आपने कल्पना भी नहीं की होगी कि छत्तीसगढ़ में बड़ी मात्रा में काजू की पैदावार हो सकती है. लेकिन गांव वालों की मेहनत और सरकार की मदद के बाद ये सफल हो सका है.

रायपुर. मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) से गांवों में लगातार सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं. आजीविका के साधनों को मजबूत करने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों को सहेजने का काम भी इसके तहत बड़े पैमाने पर किए जा रहे हैं. साथ-साथ हरियाली प्रसार और पर्यावरण संरक्षण के काम भी हो रहे हैं. मनरेगा ने वनांचल बस्तर के दशापाल गांव में बंजर और पथरीली धरती की किस्मत बदल दी है. ग्राम पंचायत ने मनरेगा कार्यों के अंतर्गत वहां की खाली जमीन पर कुछ बरस पहले काजू के पौधे लगाए थे. अब ये पौधे पेड़ बन गए हैं और पंचायत को सालाना 20 हजार रूपए की आमदनी दे रहे हैं. इस वृक्षारोपण ने खाली पड़ी जमीन को अतिक्रमण से तो बचाया ही, गांव को हरियाली की चादर भी ओढ़ाई है.

दशापाल बस्तर जिले के बकावंड विकासखंड के भेजरीपदर ग्राम पंचायत का आश्रित गांव है. काजू उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु को देखते हुए जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर इस गांव में वर्ष 2006 में मनरेगा के तहत वृक्षारोपण कराया गया था. उस समय साढ़े 40 हजार रूपए की लागत से काजू के 1385 पौधे लगाए गए थे. 49 मनरेगा श्रमिकों ने चार हफ्तों में इस काम को पूरा किया था. गांव के 34 परिवारों को 232 मानव दिवसों का रोजगार मिला था और उन्हें मजदूरी के रूप में करीब 14 हजार रूपए मिले थे. दशापाल की ढाई एकड़ से अधिक खाली बंजर जमीन पर रोपे गए ये पौधे अब 11-11 फीट के काजू के पेड़ बन गए हैं. पिछले सात वर्षों से इनसे ग्राम पंचायत को सालाना 20 हजार रूपए की कमाई हो रही है.

भेजरीपदर के सरपंच रघुनाथ कश्यप बताते हैं कि काजू के पौधों को पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती है और जानवर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. जमीन में नमी बनाए रखने के लिए प्रत्येक पौधे के साथ गोलाकार ट्रेंच का निर्माण कराया गया था. अब जब ये पौधे पेड़ बन चुके हैं और फल दे रहे हैं तो गांव को आमदनी हो रही है. इनके रखरखाव और काजू की तोड़ाई में कुछ परिवारों को रोजगार भी मिल रहा है. वे कहते हैं – ‘मनरेगा के अंतर्गत किए गए इस कार्य ने बंजर जमीन के टुकड़े को कमाऊ संसाधन में बदल दिया है. यह गांव में हरियाली बिखेरने के साथ ही गांव का पर्यावरण भी सुधार रहा है.‘