रायपुर- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार ने बस्तर जिले के लोहाण्डीगुड़ा क्षेत्र के 1707 भू-विस्थापित आदिवासी किसान परिवारों के हित में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। मुख्यमंत्री के रूप में बघेल के शपथ ग्रहण के लगभग 21 दिन बाद और उनकी अध्यक्षता में केबिनेट की बैठक में निर्णय लिए जाने के सिर्फ 12 दिन बाद राज्य सरकार ने इन किसानों को उनकी लगभग चार हजार 400 एकड़ भूमि वापस देने की प्रक्रिया निर्धारित करते हुए आज मंत्रालय से विधिवत आदेश भी जारी कर दिया। यह जमीन लगभग एक दशक पहले वहां टाटा के वृहद इस्पात संयंत्र के लिए अधिग्रहित की गयी थी।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की बैठक लगभग 12 दिन पहले 25 दिसम्बर को मंत्रालय में आयोजित की गई थी, जिसमें यह भूमि किसानों को वापस करने का सैद्धांतिक निर्णय लिया गया था। इस पर त्वरित अमल करते हुए राजस्व विभाग द्वारा आज नौ जनवरी को मंत्रालय से कलेक्टर बस्तर को परिपत्र जारी कर दिया गया। परिपत्र में लोहाण्डीगुड़ा तहसील के दस गांवों के 1707 खातेदारों की कुल 1764.61 हेक्टेयर अर्थात लगभग चार हजार 400 एकड़ से कुछ अधिक भूमि वापस करने के लिए प्रक्रिया तय कर दी गई है। जिन गांवों के किसानों को उनकी भूमि वापस मिलेगी, उनमें बड़ांजी, बड़ेपरोदा, बेलर, बेलियापाल, छिन्दगांव, दाबपाल, धुरागांव, कुम्हली, सिरिसगुड़ा और टाकरागुड़ा शामिल हैं। इन गांवों में अधिग्रहित निजी भूमि संबंधित भूमि स्वामियों अथवा उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को वापस करने के लिए भूमि-अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 की धारा 101 के प्रावधानों के अनुसार प्रक्रिया पूरी की जाएगी। देश में अपनी तरह का शायद यह पहला मामला है, जिसमें 1700 से ज्यादा आदिवासी परिवारों को भूमि अधिग्रहण के बाद उनकी जमीन वापस की जा रही है।
राजस्व विभाग के अधिकारियों ने बताया कि परिपत्र में भूमि वापसी के लिए राजस्व विभाग की ओर से निर्धारित प्रक्रिया इस प्रकार होगी – (1) इन गांवों की अर्जित इस निजी भूमि के लिए राजस्व अभिलेखों में अंकित ‘उद्योग विभाग’ का नाम विलोपित किया जाएगा और इस अर्जित भूमि पर राजस्व विभाग का नाम दर्ज किया जाएगा। (2) राजस्व अभिलेखों को दुरूस्त करने के बाद उद्योग विभाग से इस जमीन का आधिपत्य नियमानुसार प्राप्त किया जाएगा। (3) उद्योग विभाग से अर्जित भूमि पर राजस्व विभाग द्वारा कब्जा प्राप्त करने के बाद मूल भूमि स्वामियों अथवा उनके वैधानिक वारिसान (उत्तराधिकारियों) को उनसे अर्जित भूमि की वापसी के लिए नामांतरण की कार्रवाई की जाएगी और इसके लिए तहसलीदार के द्वारा अलग-अलग प्रकरण पंजीबद्ध किए जाएंगे। (4) तहसीलदार के द्वारा प्रकरण में मूल भूमि स्वामी अथवा उनके वैधानिक उत्तराधिकारियों के नाम से अभिलेख सुधारने के लिए निर्धारित प्रारूप में आदेश पारित किया जाएगा। (5) राजस्व अभिलेखों में मूल भूमि स्वामी अथवा उनके कानूनी वारिसान (उत्तराधिकारी) के नाम दर्ज होने के बाद तहसीलदार के द्वारा उन्हें नियमानुसार छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 38 के तहत जमीन का कब्जा दिया जाएगा।
यह भी उल्लेखनीय है कि टाटा इस्पात संयंत्र के लिए यह भूमि फरवरी 2008 और दिसम्बर 2008 में अधिग्रहित की गई थी, लेकिन संबंधित कंपनी द्वारा वहां उद्योग नहीं लगाया गया। इसके साथ ही वहां के प्रभावित किसान राज्य सरकार से अपनी भूमि वापस दिलाने की मांग लम्बे समय से कर रहे थे। कुछ महीने पहले सांसद राहुल गांधी और प्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर जिले के प्रवास के दौरान किसानों से उनकी यह मांग पूरी करने का वादा किया था। बघेल द्वारा पिछले महीने की 17 तारीख को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को जन-घोषणा पत्र की प्रति सौंपी गई थी, जिसमें किसानों के व्यापक हित में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का सख्ती से पालन करने के साथ-साथ यह भी वादा किया गया है कि औद्योगिक उपयोग के लिए अधिग्रहित कृषि भूमि, जिसके अधिग्रहण की तारीख से पांच वर्ष के भीतर उस पर कोई परियोजना स्थापित नहीं हुई है तो ऐसी भूमि किसानों को वापस की जाएगी। इसी कड़ी में लोहाण्डीगुड़ा के किसानों को उनकी जमीन वापस देने के निर्णय पर राज्य सरकार ने त्वरित अमल करते हुए विधिवत आदेश जारी कर दिया।