इंफाल। पांच राज्यों में मतदान के तारीखों की घोषणा के साथ ही मणिपुर सहित सभी चुनावी राज्यों में राजनीतिक दलों की तैयारियों तेज हो गई है। पिछले चुनाव में बहुमत के करीब कांग्रेस को चकमा देकर अपनी सरकार बनाने वाली बीजेपी की इस दफे राह आसान नहीं नजर आ रही है। बीजेपी के की राह का सबसे बड़ा रोड़ा अफ्स्पा बनकर उभरा है।

नागालैंड में सेना की फायरिंग में 14 नागरिकों की मौत के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में अफ्स्पा को लेकर आम जनता के बीच खासी नाराजगी देखी जा रही है। सभी पूर्वोत्तर राज्यों में अफ्स्पा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है और इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी है।

वहीं कांग्रेस ने भी अफ्स्पा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और सार्वजनिक तौर पर अफ्स्पा को वापस लेने की मांग कर रही है। उधर राज्य में सत्तारुढ़ दल बीजेपी के घटक दल भी अफ्स्पा को लेकर असहज हैं।

क्या है अफ्स्पा

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (अफ्स्पा) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर राज्यों में सेना को कार्रवाई में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था। लेकिन जब 1989 के आस पास जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इस कानून को यहां भी लगा दिया गया था।

इसलिए लगाया जाता है

इस कानून को किसी राज्य या किसी भी क्षेत्र में तब लागू किया जाता है, जब राज्य या केन्द्र सरकार उस क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित कर दती है। यह केवल अशांत क्षेत्र में लगाया जाता है। इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं। कानून के लगते ही सेना या सशस्त्र बल को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने का सीधा अधिकार मिल जाता है।