राजधानी दिल्ली में जलभराव और ट्रैफिक जाम की समस्या को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) से लेकर दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High-Court) तक ने नाराज़गी जाहिर की. सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि “महज दो घंटे की बारिश में पूरी दिल्ली लकवाग्रस्त हो जाती है.” वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इस समस्या से निपटने में प्रशासनिक भ्रम और विभागों की बंटी हुई जिम्मेदारियां सबसे बड़ा कारण हैं.

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सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने केरल के पलियेक्कारा में राष्ट्रीय राजमार्ग 544 पर टोल वसूली मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली की स्थिति पर भी चिंता जताई. अदालत ने कहा, “महज दो घंटे की बारिश से दिल्ली पूरी तरह ठप हो जाती है. जब सफर में घंटों की देरी हो और ऊपर से टोल भी देना पड़े, तो यह बिल्कुल अनुचित है.”

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हाई कोर्ट ने ठहराया जिम्मेदार विभागों को दोषी

दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी में जलभराव और ट्रैफिक जाम की गंभीर स्थिति पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि यह समस्या प्रशासनिक भ्रम का नतीजा है. अदालत ने कहा कि नालियों की जिम्मेदारी नगर निगम के पास है, जबकि सीवर पाइपलाइन की देखरेख दिल्ली जल बोर्ड करता है. इस बंटी हुई जिम्मेदारी की वजह से न तो नालियों की सफाई होती है और न ही जल निकासी सुचारु रहती है.

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार को चाहिए कि वह प्रशासनिक व्यवस्था को केंद्रीयकृत करे, ताकि भविष्य में हालात न बिगड़ें. अदालत ने सरकार से 19 अगस्त तक अग्रिम योजना पेश करने के निर्देश दिए हैं.

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मिलकर काम करने की नसीहत

अदालत ने सभी नगर निकायों को मिलकर काम करने की सलाह दी और कहा कि अगर जिम्मेदार विभाग सामंजस्य से कार्य करेंगे तो बारिश के दौरान राजधानीवासियों को बड़ी राहत मिल सकती है.

जलभराव से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई

हाई कोर्ट यह टिप्पणी महारानी बाग कॉलोनी के पास तैमूर नगर नाले में जलभराव से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कर रही थी. साथ ही, नाले के आसपास झुग्गियों में रहने वाले 14 परिवारों द्वारा दायर पुनर्वास संबंधी याचिका को भी इसमें जोड़ा गया. अदालत ने इस मामले को स्वत: संज्ञान लेते हुए पूरे दिल्ली में जलभराव व जाम की समस्या को शामिल किया.