सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय में हार्ट की बहुत ही दुर्लभ बीमारी एब्सटीन एनोमली का ऑपरेशन कर 26 वर्षीय महिला मरीज की जान बचा गई. प्रदेश में पहली बार हृदय के ऑपरेशन में बोवाइन टिश्यु वाल्व का प्रयोग किया गया, यही नहीं ऑपरेशन में मरीज को मरीज का ही खून चढ़ाया गया, जिसको ऑटोलॉगस ब्लड ट्रांसफ्यूजन कहा जाता है.

पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय व डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के नेतृत्व डॉक्टरों की टीम ने एक बार फिर दुर्लभ एवं अत्यंत जटिल हार्ट सर्जरी करके हार्ट सर्जरी के क्षेत्र में सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं.

हार्ट की बहुत ही दुर्लभ बीमारी एब्सटीन एनोमली में मरीज सामान्यतः 18 से 20 साल ही जिन्दा रहते हैं. यह दुर्लभ बीमारी 2 लाख में से एक को ही होती है.

26 वर्षीय मरीज का यह ऑपरेशन छत्तीसगढ़ में संभवतः किसी भी शासकीय या निजी संस्थान में पहला है. ऑपरेशन के पहले मरीज का ऑक्सीजन सेचुरेशन 70 से 75 प्रतिशत था, जो कि ऑपरेशन के बाद 98 प्रतिशत हो गया. मरीज ऑपरेशन के पहले कई बार बेहोश हो चुकी थी, लेकिन ऑपरेशन के बाद पूर्णतः स्वस्थ है, और डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है.

क्या है एब्सटीन एनोमली बीमारी

यह हृदय की जन्मजात बीमारी है. जब बच्चा मां के पेट के अंदर होता है, उस समय प्रथम 6 हफ्तों में बच्चे के हृदय का विकास होता है. इसी हृदय के विकास में बाधा आने पर बच्चे का हृदय असामान्य हो जाता है. इस बीमारी में मरीज के हृदय का ट्राइकस्पिड वाल्व ठीक से नहीं बन पाता एवं दायां निलय ( Right Ventricle ) ठीक से विकसित नहीं हो पाता एवं हृदय के उपर वाले चैम्बर में छेद (ASD) रहता है, जिसके कारण मरीज के फेफड़े में शुद्ध होने (ऑक्सीजेनेसन) के लिये पर्याप्त मात्रा में खून नहीं जाता, जिससे मरीज का शरीर नीला पड़ जाता है. इस बीमारी को क्रिटिकल कॉम्पलेक्स जन्मजात हृदय रोग (critical complex cyanotic congenital heart disease) कहा जाता है.

यह बीमारी 2 लाख जन्म लिए बच्चों में किसी एक को होता है. 13 प्रतिशत बच्चे जन्म लेते ही मर जाते हैं एवं 18 प्रतिशत बच्चे 10 साल की उम्र तक मर जाते हैं. 20 साल की उम्र तक इस बीमारी से ग्रस्त लगभग सारे मरीज मर जाते हैं. इस बीमारी में बच्चों के मरने का कारण हार्ट फेल्योर एवं अनियंत्रित धड़कन होता है. इस बीमारी का कारण गर्भावस्था के दौरान मां के द्वारा लिथियम एवं बेंजो डाइजेपाम, जिसका उपयोग मानसिक बीमारियों के उपचार में होता है, का उपयोग हो सकता है. इसके अलावा आनुवंशिक भी एक कारण हो सकता है.

विशेष तकनीक से किया ऑपरेशन

डॉ. कृष्णकांत ने मरीज एवं रिश्तेदारों को बताया कि ऑपरेशन में बोवाइन टिश्यु वाल्व की आवश्यकता होगी, ऑपरेशन में मरीज को मुख्यमंत्री विशेष सहायता योजना से 4.5 लाख रुपये का लाभ मिला जिससे उसके परिवार के ऊपर कोई आर्थिक बोझ नहीं आया. इस मरीज का जो ऑपरेशन हुआ, उसको मेडिकल भाषा में एएसडी क्लोजर विद डीवीडी पैच प्लस ट्राईकस्पिड वाल्व रिप्लेसमेंट विद 29 एमएम बोवाइन टिश्यु वाल्व प्लस आरवीओटी ( RVOT ) ऑब्स्ट्रक्शन रिलीज अंडर सीपीबी कहते हैं.

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इस ऑपरेशन की सबसे अहम बात यह है कि इस मरीज को दूसरे व्यक्ति का खून नहीं चढ़ाया गया. बल्कि मरीज के अपने खून को ही ऑपरेशन के दौरान मरीज को लगाया गया. इस विशेष तकनीक को मेडिकल भाषा में ऑटोलॉगस ब्लड ट्रांसफ्युजन कहा जाता है. इसमें मरीज के एक यूनिट खून को 8 दिन पहले निकालकर कर ब्लड बैंक में प्रोसेस के लिए रख लिया जाता है, एवं इसी ब्लड को ऑपरेशन के दौरान मरीज को लगाया जाता है, इसके फायदे यह है कि मरीज को संक्रमण का खतरा नहीं होता एवं ब्लड रिएक्शन का खतरा नहीं होता, राज्य में इस विशेष तकनीक का इस प्रकार के ऑपरेशन में पहला प्रयोग है.

ऑपरेशन में शामिल टीम

हार्ट सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष हार्ट चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी) के साथ हार्ट सर्जन डॉ. निशांत चंदेल, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. तान्या छौड़ा, नर्सिंग स्टॉफ – राजेन्द्र साहू, चोवा, मुनेश, एनेस्थेसिया टेक्नीशियन – भूपेन्द्र चंद्रा.

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