सुप्रीम कोर्ट ने 4 साल के नाबालिग बच्चे की गला घोंटकर बेरहमी से हत्या करने के दोषी को 25 साल की सजा बिना किसी छूट के सुनाई. 2016 में एक नाबालिग लड़के के यौन उत्पीड़न और हत्या मामले में एक दोषी को दी गई मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने बिना छूट के 25 साल की जेल की सजा में बदल दिया.

जस्टिस बी आर गवई, अरविंद कुमार और के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि यह मामला दुर्लभतम की श्रेणी में नहीं आता है और सुधार की संभावना पूरी तरह से खत्म हो गई है. शीर्ष अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के अप्रैल 2019 के फैसले को चुनौती देने वाले दोषी संभुभाई रायसंगभाई पढियार की अपील पर निर्णय दिया कि बिना छूट के 25 वर्ष की कारावास की सजा अपराध के लिए पर्याप्त होगी और कानूनी व्यवस्था में जनता का विश्वास खतरे में नहीं डालेगी.

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यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के अलावा हत्या सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दंडनीय अपराधों के लिए हाई कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया और मौत की सजा को बरकरार रखा था. अभियोजन पक्ष ने कहा कि पढियार ने अप्रैल 2016 में गुजरात के भरूच जिले में चार वर्षीय लड़के का अपहरण करने के बाद उसका यौन शोषण और हत्या कर दी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि घटना के समय अपीलकर्ता की उम्र 24 वर्ष थी, उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था, वह एक निम्न सामाजिक-आर्थिक परिवार से था, उसने चार साल के बच्चे को आइसक्रीम का लालच देकर बहलाया और बेरहमी से अप्राकृतिक यौनाचार किया और उसकी हत्या कर दी, साथ ही बेरहमी से मृतक का गला घोंट दिया.

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पीठ ने कहा कि वडोदरा जेल के अधीक्षक की रिपोर्ट बताती है कि अपीलकर्ता का व्यवहार सामान्य था और उसका आचरण अच्छा था, साथ ही मानसिक स्वास्थ्य अस्पताल की रिपोर्ट बताती है कि अपीलकर्ता को फिलहाल कोई मानसिक समस्या नहीं है.

पीठ ने कहा कि तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, हम मानते हैं कि वर्तमान मामला ऐसा नहीं है कि सुधार की संभावना पूरी तरह से खारिज हो चुकी है. अपीलकर्ता का मामला दुर्लभतम की श्रेणी में नहीं आता है, लेकिन अपराध की प्रकृति को देखते हुए आजीवन कारावास की सजा (आमतौर पर 14 साल) कम होगी.

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शीर्ष अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले पर विचार किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बच्चा अपने घर के बाहर खेल रहा था जब आरोपी उसे आइसक्रीम दिलाने के बहाने ले गया और फिर उसका शव झाड़ियों के पास मिला.

शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर आरोपी को मृतक के साथ आखिरी बार देखा गया था, खासकर अगर मौत की घटना और आखिरी बार देखे जाने के बीच बहुत कम समय था, तो यह निश्चित था. पीठ ने धारा 302 (हत्या) के तहत अपराधों के लिए मौत की सजा को रद्द कर इसे 25 साल बिना छूट के कठोर कारावास के साथ बदल दिया, हत्या सहित POCSO अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराधों के लिए सजा बरकरार रखते हुए. पीठ ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए 20,000 रुपये का जुर्माना रद्द कर दिया.

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