हैदराबाद। देश भर में जाति जनगणना की मांग करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को सदन में तेलंगाना जाति सर्वेक्षण को एक प्रमुख उदाहरण के तौर पर उद्धृत किया. जाति सर्वेक्षण में तेलंगाना की आबादी में अन्य पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत होना पाया गया है. अब यह सर्वेक्षण कांग्रेस के लिए गले की हड्डी बन गया है, क्योंकि तेलंगाना में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में सर्वेक्षण के हिसाब से ओबीसी नेता हिस्सेदारी मांग रहे हैं.

अन्य पिछड़े वर्ग के नेताओं ने मांगों पर ध्यान नहीं दिए जाने पर राज्य भर में बड़े पैमाने पर आंदोलन की धमकी दी है, जिससे मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की कांग्रेस सरकार पर दबाव बढ़ गया है. सिर्फ तेलंगाना में ही नहीं, बल्कि पड़ोसी कांग्रेस शासित कर्नाटक में भी पार्टी जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट से जूझ रही है. 2018 में तैयार की गई रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के मुद्दे पर कांग्रेस खुद भी बंटी हुई है.

आंदोलन का किया गया आह्वान

तेलंगाना के सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, रोजगार, राजनीतिक और जाति सर्वेक्षण के लिए किए गए जाति जनगणना ने खुलासा किया है कि पिछड़े वर्ग (मुस्लिम पिछड़े वर्गों को छोड़कर), तेलंगाना की आबादी का 46.25% हिस्सा बनाते हैं, जिससे वे राज्य में सबसे बड़ा सामाजिक समूह बन जाते हैं.

रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछड़ों के बाद अनुसूचित जाति (एससी) 17.43%, अनुसूचित जनजाति (एसटी) 10.45% और मुस्लिम पिछड़े वर्ग तेलंगाना की आबादी का 10.08% हिस्सा बनाते हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का नारा, “जितनी आबादी, उतना हक” (जनसंख्या के आकार के अनुपात में अधिकार), सर्वेक्षण के निष्कर्षों के साथ कि पिछड़े हिंदू और मुस्लिम मिलकर तेलंगाना की आबादी का लगभग 48% हिस्सा बनाते हैं, अब आगामी स्थानीय चुनावों में आरक्षण बढ़ाने की मांग के लिए प्रेरित करने का काम कर रहे हैं.

राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग संघ के अध्यक्ष आर कृष्णैया सहित पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने तेलंगाना पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष वकुलभरणम कृष्ण मोहन राव के साथ मिलकर तेलंगाना की कांग्रेस सरकार से आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग के लिए 42% आरक्षण लागू करने की मांग की है.

द हिंदू के अनुसार, उन्होंने अपनी मांग पूरी न होने पर बड़े पैमाने पर आंदोलन की चेतावनी भी दी है. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पिछड़ा वर्ग को नौकरियों और विधायी निकायों में उनका उचित हिस्सा नहीं दिया गया तो वे विद्रोह कर सकते हैं.

वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछड़ा वर्ग से जुड़े लोगों ने यह भी आरोप लगाया है कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम क्षेत्र के कई घरों को सर्वेक्षण में शामिल नहीं किया गया. पिछड़ा वर्ग समुदाय के नेताओं के साथ-साथ के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी सर्वेक्षण के निष्कर्षों को लागू करने की मांग की है.

बीआरएस एमएलसी के कविता (के चंद्रशेखर राव की बेटी) ने समाचार एजेंसी को बताया. “तेलंगाना सरकार द्वारा आयोजित जाति जनगणना का परिणाम रविवार को आया. सरकार ने घोषणा की है कि 46.3% पिछड़े वर्ग हैं, साथ ही 10.2% मुस्लिम पिछड़े वर्ग हैं – इन सभी को मिलाकर – 56.3% डेटा है. हम कांग्रेस सरकार से मांग कर रहे हैं कि स्थानीय निकाय चुनावों में जाने से पहले आप इस 56.3% को आरक्षण दें.”

जाति जनगणना को लेकर कर्नाटक कांग्रेस पहले ही विभाजित

तेलंगाना का यह कदम ऐसे समय में आया है जब रिपोर्टों से पता चला है कि कर्नाटक का जाति सर्वेक्षण सात साल से धूल खा रहा है, और इसे सार्वजनिक किए जाने को लेकर कांग्रेस विभाजित है.

सूत्रों ने पहले बताया था कि कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और कुछ उच्च जाति के मंत्रियों ने कांग्रेस आलाकमान को 16 जनवरी को कैबिनेट की बैठक में जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करने से रोकने के लिए मजबूर किया था.

160 करोड़ रुपये की लागत वाले सर्वेक्षण के निष्कर्षों को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2014 में अपने पिछले कार्यकाल में कमीशन किया था. इसे जनवरी में कैबिनेट की बैठक में पेश किया जाना था, लेकिन कांग्रेस आलाकमान के हस्तक्षेप के बाद इसे रोक दिया गया था.

आखिरी मिनट में यू-टर्न ने कर्नाटक जाति सर्वेक्षण पर कांग्रेस के भीतर आम सहमति की कमी को उजागर किया, जिसे राहुल गांधी ने बार-बार पूरे देश का “एक्स-रे” बताया है.

अब, तेलंगाना में जाति सर्वेक्षण को लेकर विपक्ष के उभार और कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के बंटवारे के साथ, पार्टी खुद को अपनी ही बनाई स्थिति में फंसी हुई पा रही है.