Brij Bhushan Singh on Mohan Bhagwat: RSS प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद (mandir-masjid) पर दिए बयान पर सियासत जारी है. एक ओर विपक्ष उनके बयान पर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रही है. तो वहीं अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) चीफ के समर्थन में पूर्व BJP सांसद बृज भूषण शरण सिंह उतर आए है. पूर्व सांसद ने भागवत के बयान का समर्थन किया है. भाजपा नेता ने विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि जो मोहन भागवत के बयान को हल्के में ले रहे हैं वो बड़ी गलती कर रहे है.
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बीजेपी के पूर्व सांसद बृज भूषण शरण सिंह ने भागवत द्वारा दिए गए बयान का समर्थन करते हुए कहा कि मैं भागवत जी के बयान को लेकर पूर्णतया सहमत हूं. वे बड़े लोग हैं, जो भी बयान देते हैं बहुत सोच समझ कर देते हैं. उनके बयान को जो हल्के में ले रहे हैं वह कहीं ना कहीं गलती कर रहे हैं.
बता दें कि मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में कहा था कि राम मंदिर (Shri Ram Mandir) के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नई जगहों पर इस तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं. हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है. इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है? भारत (India) को दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं.
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आरएसएस प्रमुख एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश में मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उभरने पर चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने लोगों को ऐसे मुद्दों को न उठाने की सलाह दी और कहा कि मंदिर-मस्जिद विवादों को उछालकर और सांप्रदायिक विभाजन फैलाकर कोई भी हिंदुओं का नेता नहीं बन सकता.
अब उनके इस बयान के बाद देश में चल रही मंदिर मस्जिद विवादों को नया तूल दे दिया है. उनके बयान को लेकर तमाम विपक्षी दलों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. बृजभूषण शरण सिंह का बयान ऐसे समय में आया है जब संघ के मुखपत्र पाञ्चजन्य में भी मोहन भागवत के बयान का समर्थन करते हुए उसे ठीक ठहराया गया है.
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आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद को लेकर दिए बयान का समर्थन किया गया है. मुखपत्र में लिखा कि भागवत में समाज से विवेकशील दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया गया है. मंदिर हिन्दुओं की श्रद्धा का केंद्र है लेकिन इसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना स्वीकार्य नहीं. आज के दौर में मंदिर से जुड़े विषयों पर अनावश्यक बहस और भ्रामक प्रचार चिंताजनक प्रवृत्ति है.
वहीं इस RSS के अंग्रेजी मुखपपत्र ने इस अपनी अलग राय रखी थी. RSS के अंग्रेजी ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने संपादकीय में लिखा था कि सोमनाथ से लेकर संभल और उससे आगे का ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व के बारे में नहीं है. यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करने और सभ्यतागत न्याय की लड़ाई है.
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