रायपुर. एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में एक 72 वर्षीय बुजुर्ग के दिल में ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन प्रक्रिया के जरिये वाल्व के अंदर वाल्व का सफल प्रत्यारोपण किया गया. उम्र के बुजुर्गावस्था कहे जाने वाले पड़ाव में हाई रिस्क श्रेणी में मरीज के पुराने सर्जिकल वाल्व के अंदर पैर की नस के रास्ते तावी वाल्व प्रत्यारोपित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव एवं टीम ने कर दिखाया है.

डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने हाइपरटेंशन और रयूमेटाइड हार्ट डिजीज के साथ उच्च जोखिम वाले बुजुर्ग मरीज के पूर्व प्रत्यारोपित सर्जिकल वाल्व के अंदर एक पतले से तार के जरिये (जैसे – खून की धमनी में एंजियोप्लास्टी के जरिये स्टेंट लगाते हैं ठीक वैसे ही) हार्ट के वाल्व में एक स्टेंट के माध्यम से नया वाल्व स्थापित किया. इस पूरी प्रक्रिया को वाल्व-इन-वाल्व तावी कहा जाता है. इसी के साथ महाधमनी वाल्व संकुचन या महाधमनी स्टेनोसिस की बीमारी में ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन के माध्यम से वाल्व के अंदर वाल्व प्रत्यारोपित करने का राज्य का पहला यह केस है.

35 प्रतिशत ही रह गई थी हृदय की कार्यक्षमता

कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव केस के संबंध में जानकारी देते हुए कहते हैं कि बुजुर्ग मरीज का वर्ष 2009 में एक निजी हृदय चिकित्सालय में ओपन हार्ट सर्जरी के जरिये पैरामाउंट वाल्व का प्रत्यारोपण किया गया था. फरवरी 2022 में मरीज को इस वाल्व के कारण परेशानी शुरू हो गई. एओर्टिक स्टेनोसिस के केस में हार्ट में एनजाइना / दर्द होना शुरू हो जाता है तो इंसान का जीवनकाल 3 साल तक ही शेष रह जाता है. यदि चक्कर आता है और बेहोश हो जाता है तो 2 साल तक ही जीवनकाल शेष रहता है. वयोवृद्ध मरीज को सीने में दर्द रहता था और चक्कर आते थे. हार्ट का फंक्शन 35 प्रतिशत ही था. सर्जन के लिए हाई रिस्क केस था इसलिए निर्णय लिया गया कि इसका तावी प्रक्रिया से इलाज करें. वाल्व का मीन ग्रेडिएंट 60 मिलीमीटर एचजी से ज्यादा था. इन सबको देखते हुए यह डिसाइड किया कि इस मरीज को वाल्व इन वाल्व प्रत्यारोपित किया जाए और 22 दिसंबर को सफल प्रत्यारोपण किया गया. मरीज के शरीर से सोडियम का जाना कम हो गया. मरीज पूर्णतः स्वस्थ हो गया.

ऐसे हुआ प्रोसिजर

सीटी एंजियो के जरिए जांघ से हृदय तक की संरचनाओं का नक्शा बना लिया गया था. इस नक्शे के अनुसार दाहिने तरफ की जांघ की नस से 23 मिलीमीटर का स्वयं विस्तारित (सेल्फ एक्सपांडिंग) ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन किया गया. पैर की नसों में एक पतला तार डाला गया. उस तार को दिल के अंदर ले जाकर कैथ लैब में एक्स-रे को देखते हुए पुराने वाल्व में बैलून को फुलाया या खोला, फिर उसके अंदर एक नया वाल्व स्टेंट के साथ लगा दिया गया. प्रोसीजर के बाद यह सुनिश्चित किया गया कि दो वाल्व होने के बावजूद मरीज की हार्ट की नसों में कोई अवरूद्ध नहीं है.

तावी किसके लिए?

ऐसे रोगियों के लिए तावी प्रक्रिया का बहुत महत्व है जिनकी ओपन हार्ट सर्जरी संभव नहीं है या उनका ओपन-हार्ट सर्जरी बहुत जोखिम भरा है. तावी प्रक्रिया में मरीज को ज्यादा बेहोश भी नहीं किया जाता और आईसीयू की जरूरत भी बहुत कम ही पड़ती है.

महाधमनी वाल्व संकुचन

डॉ. स्मित श्रीवास्तव महाधमनी संकुचन या महाधमनी वाल्व स्टेनोसिस के संबंध जानकारी देते हुए कहते हैं, हमारे हृदय में चार वाल्व होते है, जिसमें सबसे प्रमुख होता है, महाधमनी वाल्व जब हृदय का महाधमनी वाल्व संकरा हो जाता है, तब वाल्व पूरी तरह से नहीं खुलता है. संकरापन के कारण हृदय से मुख्य धमनी (महाधमनी) और शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त का प्रवाह कम या अवरुद्ध हो जाता है. इसे महाधमनी वाल्व संकुचन या महाधमनी स्टेनोसिस कहा जाता है. ज्यादातर एओर्टिक वाल्व की सिकुड़न बढ़ती उम्र में ही पाई जाती है. चुनिंदा मामलों में ही यह जन्मजात एवं कम उम्र में पाया जाता है. वृद्धावस्था में शरीर बहुत कमजोर होता है इसलिए ओपन हार्ट सर्जरी की जटिलता अधिक होती है.

सहयोग से मिली सफलता

डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार इस केस की सफलता में शासन की स्वास्थ्य सहायता योजना के साथ ही सभी डॉक्टरों एवं सहयोगी स्टाफ का बराबर सहयोग रहा जिसमें मेरे साथ सीटीवीएस विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. के. के. साहू एवं डॉ. निशांत सिंह चंदेल, कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. जोगेश विशनदासानी, रेजिडेंट डॉक्टर प्रतीक गुप्ता, डॉ. कुमार उज्जवल एवं डॉ. एकता सिंह एनेस्थीसिया एवं क्रिटिकल केयर से डॉ. श्रुति, तकनीकी सहयोग – आई. पी. वर्मा, खेम सिंह, अश्विन साहू, बद्री, कुसुम, नवीन ठाकुर, नर्सिंग केयर – इंचार्ज सिस्टर नीलिमा वर्मा और बुद्धेश्वर, अन्य सहयोगी के रूप में बी. के. शुक्ला, खोगेन्द्र साहू और डेविड तिर्की का योगदान महत्वपूर्ण रहा.