कुमार इंदर, जबलपुर। मध्य प्रदेश में गायों के नाम पर मचा गदर किसी से छिपा नहीं है। तमाम संगठनों से लेकर सरकार तक गायों के नाम पर सियासत करती है और उनके संरक्षण के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कहीं पर गायों के शव पाए जा रहे हैं तो कहीं गो तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं। जबलपुर के बरगी विधानसभा के अंतर्गत आने वाली बंदरकोल ग्राम पंचायत में बनी सरकारी गौशाला का हाल भी कुछ ऐसा ही है। 

यहां सरकारी रिकॉर्ड में 110 गाय दर्ज हैं लेकिन बदहाली का आलम ये है कि गायों को न तो खाने के लिए ढंग का भूसा है, और न ही हरे चारे की व्यवस्था है। साढ़े दस हेक्टेयर जमीन है लेकिन उस पर खेती की जा रही है। इस वजह से गायों की हालत बिगड़ने लगी है। बदहाली का आलम यह है कि भूख, प्यास से तड़प-तड़प कर एक-एक कर कई गायों ने दम तोड़ दिया। जो गाएं मर गयीं उन्हें दफन करने की जगह खुले में फेंक दिया गया। जिन्हें आवारा जानवर और पक्षी नोंच-नोंच कर खा गए।

खुले में चराने का नहीं है नियम

नियम के मुताबिक सरकारी गौशाला में रखने वाली गायों को बाहर चराने के लिए नहीं ले जाया जा सकता। लेकिन गौशाला के लिए लाखों का फंड देने के बाद भी उन्हें न चारा नसीब हो रहा, न भूसा और न ही भोजन। लिहाजा गौशाला के कर्मचारी ही उन्हें बाहर जंगल में चराने ले जाते हैं। 

कई बार कट चुकी है गौशाला की लाइट

गौशाला की कई दिनों से लाइट कटी हुई है, इसके चलते गौशाला में पानी नहीं आ रहा है। वहीं गायों को यूं ही अंधेरे में रहना पड़ रहा। ऐसा नहीं है कि पहली बार यह हुआ है बल्कि बिजली बिल न भरने से गौशाला की लाइट पहले दो बार भी कट चुकी है। 

सचिव और डॉक्टर बन रहे अंजान

गायों की अव्यवस्था से होने वाली मौतों को लेकर जिम्मेदारों ने चुप्पी साध ली। इस मामले में बंदरकोला ग्राम पंचायत सचिव बबलू पटेल से गाय की मौत का कारण पूछा तो उन्होंने पल्ला झाड़ लिया। उनका कहना है कि मैं छुट्टी पर था इसलिए मुझे जानकारी नहीं मिली है। वहीं वेटरनरी डॉक्टर आशीष लखेरा को भी फोन लगाया लेकिन उन्होंने साफ तौर पर यह कह दिया कि मेरा इससे कोई वास्ता नहीं है। जिसके लिए पूरी तरह से ग्राम पंचायत जिम्मेदार है। जबकि गौशाला के लिए सरकार की और से ही सरकारी डॉक्टर नियुक्त किया गया है। जिसकी जिम्मेदारी है कि वह गौशाला जाकर जानवरों का निरीक्षण करें। लेकिन गांव के लोगों का कहना है कि इस पूरे खेल में डॉक्टर की भी मिलीभगत है।

गौ शाला में डॉक्टर की ज़िम्मेदारी

किसी भी सरकारी गौशाला में एक सरकारी डॉक्टर की बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। मतलब गायों का रूटीन चेकअप करना, उनकी गिनती करना, गायों की टैगिंग करना और यहां तक की गायों को कितना खाना कब और कैसे खिलाना है यह सारी जिम्मेदारी डॉक्टर की ही बनती है। और तो और डॉक्टर के साइन के बाद ही यह सारे बिल निकलते हैं।

कभी राष्ट्रपति से सम्मानित रही है ये ग्राम पंचायत

किसी समय राष्ट्रपति से सम्मानित बंदरकोला ग्राम पंचायत के गौशाला में गायों की देखरेख के लिए ग्राम पंचायत की ओर से पांच लोगों को रखा है। इसमें सरपंच के घर से ही दो लोग शामिल है। सरपंच परिवार को इसके लिए 200 रुपए का भुगतान भी किया लेकिन उसके बावजूद हालात बद से ज्यादा बदतर  हैं। अब सवाल यह उठता है कि इस ओर शासन प्रशासन का ध्यान क्यों नहीं जा रहा है।

सरपंच पति की सफाई

इस मामले में सरपंच पति ओमप्रकाश लारा का कहना है कि यदि समय पर गौशाला का फंड मिलता रहे तो यह अव्यवस्था न हो। उन्होंने कहा कि गौशाला में कर्मचारियों के वेतन और चौकीदार का प्रावधान होना चाहिए। शासन की ओर से गौशाला की बिजली बिल का भी कोई प्रावधान नहीं है।

देश भर में गायों को माता का दर्जा प्राप्त है, इनके नाम पर प्रदेश में भी लगातार राजनीति होती आई है।लेकिन इस तरह गौशाला में अव्यवस्था की वजह से उनकी इस तरह मौत जिम्मेदारों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि आखिर गाय की मौत पर लगाम कब लगेगी और जिम्मेदारों पर कब कार्रवाई की जाएगी।