Gogadev Puja Mahatva : वाल्मीकि समाज गोगा नवमी के अवसर पर मंगलवार को जाहरवीर गोगाजी महाराज की छड़ी के साथ चल समारोह निकाला जाएगा. गोगादेवजी को नाग अवतार होने के कारण निशान नाग पंचमी शुरू होकर गोगा नवमी को समापन होता है. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा राजस्थान में भी इस पर्व को मनाया जाता है. कथा के अनुसार गोगाजी को सांपों का देवता के रूप में पूजा जाता है.
गोगादेव की पूजा से निसंतान दंपती को संतान सुख की प्राप्ति होती है. गोगादेव के पास नागों को वश में करने की आपार शक्ति थी, इनकी पूजा से सर्प के डसने का भय नहीं रहता. इन्हें गुरु गोरखनाथ का परम शिष्य माना जाता है. हर साल राजस्थान के गोगामेढ़ी में गोगा नवमी के पर्व पर मेला लगता है. यहां पर हजारों की संख्या में गोगा स्वामी के भक्त गोगादेव की पूजा करने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि गोगादेव की सच्चे मन से पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है.
पूजा विधि के साथ जुड़ी ये मान्यता
गोगादेव को खीर, चूरमा और पकौड़ों आदि का भोग लगाया जाता है. उसी दिन ये सारी चीजें तैयार करे. इसके बाद मिट्टी से गोगादेव की मूर्ति बनाएं. इसके बाद गोगा देव की पूजा करें और व्रत कथा पढ़ें. एक मान्यता ये भी है कि जो महिलाएं रक्षाबंधन के दिन अपने भाइयों को राखी बांधती है, गोगा नवमी के दिन उसे खोलकर गोगादेव को अर्पित किए जाते हैं.
सांप के कांटे का भय खत्म होता है
मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति को सांप के डसने से बचाने के लिए गोगा जी महाराज की पूजा की जाती है. सांप के डसने के बाद किसी भी तरह की बीमारी से बचने के लिए लोग गोगाजी महाराज को पूजते हैं और गोगामेड़ी धाम पहुंचते हैं.इस दिन घर की दीवार पर दूध में कोयला पीसकर चाकोर घर बनाकर सर्प की आकृति अंकित की जाती है. इसके बाद इन सर्पों पर जल, कच्चा दूध, रोली-चावल, बाजरा, आटा, घी, चीनी मिलाकर प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है.
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