प्रतीक चौहान. रायपुर. 108 संजीवनी एक्सप्रेस का संचालन करने वाली कंपनी JAES ALS और BLS की ट्रेनिंग के नाम पर युवाओं से 12 से 21 हजार रुपए तक का शुल्क ले रही है. जबकि इसी एंबुलेंस का पूर्व में संचालन करने वाली कंपनी प्रदेश के युवाओं को हैदराबाद ले जाकर निःशुल्क ट्रेनिंग देती थी.
इतना ही नहीं JAES अपने संस्थान में काम करने वाले लोगों को ट्रेनिंग देने से पहले इसका शुल्क भी नहीं बता रही है. जबकि कर्मचारियों से इस संबंध में एक शपथ पत्र भी भरवाया जा रहा है, जिसमें शुल्क का कॉलम खाली छोड़ दिया गया है. हालांकि कंपनी ने लल्लूराम को कर्मचारियों द्वारा उपलब्ध कराई गई इस जानकारी को गलत बताया है. पहले आप कंपनी द्वारा उपलब्ध कराएं गए उनके पक्ष को शब्दश: पढ़िए फिर आपको विस्तार से इसकी पूरी हकीकत बताएंगे.
‘ट्रेनिंग के नाम पर 21 हज़ार रुपये लेने की जो जानकारी आपको प्राप्त हुई है वह गलत जानकारी है, जेएईएस द्वारा प्रदेश और देश में आपातकालीन सेवा में लोगों को दक्ष और करियर बनाने वालों के लिए ओपन ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट इमरजेंसी मैनेजमेंट ट्रेनिंग संस्थान की स्थापना की गई है, इसमें आपातकालीन, प्री हॉस्पिटल केयर , एवं अन्य ट्रेनिंग दी जाती है.
इसी के अंतर्गत एएलएस और बीएलएस एम्बुलेंस में कार्य करने वालों को दक्ष और आपातकालीन सेवा के अनुरूप बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है, इसमें संस्था द्वारा दो तरीके के ट्रेनिंग दी जा रही हैं जिसमें एक एडवांस लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस में कार्य करने और करियर बनाने वालों के लिए जो 30 दिन का कोर्स है, वहीं दूसरा बीएलएस एम्बुलेंस( बेसिक लाइफ सपोर्ट) में करियर और कार्य करने वालों के लिए है, इसकी अवधि 60 दिनों की है, संस्था द्वारा एएलएस के लिए 10 हज़ार रुपए और बीएलएस के लिए 17550 रुपये हज़ार की न्यूनतम फीस है, जबकि ट्रेनिंग के दौरान अभ्यर्थियों को दक्ष बनाने में होने वाले खर्च में संस्था द्वारा 30 से 40 प्रतिशत अतिरिक्त राशि का वहन किया जाता है, इस राशि में ट्रेनिंग के साथ ही अभ्यथियों के रहने , खाने और आने जाने का व्यय भी जुड़ा हुआ है, ट्रेनिंग के दौरान प्रशिक्षित ईएमटी – पायलट को सर्टिफिकेट भी प्रदान किया जा रहा है, इंस्टिट्यूट और ट्रेंनिग की प्रक्रिया पूरी तरीके से पारदर्शी है, इच्छुक उम्मीदवार हमारे संस्थान में ट्रेनिंग ले सकते हैं, सफल प्रशिक्षण के पश्चात अभ्यर्थियों को प्रमाणित करने का भी प्रावधान है’’
JAES के इस दावे के मुताबिक बीएलएस की ट्रेनिंग 60 दिनों में दी जाती है. जबकि हकीकत ये है कि पिछले दिनों यहां से दी गई इसी कोर्स की ट्रेनिंग महज 10 दिनों की थी. वहीं दूसरा सवाल ये है कि यदि नौकरी में रखने के बाद 60 दिनों की ट्रेनिंग दी जा रही है तो ट्रेनिंग के दौरान की सैलरी कंपनी उन्हें देगी ? जबकि स्वास्थ्य विभाग के टेंडर की शर्तों के मुताबिक ट्रेंड युवाओं को नौकरी पर रखना है, क्योंकि सवाल एक मरीज को प्रारंभिक इलाज उपलब्ध कराना और उसकी जान से जुड़ा हुआ है. वहीं यदि ये फीस कंपनी ने निर्धारित कर ही ली है तो छात्रों से भरवाएं जा रहे पत्र में इसका जिक्र क्यों नहीं किया गया है ? ये भी जांच का विषय है कि उक्त ट्रेनिंग के लिए ये कंपनी जो सर्टिफिकेट देगी वो शासकीय नियमों के मुताबिक मान्य होगा या नहीं.