नीलेश भानपुरिया, झाबुआ। आप सभी ने ऋषभ शेट्टी की निर्देशित फिल्म कांतारा तो देखी ही होगी जिसमें देव स्थान को बचाने के लिए ग्रामीणों को कितना संघर्ष करना पड़ता है। इस फिल्म में दिखाया गया था कि किस तरह एक राजा ने देव को जमीन दान में दी थी लेकिन बाद में उस राजा के पूर्वज उस पर कब्जा करने की फिराक में रहते हैं। वहीं वन विभाग भी जमीन अधिग्रहण के प्रयास में रहता है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले से जहां आदिवासियों की आस्था का केंद्र बाबा देव की जमीन को प्रशासन ने पुलिस आवास के लिए आवंटित कर दिया है। प्रशासन के इस फैसले के बाद ग्रामीणों में भारी रोष है।
ग्रामीणों का कहना है कि जिस जमीन को पुलिस आवास के लिए आवंटित किया गया है वहां उनके देव विराजित हैं। उन्होंने कहा कि मोजिपाड़ा ग्राम के बाबा देव की भूमि को बिना सूचना एवं सहमति के जिला कलेक्टर ने पुलिस कर्मचारियों के आवास गृह निर्माण के लिए आवंटित कर दी गई। इसे लेकर बडी संख्या में आदिवासी कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और नारेबाजी करते हुए धरने पर बैठ गये। इसी के साथ अपनी जमीन बचाने की मांग करते रहे। उन्होंने राज्यपाल के नाम अपर कलेक्टर को ज्ञापन दिया और जमीन अधिग्रहण के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर जन आंदोलन की चेतावनी दी।
ग्रामीणों ने बताया बाबा देव का स्थान
जमीन अधिग्रहण के प्रति मोजिपाड़ा के स्थानीय लोगों ने बताया कि इस जमीन पर हमारे गांव के देवता बाबा देव का स्थान हैं। यहां पर वगाजा देव, कुंवर वगाजा, मनाता देव, नाह्रींग देव, हालून देव, बाबा गणेश, कतीजा डामोर एवं अमलियार के गातला, कालका माता, होवन माता, जोगणा माता, सूली माता इस जमीन पर विराजमान है। इसी वजह से वर्षो पुराने पेड़ पौधे यहां लगे हुए हैं। यह बाबादेव का स्थान है जो हमारे जनजाति समाज की आस्था का केंद्र हैं। इस जमीन को अगर अधिग्रहण किया गया तो हम जन आंदोलन करेंगे। ग्रामीणों ने प्रशासन से कहा है कि शासन-प्रशासन को भूमि निरस्त करने के लिए 5 से 6 दिन का समय दिया है। इसके बाद बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
जमीन अधिग्रहण का सालों से कर रहे विरोध
मध्य प्रदेश के बाहुल्य आदिवासी जिले झाबुआ की आबादी करीब 10 लाख से अधिक है। अपनी जीवंत आदिवासी संस्कृति, हस्तशिल्प और प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए मशहूर इस जिले में पीढ़ियों से रोजी-रोटी का मुख्य साधन कृषि है। झाबुआ के कई गांव की जमीन सालों से राजमार्ग,औद्योगिक निवेश जैसी अन्य परियोजनाओं में अधिग्रहित की जा रही है। जिससे लोग भूमिहीन होते जा रहे हैं। ऐसे में लोगों की स्वतंत्रता, समानता, आर्थिक-सामाजिक न्याय जैसे अन्य संवैधानिक मूल्य प्रभावित होते हैं। इसलिए परियोजनाओं में हो रहे जमीन अधिग्रहण का लोग सालों से विरोध भी कर रहे हैं।
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