रायपुर। देश मे रंगों का त्योहार होली करीब आ रहा है. देश में विभिन्नता के चलते अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से इस त्योहार को मनाया जाता है हम आपको भारत के उन शहरों के बारें में बता रहे हैं जहां मजेदार तरीके से होली को सेलिब्रेट किया जाता है। यहां होली की धूम में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से विदेशों से भी लोग पहुंचते हैं.
मथुरा–वृंदावन की फूलों वाली होली
अगर आप इस होली को शानदार बनाना चाहते हैं तो आप मथुरा-वृंदावन जा सकते हैं। यहां की होली विश्व भर में लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। यहां लोग फूलों से खेलते हैं। यह होली पूरे सप्ताह तक चलती है और इसे खेलने के लिए दुनियाभर से सैलानी आते हैं। इसका सेलिब्रेशन वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर से शुरू होता है। इस बार 17 मार्च को एक-दूसरे पर फूल फेंकने से इसकी शुरुआत हुई है.
नंदगांव की लठमार होली
होली के मायने पूरे भारत वर्ष में भले ही अलग हो पर बरसना नंदगांव की होली का नजारा हमेशा खास होता है. बरसाना की लड्डू होली व लठमार होली जिसने एक बार देखली वह जीवन पर्यंत अपने जहन से नहीं निकाल सकता है. अनोखी होली को देखने को देश के कोने-कोने से भक्तों का आना शुरू हो गया है। यहां की होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है. लठमार होली की शुरुआत होली के मुख्य पर्व से एक सप्ताह पहले होती है. इस साल इसकी शुरुआत 15 मार्च से हुई है. अगले दिन यह सेलिब्रेशन नंदगांव में शुरू हुआ. लठमार होली से दो दिन पहले बरसाना पहुंचना ठीक रहता है क्योंकि इससे आप लड्डू होली का आनंद ले सकेंगे। इसमें लोग एक-दूसरे पर मिठाई (लड्डू) फेंकते हैं। साथ ही राधा-कृष्ण के भजन गाए जाते हैं.
उत्तर-प्रदेश के शाहजहांपुर की जूतामार होली
यूपी के शाहजहाँपुर मे होली मनाने का अंदाज सबसे निराला है। यहां जूतामार होली खेली जाती है। जूता मार होली खेलने की परंपरा वर्षों पुरानी है। इस अंदाज मे होली खेलने के पीछे की एक और कहानी है जो सबसे जुदा है। यहां हर साल होली पर अंग्रेजों का प्रतीक बनाकर एक युवक को भैंसा गाड़ी पर बैठाते है। युवक के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं होता है। उसके बाद उस भैंसा गाड़ी पर बैठे युवक को पूरे शहर मे घुमाया जाता है। इस जुलूस का नाम है लाट साहब का जुलूस। बताया जाता है ये जुलूस अंग्रेजों द्वारा ढहाए गए जुल्म के विरोध मे अपना आक्रोश दिखाना होता है.
कर्नाटक के हंपी शहर की होली
वैसे तो दक्षिण भारत में होली का त्योहार ज्यादा धूम धाम से नहीं मनाया जाता है. लेकिन कर्नाटक के हंपी में इस त्योहार की धूम हर साल देखी जाती है.ढेर सारे रंग,पानी और साथ में तेज आवाज में गानें हंपी में होली को बेहतरीन बनाते हैं.वैसे यहां काफी सारे विदेशी पर्यटक भी घूमने आते हैं.
पंजाब के श्री आनंदपुर साहिब की होली
पंजाब में होला मोहल्ला में होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनायी जताई है, इसलिए इसे जाबांजों की होली भी कहा जाता है. होला मोहल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है. इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं. जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है. एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से ‘महा प्रसाद’ पका कर वितरित किया जाता है. पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। होला मोहल्ला मनाने की परंपरा गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) के समय हुई थी, जिन्होंने चेत वाडी पर आनंदपुर में पहला जुलूस आयोजित किया था. 1700 में निनोहग्रा की लड़ाई के बाद शाही शक्ति के खिलाफ एक गंभीर संघर्ष को रोकने के लिए यह किया गया था. गुरु साहिब ने अपने सिखों को सत्य की रक्षा करने और रक्षा करने के लिए अकाल पुरख की फैज (सर्वशक्तिमान की सेना) के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी और कर्तव्य के लिए जागृत किया था. वर्ष 1757 में गुरु जी ने सिंहों की दो पार्टियां बनाकर एक पार्टी के सदस्यों को सफेद वस्त्र पहना दिए तथा दूसरे को केसरी. फिर गुरु जी ने होलगढ़ पर एक गुट को काबिज करके दूसरे गुट को उन पर हमला करके यह जगह पहली पार्टी के कब्जे में से मुक्त करवाने के लिए कहा। इस समय तीर या बंदूक आदि हथियार बरतने की मनाही की गई क्योंकि दोनों तरफ गुरु जी की फौजें ही थीं. आखिर केसरी वस्त्रों वाली सेना होलगढ़ पर कब्जा करने में सफल हो गई. गुरु जी सिखों का यह बनावटी हमला देखकर बहुत खुश हुए तथा बड़े स्तर पर हलवे का प्रसाद बनाकर सभी को खिलाया गया तथा खुशियां मनाई गईं. उस दिन के बाद आज तक श्री आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला दुनिया भर में अपनी अलग पहचान रखता है.
मेरठ के बिजौली गांव की तलवार वाली होली
तलवारों के साथ होली का संबंध सुनकर आपको आश्चर्य हो सकता है परंतु यह सच है. मेरठ से लगभग 12 किलोमीटर दूर बिजौली नामक गांव में होली का त्योहार सुंओं और तलवारों के साथ मनाया जाता है. इस 200 साल प्राचीन परंपरा के अनुसार गांव के निवासी होलिका दहन की राख को अपने बदन पर लगाते हैं और धुलेड़ी वाले दिन तलवारों को पेट पर बांध कर मुंह में सुंओं से घाव करते हैं. यह परंपरा आपको अजीब लग सकती है लेकिन उनके होली मनाने का यही तरीका है. यह अनोखी परंपरा किसी बाबा ने 200 वर्ष पहले शुरु की थी जिनकी समाधि आज भी गांव में है. ऐसी मान्यता है कि यदि इस परंपरा को रोक दिया जाए तो गांव को किसी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ सकता है.
दंतेवाड़ा की होली
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल क्षेत्र दंतेवाड़ा की होली भी अपनी अनोखी परंपरा के लिए विख्यात है. ऐसी मान्यता है कि एक बार बस्तर पर आक्रमण हुआ और बस्तर की राजकुमारी के अपहरण की कोशिश की गई. तब राजकुमारी ने भाग कर दंतेश्वरी मंदिर के सामने आग जलाकर जौहर करके अपने सम्मान की रक्षा क. इसीलिए यहां होलिका दहन राजकुमारी के आग में प्रवेश करने की घटना को याद करते हुए मनाया जाता है. रंगों की जगह भी होलिका की राख और मिट्टी से ही होली खेली जाती है और अपहरण करने वालों को गालियां दी जाती हैं. दंतेवाड़ा में यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है.