहार हुआ था और भारतीय जवानों को मारकर उनके शवों को कुएं में फेंक दिया गया था. वहीं पहले कुछ इतिहासकारों ने ये भी दावा किया था कि ये कंकाल 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के दौरान हुए दंगों में मारे गए लोगों के हैं.
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डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस में सामने आई जानकारी
इधर वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इन सैनिकों की पहचान और वे कहां से नाता रखते थे, इसे लेकर बहस जारी है. ‘फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्स’ में बृहस्पतिवार को प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि ये कंकाल गंगा के मैदानी क्षेत्र के सैनिकों के हैं, जिनमें बंगाल, ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से के लोग भी शामिल हैं. उत्तर प्रदेश के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्राणीशास्त्र विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के अनुसार, अध्ययन में सामने आए तथ्य ‘भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों’ के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ते हैं. वैज्ञानिकों ने अजनाला के पुराने कुंए से निकले अवशेषों के डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस के बाद यह जानकारी दी.
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार सैनिकों को पाकिस्तान के मियां मीर में किया गया था तैनात
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, इस बटालियन को पाकिस्तान के मियां-मीर में तैनात किया गया था और उसके सैनिकों को विद्रोह के चलते ब्रिटिश अधिकारियों ने मार डाला था. दरअसल, ब्रिटिश सेना ने उन्हें अजनाला के पास पकड़ लिया था, फिर उन्हें मौत के घाट उतारकर उनके शवों को कुएं में फेंक दिया था. इस टीम के प्रमुख शोधकर्ता और प्राचीन डीएनए के विशेषज्ञ डॉ नीरज राय ने कहा कि टीम द्वारा किए गए वैज्ञानिक शोध इतिहास को अधिक साक्ष्य-आधारित तरीके से देखने में मदद करते हैं. डीएनए (डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड) अध्ययन में दो तथ्य सामने आए हैं, पहला कि भारतीय सैनिक 1857 के विद्रोह के दौरान मारे गए और दूसरा यह कि वे गंगा के मैदानी क्षेत्र से नाता रखते थे, पंजाब से नहीं. शोधकर्ताओं ने डीएनए विश्लेषण के लिए 50 नमूनों और आइसोटोप विश्लेषण के लिए 85 नमूनों का इस्तेमाल किया.
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