सुशील सलाम, कांकेर. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नवमी के दिन सुहागिन महिलाओं ने आंवला नवमी की पूजा-अर्चना की. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का बहुत महत्व होता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं आंवले के पेड़ के नीचे बैठ कर पूजा-अर्चना के बाद कन्या भोज के साथ प्रसाद ग्रहण करती है. मान्यताओं के अनुसार आंवला नवमी के दिन आंवलें के पेड़ की पूजा करने से सुहागिन महिलाओं के संतान प्राप्ति, परिवार में खुसहाली की मनोकामना पूर्ण होती है.
कांकेर जिले में आवंला नवमी की जगह-जगह पूजा-अर्चाना की गई. आंवले के पेड़ के नीचे सुहागिन महिलाएं इकट्ठा होकर विधी-विधान के साथ पूजा-अर्चाना करने साथ आंवले के पेड़ पर परिवार की सलामती के लिए रक्षा सूत्र भी बांधा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवला नवमी को ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था. इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी. आज भी लोग अक्षय नवमी पर मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं.
संतान प्राप्ति के लिए इस नवमी पर पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. इस व्रत में भगवान श्री हरि का स्मरण करते हुए रात्रि जागरण करते है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से महिलाओं की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है एवं व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है. आंवला नवमी पर्व को देखते हुए सुहागिन महिलाओं में खासा उत्साह देखा गया.
महिलाओं के द्वारा सुबह से ही आंवले के वृक्ष के पूजन की तैयारी की गई. बड़ी संख्या मेंमहिलाओं ने वृक्ष की सात परिक्रमा की एवं वृक्ष के चारों ओर मनोकामना पूर्ति के लिए कच्चा धागा बांधा, एवं आंवले की जड़ में दूध भी चढ़ाया. पूजा के बाद सुहागिन महिलाओं ने गरीबों के रुपये, कपड़े आदि दान दक्षिणा भेंट कर पुण्य अर्जित किया.
व्रतधारणी महिलाओं से जब इस संबंध में बात की गई तो उन्होंने बताया कि आंवला नवमी की पूजा कई वर्षों से निरंतर करती आ रही है. इसका वंछित परिणाम भी मिल रहा है. पूजा-अर्चाना कर रही महिलाओं ने कहा कि पूजा-अर्चाना के पश्चात सभी लोग मिल कर संगीत भी गाते है. व्रत धारणी महिलाओं ने बताया कि इस दिन खीर और पूड़ी के प्रशाद का बहुत महत्व होता है. इस प्रशाद को पेड़ के नीचे ही बैठ कर प्रशाद को ग्रहण करते है.