रायपुर। इंडोर स्टेडियम में चल रहे छत्तीसगढ़ साहित्य महोत्सव एवं 19वें राष्ट्रीय किताब मेले के पांचवे दिन बुधवार को हिंदी के जाने माने लेखक नीलोत्पल मृणाल एवं हिंदी युग्म प्रकाशन के संपादक शैलेष भारतवासी के साथ परिचर्चा का आयोजन किया गया. पत्रकार प्रफुल्ल ठाकुर और सनी चंचलानी ने मेहमानों से बातचीत की.

परिचर्चा के दौरान नई वाली हिंदी पर नीलोत्पल ने कहा कि नई वाली हिंदी नए लेखकों के लिए टैग लाइन है. नई वाली हिंदी का अर्थ भाषा या शिल्प के साथ छेड़छाड़ नहीं है. नई वाली हिंदी के माध्यम से हमने पाठकों तक और सहजता से पहुंच रहे हैं. आज के दौर में अगर लिखा जा रहा है तो पात्र जिस भाषा में बात कर रहे हैं उसी के अनुरूप है. नई वाली हिंदी सिर्फ प्रकाशकों के लिए नहीं, पठनीयता के लिए है.

अपनी किताब औघड़ के बारे उन्होंने कहा कि औघड़ अपने समय के गांव को देखा जाने वाला साहित्य है. अवघड़ में गांव के वही दृश्य है, जो प्रेमचंद, रेणु या श्रीलाल शुक्ल के लिखित उपन्यासों और कहानियों के गांव हैं. बस उसके दिखाने का तरीका बदला है. बुनियादी समस्याओं के साथ तकनीकी विकास भी औघड़ में है.

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बेस्ट सेलर के सवाल पर उन्होंने कहा कि बेस्ट सेलर को लेकर फर्जीवाड़ा है. मेरा मानना है कि जब तक कोई किताब की प्रति 50 हजार न बिक न जाए तब तक वह बेस्ट सेलर नहीं है. हिंदी बेस्ट सेलर अभी दूर की कौड़ी है. नो टू फ्री कैम्पेन के सवाल पर नीलोत्पल ने समर्थन करते हुए कहा कि लेखन एक प्रोफेशन है अन्य प्रफेसन की तरह. इसलिए उसे उसकी मेहनत का मूल्य मिलना चाहिए.

हिंदी की तुलना में अंग्रेजी के लेखक अधिक पापुलर हैं और उनकी किताबें ज्यादा बिकती हैं, इस सवाल पर नीलोत्पल ने कहा कि अंग्रेजी में साधना नहीं है. हिंदी में लेखक को साधना से जोड़ दिया गया है. अंग्रेजी का लेखन प्रफेशनल है. हिंदी में आदर्शवादिता का चोला है, जो होना नहीं चाहिए था, लेकिन है. इसी को तोड़ने की कोशिश नई हिंदी के लेखक कर रहे हैं. हिंदी में फिजियोथेरेपी है लेखन. लेखन की आजीविका क साधना बोलना गलत है.

लेखक को अपने लेखन की परख खुद करना चाहिए- शैलेश

हिंदी युग्म के प्रकाशन के संपादक शैलेष भारतवाशी ने कहा कि अगर आप स्वयं के आलोचक हैं तो मानकर चलिए आप जीवन में बेहतर करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. किसी भी लेखक या रचनाकार को अपने लेखन की परख खुद करनी चाहिए. हिंदी युग्म नए लेखकों को मौका देता है. लेकिन लेखक को अपने लेखन पर पहले यकीन होना चाहिए. तभी वह लेखक बन सकता है.