लक्षिका साहू, रायपुर। छत्तीसगढ़ में आपातकाल के 50वें वर्षगांठ पर साय सरकार ने संविधान हत्या दिवस मनाया. 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल के दौर से नई पीढ़ी को अवगत कराने के लिए राजधानी के DDU ऑडिटोरियम में संविधान हत्या दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें स्कूली बच्चों और युवाओं को शामिल किया गया. इस कार्यक्रम में सीएम साय भी शामिल हुए. अपने संबोधन के दौरान आपातकाल के दौर को याद करते हुए वे भावुक हो गए. मुख्यमंत्री ने कहा कि वह कालखंड मेरे जीवन से गहराई से जुड़ा है. यह मेरे लिए मात्र एक घटना नहीं, बल्कि एक व्यक्तिगत पीड़ा है.


कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री साय ने कहा कि यह अत्यंत आवश्यक है कि लोकतंत्र की हत्या के उस काले दिन को हमारी भावी पीढ़ी भी जाने, समझे और उससे सीख ले. आपातकाल के दौर को याद करते हुए भावुक हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वह कालखंड मेरे जीवन से गहराई से जुड़ा है. यह मेरे लिए मात्र एक घटना नहीं, बल्कि एक व्यक्तिगत पीड़ा है.
मुख्यमंत्री ने बताया कि उनके बड़े पिताजी स्वर्गीय नरहरि प्रसाद साय आपातकाल के दौरान 19 माह तक जेल में रहे. उस समय लोकतंत्र सेनानियों के घरों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी—कई बार घर में चूल्हा तक नहीं जलता था. ऐसे अनेक परिवारों को मैंने स्वयं देखा है. उन्होंने कहा कि निरंकुश सत्ता ने उस समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल दिया था, नागरिक अधिकार छीन लिए गए थे. वास्तव में, वह लोकतंत्र का काला दिन था, जिसका दंश हमारे परिवार ने झेला है और जिसे मैंने स्वयं जिया है.

इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री साय ने कार्यक्रम के दौरान लोकतंत्र सेनानी परिवारों के सदस्यों से भेंट कर उन्हें सम्मानित किया तथा शॉल, श्रीफल और प्रतीक चिन्ह भेंट किए. मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार लोकतंत्र सेनानी परिवारों को सम्मान देने का कार्य कर रही है. इन परिवारों को प्रतिमाह 10 हजार से 25 हजार रुपए तक की सम्मान राशि दी जा रही है. यह उनके संघर्ष और बलिदान को नमन करने का एक विनम्र प्रयास है
वहीं आपातकाल की परिस्थितियों की जानकारी देने प्रदर्शनी भी लगाई गई. इसके अलावा लघु फिल्म भी प्रकाशित कर आपातकाल की घटनाओं को याद किया गया. संविधान हत्या दिवस में आयोजित संगोष्ठी कार्यक्रम में सबसे पहले सीएम साय ने छात्र-छात्राओं से अनुभव जाना. स्टेज से ही उन्होंने संगोष्ठी को लेकर बच्चों से सवाल करते हुए फीडबैक लिया, जिसका सभी ने ऊंचे स्वर में जवाब भी दिया.

कार्यक्रम में उपस्थित छात्र-छात्राओं और युवाओं को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान की रक्षा हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है. उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे आपातकाल के इतिहास को जानें, पढ़ें और समझें कि किस प्रकार उस कालखंड में संविधान को कुचला गया था. लोकतंत्र को जीवित रखने और सशक्त करने के लिए जन-जागरूकता और सक्रिय भागीदारी अनिवार्य है.
सीएम विष्णुदेव साय ने बताया कि हमारे परिवार ने भी आपातकाल को झेला है. हमारे बड़े पापा 19 महीने जेल में रहे. अनेकों परिवार को हमने बर्बाद होते देखा. सामूहिक नसबंदी करा दिया जाता था. काम से उठाकर, गाड़ी से उतारकर नसबंदी करा दिया जाता था. महसूस करने से रूह कांप जाती है. सच में आज की तारीख 1975 में काला दिन था. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में इससे बड़ी शर्म की क्या बात हो सकती है.
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि भारत के संविधान और लोकतंत्र पर आपातकाल एक ऐसा कलंक है, जिसे इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज किया गया है. आपातकाल थोपकर न केवल संविधान को निष्क्रिय कर दिया गया, बल्कि मौलिक अधिकारों को समाप्त कर लोकतंत्र की आत्मा को कुचल दिया गया.
उन्होंने कहा कि उस समय देश को एक खुली जेल में बदल दिया गया था, जिसमें भय और आतंक का वातावरण था. एक लाख से अधिक लोगों को बिना न्यायिक प्रक्रिया के जेलों में बंद कर दिया गया, और उन्हें यातनाएं दी गईं. यह केवल राजनीतिक दमन का दौर नहीं था, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक चेतना को समाप्त करने का सुनियोजित प्रयास था.
डॉ. सिंह ने युवाओं से आह्वान किया कि वे आपातकाल के विषय में शोध करें, पढ़ें और समझें कि लोकतंत्र की रक्षा हेतु कितने लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी. भविष्य में लोकतंत्र को सुरक्षित बनाए रखने के लिए हमें सदैव जागरूक और सजग रहना होगा.
वहीं विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह ने आपातकाल दिवस के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जिम्मेदार ठहराते हुए बताया कि न कोई युद्ध की स्थिति थी, न आंतरिक विद्रोह था. सिर्फ सत्ता की लुलुप्त और स्वार्थ की राजनीति के लिए इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था, जिसका सच नई पीढ़ी को जानना आवश्यक है.
डॉ रमन सिंह ने कहा कि 1971 में इंदिरा गांधी ने चुनाव लड़ा. उनके निर्वाचन को लेकर हाई कोर्ट में प्रकरण चल रह था, जिसका फैसला 1975 में आया. कोर्ट के आदेश से उनका निर्वाचन निरस्त हुआ और छह साल तक राजनीति से बाहर करने का आदेश आया. इस फैसले को दबाने के लिए तात्कालिक राष्ट्रपति से आज के दिन हस्ताक्षर कराया गया और इंदिरा गांधी ने रातों रात इमरजेंसी लागू करा दी.

विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह ने यह भी बताया कि आपातकाल में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी जेल में बंद थे. जब उनकी माताजी का देहांत हो गया था, राजनाथ सिंह ने आवेदन लगाया कि उन्हें मां के अंतिम क्रियाक्रम में जाने की अनुमति दी जाए. लेकिन उनका आवेदन स्वीकृत नहीं किया गया. इतनी निष्ठुर थी इंदिरा गांधी.
उन्होंने कहा कि 60 लाख लोगों की नसबंदी कराई गई थी. भावी पीढ़ी को आपातकाल के बारे में किताब पढ़नी चाहिए. सिनेमा देखना चाहिए ताकि भविष्य में देश के साथ ऐसा न हो. युवा जागरूक रहे इस उद्देश्य से कार्यक्रम का आयोजन किया है .
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपतिबलदेव भाई शर्मा ने कहा कि 25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र का सबसे शर्मनाक और काला दिन था. इस दिन संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों को जिस तरह से कुचला गया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में नहीं मिलता. संविधान में मनमाने ढंग से संशोधन किए गए, जिससे देश की आत्मचेतना और नागरिक अधिकारों का दमन हुआ.
इस अवसर पर मुख्यमंत्रीसाय ने आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर आयोजित जनजागरूकता रैली में भी भाग लिया. मुख्यमंत्रीविष्णु देव साय और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर आधारित विशेष प्रदर्शनी का अवलोकन किया. इस प्रदर्शनी में आपातकाल के दौरान की दमनकारी नीतियों, मानवाधिकारों के उल्लंघन और लोकतंत्र के हनन को चित्रों और दस्तावेजों के माध्यम से दर्शाया गया.

मुख्यमंत्रीसाय ने कहा कि आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय है, जिसे विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए. ऐसी प्रदर्शनी नई पीढ़ी को लोकतंत्र और संविधान के महत्व को समझाने में सहायक सिद्ध होगी. विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने भी इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह प्रदर्शनी लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष करने वालों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है.
इस अवसर पर उद्योग मंत्रीलखन लाल देवांगन, विधायकगणपुरंदर मिश्रा, गुरु खुशवंत साहेब,मोतीलाल साहू, सीएसआईडीसी के अध्यक्षराजीव अग्रवाल, छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के अध्यक्षनीलू शर्मा, लोकतंत्र सेनानी संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्षसच्चिदानंद उपासने, प्रदेश अध्यक्षदिवाकर तिवारी, छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्षशशांक शर्मा और संचालक संस्कृतिविवेक आचार्य सहित बड़ी संख्या में विद्वान, लोकतंत्र सेनानी और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे.
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