दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को सीबीआई को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रथम वर्ष के छात्र नजीब अहमद के लापता होने के मामले को बंद करने की अनुमति दे दी, जो 15 अक्तूबर 2016 को लापता हो गया था। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ज्योति माहेश्वरी ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार कर ली, लेकिन भविष्य में कोई सबूत मिलने पर मामले को फिर से खोलने की छूट दी।

सीबीआई ने अक्तूबर 2018 में जांच बंद कर दी थी, क्योंकि जेएनयू के प्रथम वर्ष के मास्टर्स छात्र नजीब अहमद का पता लगाने के उनके प्रयास असफल रहे थे। दिल्ली उच्च न्यायालय की अनुमति के बाद सीबीआई ने अदालत में अपनी क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। 15 अक्तूबर, 2016 को जेएनयू के माही-मांडवी छात्रावास में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से कथित रूप से जुड़े कुछ छात्रों के साथ झड़प के बाद नजीब लापता हो गया था।

नजीब की मां फातिमा नफीस के वकील ने पहले दावा किया था कि यह एक राजनीतिक मामला है और सीबीआई अपने आकाओं के दबाव में झुक गई है। मामले की जांच शुरू में दिल्ली पुलिस ने की थी, जिसे बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया।

पूरा मामला क्या है

नजीब अहमद की मां के अनुसार, वह 13 अक्टूबर 2016 को छुट्टियों के बाद जेएनयू लौटे थे। 15-16 अक्टूबर की रात को, उन्होंने अपनी मां को फोन किया और बताया कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है। अपनी एफआईआर में, फातिमा नफीस ने यह भी कहा कि अहमद के रूममेट, कासिम ने उन्हें बताया कि लड़ाई हुई थी और वह घायल हो गए थे। अगले दिन, उन्होंने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से बस से अपने बेटे से मिलने का फैसला किया। जब वह दिल्ली पहुंची, तो उसने नजीब से बात की और उसे छात्रावास में मिलने के लिए कहा। लेकिन जब वह माही-मांडवी छात्रावास के कमरा नंबर 106 में पहुंची, तो नजीब अहमद का कोई पता नहीं था। वह तब से लापता हैं।

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