रायपुर- आखिरकार डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त तक छत्तीसगढ़ बीजेपी संगठन को अपने इशारे पर चलाने वाले राष्ट्रीय संगठन महामंत्री सौदान सिंह की विदाई हो गई. तीन दफे राज्य की सत्ता का मिठास सौदान सिंह के हिस्से रहा, लेकिन पिछले चुनाव में पार्टी को मिली हार की कड़वाहट कार्यकर्ताओं के हिस्से आई. संगठन ने जब हार की समीक्षा की, तो कई जगह नाराजगी के स्वर पूरे उफान पर दिखे और उसके केंद्र में सौदान सिंह ही खड़े नजर आए. बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाते हुए चंडीगढ़ में तैनाती दी है, जहां से वह हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश संगठन प्रभार देखेंगे.
आखिर क्या वजह रही कि जिस सौदान सिंह को छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार बनाने का शिल्पी कहा जाता था, उन्हें हटाए जाने का फैसला आलाकमान को लेना पड़ा ? दरअसल छत्तीसगढ़ से सौदान सिंह की विदाई पत्र पर मुहर लगना अनायास नहीं हुआ. इसकी पृष्ठभूमि काफी पहले तैयार कर दी गई थी. संगठन सूत्र बताते हैं कि नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के दौरे के बाद केंद्रीय नेतृत्व को सौंपी गई रिपोर्ट ने विदाई की तारीख मुकर्रर कर दी. आला सूत्र इस बात की तस्दीक करते हैं कि प्रदेश प्रभारी के दौरे के वक्त कई सांसदों ने खुलकर सौदान सिंह की शिकायत की थी. ऐसा पहली बार हुआ था जब उन्हें लेकर सतही तौर पर विरोध खुलकर सामने आया था. कई सांसदों ने प्रदेश प्रभारी से अपनी शिकायत में संगठन की नींव कमजोर होने से लेकर तेजी से उभरती गुटबाजी का जिम्मेदार उन्हें बताया था.
चर्चा यह भी है कि डी पुरंदेश्वरी ने नए सिरे से कोरग्रुप के गठन करने के लिए नाम तय किए जाने को कहा था, लेकिन कोरग्रुप के गठन को नजरअंदाज किया गया और फीडबैक में इसके पीछे की भूमिका में सौदान सिंह दिखाई पड़े. संगठन के उच्च पदस्थ सूत्र कहते हैं कि संघ भी सौदान सिंह के कामकाज से बेहद नाराज चल रहा था. संघ नेताओं की नजर राज्य में बीजेपी संगठन के कामकाज को लेकर लगातार बनी रही. सत्ता में रहते संगठन की फाइव स्टार वर्किंग पर संघ की आपत्ति भी दर्ज होती रही, लेकिन इन आपत्तियों की लगातार अनदेखी की गई. संघ के उच्च पदस्थ पदाधिकारी ने अपनी एक टिप्पणी में यह तक कहा था कि राज्य में फाइव स्टार कार्यालय बनाने की बजाए जरूरी है कि जमीन से जुड़कर काम किया जाए.
सूत्र कहते हैं कि, संघ चाहता था कि सौदान सिंह के जरिए बीजेपी की कार्यप्रणाली की सही रिपोर्ट उन्हें मिलती रहे, लेकिन जिस तरह की रिपोर्ट संघ तक पहुंचाई जाती, उससे संघ नाखुश होता चला गया. बताते हैं कि यही वजह है कि साल 2018 के चुनाव में जमीनी स्तर पर बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाए जाने से संघ ने दूरी बना ली. सत्ता गंवाकर बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. सौदान सिंह को छत्तीसगढ़ बीजेपी का छत्रप माना जाता रहा, जिसके विरोध का मतलब संगठन में हाशिए पर जाना होता था. राजनीतिक प्रेक्षक कहते हैं कि सौदान सिंह राज्य इकाई में अंगद की तरह बन गए हैं, जिनके पैरों को जड़ों से हिला पाना आसान नहीं था. चुनाव के पहले प्रदेश भर के दौरे पर निकले सौदान सिंह को भी कई जगहों पर भारी विरोध से गुजरना पड़ा था, लेकिन बदलाव के रूप में शून्यता ही कार्यकर्ताओं के हिस्से आई थी.
संघ के वरिष्ठ का वरदहस्त ने बनाया मजबूत
सौदान सिंह देश के ऐसे इकलौते राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे, जिनके पास किसी एक राज्य का प्रभार 18 वर्षों तक बना रहा. बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रहे रामलाल ने भी 11 वर्षों के बाद नेतृत्व को चिट्ठी लिख पद छोड़े जाने का अनुरोध किया था, जिसके बाद उनकी जगह बी एल संतोष को यह जिम्मा सौंपा गया, लेकिन सौदान सिंह पद पर बने रहे. संगठन सूत्र बताते हैं कि संघ के एक बेहद ही प्रभावशाली नेता का वरदहस्त ही था, जिसने कभी भी सौदान सिंह को कमजोर होने नहीं दिया. चाहे नेतृत्व किसी का भी क्यों न रहा हो? नए फेरबदल में उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया है, ऐसे में जानकार बताते हैं कि अब वह संघ के सामान्य प्रचारक भी नहीं रह जाएंगे. संघ की राजनीतिक इकाई बीजेपी में वह बतौर पदाधिकारी लिए गए हैं.