पटना। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की ताजा रिपोर्ट ने बिहार की कानून-व्यवस्था पर एक बार फिर से बहस छेड़ दी है। हालांकि राज्य में हत्याओं की संख्या में बीते वर्षों की तुलना में हल्की गिरावट देखी गई है, लेकिन कुल अपराध दर में लगातार वृद्धि चिंताजनक बनी हुई है। 2023 में बिहार में कुल 2,862 हत्या के मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़ा 2021 (2,799) और 2022 (2,930) के करीब है, लेकिन पहले के मुकाबले थोड़ी राहत की बात कही जा सकती है। साल 2001 में जहां 3,643 हत्याएं दर्ज हुई थीं, वहीं यह आंकड़ा उतार-चढ़ाव के साथ 2020 तक लगभग 3,000 के ऊपर बना रहा। राजनीतिक लिहाज से देखें तो यह गिरावट सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकती है, खासकर जब अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट तेज हो चुकी है।
किन वजहों से हो रही हैं हत्याएं?
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में हत्या की सबसे बड़ी वजह व्यक्तिगत दुश्मनी रही है। 2023 में दर्ज कुल मामलों में से 703 हत्या व्यक्तिगत रंजिश की वजह से हुईं। इसके अलावा प्रमुख भूमि व संपत्ति विवाद के 500 मामले, पारिवारिक झगड़े में 345 हत्याएं, प्रेम प्रसंग 259 केस, आर्थिक लाभ 238, पैसे का, लेन-देन 160, दहेज संबंधित हत्याएं 91 दिलचस्प बात यह है कि पूरे साल में राजनीतिक कारणों से सिर्फ 2 हत्याएं हुईं। वहीं जातिगत कारण (9), जादू-टोना (7) और धार्मिक कारण (1) से होने वाली हत्याएं बेहद कम रही हैं।
अपराध दर, गिरावट नहीं, बढ़त जारी
जहां हत्या एक गंभीर अपराध की निशानी है, वहीं कुल अपराध दर बिहार की स्थिति को और स्पष्ट करती है
2013 में प्रति लाख आबादी पर अपराध दर थी 183.7 और 2016 में अचानक उछलकर पहुंच गई 281.9 पर पहुंच गया जबकि 2020 में कोरोना काल के दौरान थोड़ी राहत 211.3 लेकिन 2023 में यह दर पहुंच गई 277.5 तक यानि बिहार में अपराध दर का ग्राफ अब भी ऊपर की ओर जा रहा है भले ही हत्याओं में थोड़ी गिरावट दिख रही हो।
चुनाव के पहले आंकड़ों पर सियासत तय
बिहार में अपराध हमेशा से राजनीतिक विमर्श का बड़ा मुद्दा रहा है। जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है, राजनीतिक दल इस रिपोर्ट के आंकड़ों को अपने-अपने तरीके से इस्तेमाल कर सकते है कोई सुधार का दावा करेगा तो कोई असल तस्वीर को उजागर करने की कोशिश करेगा।
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