पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और इस बार राज्य की राजनीति ने ऐसी करवट ली है, जिसकी उम्मीद शायद खुद एनडीए को भी नहीं रही होगी। चुनाव से पहले ही गठबंधन ने अपना लक्ष्य तय कर दिया था 2025, 225 फिर से नीतीश। यानी 243 में से 225 सीटों पर जीत और शेष 18 सीटें अन्य दलों में बंटने की संभावना। हालांकि यह आंकड़ा हूबहू हासिल तो नहीं हुआ पर जो नतीजे सामने आए हैं, वे अपने आप में ऐतिहासिक हैं।

प्रचंड बहुमत का प्रदर्शन किया

चुनाव परिणामों में एनडीए ने 200 से अधिक सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत का ऐसा प्रदर्शन किया है, जिसकी भविष्यवाणी न तो बड़े राजनीतिक विश्लेषक कर पाए और न ही किसी एग्जिट पोल ने संकेत दिया। अधिकतर भीतरखाने की चर्चाओं में एनडीए के नेता 160 से 165 सीटों तक की उम्मीद जता रहे थे, लेकिन जनता ने इस आकलन को पूरी तरह पीछे छोड़ दिया।

कमजोर पड़ता दिखा

दूसरी ओर महागठबंधन के लिए यह चुनाव बेहद निराशाजनक साबित हुआ। राजद का पारंपरिक MY समीकरण इस बार स्पष्ट रूप से कमजोर पड़ता दिखा। खासतौर पर सीमांचल में मुसलमान मतदाताओं ने राजद की जगह AIMIM पर भरोसा जताया, जिसका सीधा असर लालू-तेजस्वी यादव की रणनीति पर पड़ा। वहीं पूरे चुनाव के दौरान चर्चा में रही जन सुराज की लहर भी नतीजों में असर दिखाने में नाकाम रही और उसका प्रभाव लगभग खत्म होता दिखाई दिया। कुल मिलाकर, जनता ने इस बार एनडीए को न सिर्फ सत्ता, बल्कि अप्रत्याशित भरोसा भी सौंपा है ऐसा भरोसा जिसने बिहार की राजनीति की तस्वीर एक बार फिर बदल दी है।