रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल असम चुनाव में कांग्रेस के पर्यवेक्षक/समन्वयक हैं. उनके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की एक पूरी टीम लगी हुई है असम में चुनाव के नतीजे जो भी हों किन्तु छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए यह चुनाव एक और कारण से महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
कृपया इस बात का बुरा ना माने, अपवाद हैं, किन्तु यह एक कड़वी सच्चाई भी है कि छत्तीसगढ़ के बाहर हमारी छत्तीसगढ़ियों की बात चलने पर प्रायः जो आम व्यक्ति होते हैं, वे दो समूहों से ही छत्तीसगढ़ को identify करते रहे हैं. छत्तीसगढ़िया मजदूर और माओवादी. आज भी बताओ कि छत्तीसगढ़ से हैं तो लोग पूछ लेते हैं , झारखण्ड से हैं क्या ? राज्य के बाहर हमारी छवि एक पिछड़े हुए, नक्सल प्रभावित राज्य की ही अधिक रही है. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. असम चुनाव : राहुल गांधी और सीएम भूपेश बघेल ने मजदूरों के साथ किया भोजन …
इस परिप्रेक्ष्य में जब राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ के लोगों की एक टीम के कार्यों की चर्चा, चुनाव प्रबंधन और चुनावी रणनीति के लिए होने लगती है तो सुखद आश्चर्य होता है. खासकर से तब जब यह डोमेन पिछले कुछ वर्षों से अमित शाह जी का डोमेन ही मान लिया गया है. ‘थोड़ा सा और दम ,असम जीत रहे हैं हम’ जैसे तुरंत लोकप्रिय हो जाने वाले नारे देना हो या फिर, बीजेपी द्वारा की गयी घोषणा- असम में बीजेपी 100 सीटें जीतेगी, को बूमरैंग कर देना हो यह कहकर कि ये कांग्रेस के लिए की गयी घोषणा है. असम में छत्तीसगढ़ की टीम लगातार ये अहसास दिला रही है कि चुनाव प्रबंधन में वे किसी को भी टक्कर दे सकते हैं.
‘भूपेश बघेल ने संभाली असम चुनाव की कमान, बीजेपी पर भारी पड़ेगी उनकी बूथ लेवल स्ट्रैट्जी’ , ‘From yatras to shivirs, Baghel replicates his Chhattisgarh model to take on BJP in Assam’ राष्ट्रीय स्तर के न्यूज़ पेपर्स की हेडलाइंस लगातार , छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति की क्षमता और महत्ता के राष्ट्रीय स्तर पर रिकग्निशन का सन्देश दे रही हैं.
ऐसा नहीं कि सभी लोग मौके पर चौका लगा लेते हैं. याद करिये ऐसा ही एक मौक़ा, मिला था ज्योतिरादित्य सिंधिया जी को जब उन्हें उत्तर प्रदेश चुनाव का प्रभारी बनाया गया था, प्रियंका गांधी जी के साथ. उनकी पहली जो संयुक्त रैली हुई थी, उसमें महाराजा का ग्लैमर प्रियंका गांधी से कहीं ज्यादा था. किन्तु महाराजा ये नहीं समझ पाए कि लोकतंत्र में सोना बनने के लिए , जमीनी संघर्ष की आग में तपना पड़ता है. अपने पूर्वजों की लीगेसी के कम्फर्ट जोन से निकल कर अपनी खुद की लेगेसी बनाने का एक स्वर्णिम अवसर था , उनके लिए उत्तर प्रदेश. किन्तु उन्होंने पहले को चुना और आज एक छोटे से भौगोलिक क्षेत्र में कुछ विधान सभाओं तक अपने प्रभाव क्षेत्र को सीमित कर लिया है.
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भूपेश जमीनी संघर्ष की आग में तप कर निकले हैं और शायद इसीलिए अनजाने रास्तों पर चलने में भी रत्ती भर नहीं हिचकिचाते और चलते हैं तो बचाव की मुद्रा में नहीं, पूरी आक्रामकता के साथ चलते हैं. और उनकी वही तासीर असम चुनावों में भी दिख रही है.
असम की सड़कों पर पैदल चलते हुए सब्जी वालों से बात करते समय, गली गली में खुद पार्टी के पर्चे बांटते समय, भूपेश बघेल एक स्वाभाविक जन नेता की अपनी छवि पर खरे उतरते दीखते हैं. चाहे भाषा , संस्कृति , खानपान में एक भिन्न राज्य में मंच से जनता की भरी भीड़ को पूरे आत्मविश्वास के साथ सम्बोधित करना हो और खूब तालियां भी बजवा लेना हो या फिर असम के स्थानीय मुद्दों से लेकर राष्ट्रीय मुद्दों तक पर विपक्षी नेताओं को घेरते समय वे आत्मविश्वास से भरे हुए जीतने के प्रति आश्वस्त नेता के रूप में अपने को स्थापित करते हैं.
आप और मै , सब अलग अलग नेताओं , राजनितिक दलों , विचारधारों के समर्थक हो सकते हैं , किन्तु असम चुनावों के सन्दर्भ में एक बात तो माननी पड़ेगी कि एक not so familiar terrain में लगी बाजी को स्वीकार करके भूपेश सबसे बड़े खिलाड़ी तो बन गए हैं. यह देखना सुखद अहसास देता है कि हमारे ही बीच का एक छत्तीसगढ़ी व्यक्ति , चुनौतिओं को स्वीकार करने का साहस रखता है , कम्फर्ट जोन से बाहर सहजता से आता है , जिसकी नेतृत्व क्षमता छत्तीसगढ़ की सीमाओं के बाहर भी प्रभावी है , और जो एक विजेता की तरह लड़ता है.
असम का छत्तीसगढ़ से पुराना नाता है. अंग्रेजों के समय में छत्तीसगढ़ से असम वहां के चाय बागानोंमें मजदूरी करने गए हज़ारों लोग , उन छत्तीसगढ़ीओं की संख्या अब लाखों में हो गयी है. इंटरनेट पर ढूंढें तो पता लगता है असम में एक ‘सतनामी गांव’ भी है. 1930 में गुरु अगमदास जी , असम गए सतनामी पंथ के प्रचार के लिए. छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद मिनीमाता जी असम में ही जन्मी थीं और गुरु अगम दास की पत्नी थीं. एक बार फिर छत्तीसगढ़ से एक नेता, असम में हैं प्रचार के लिए. इस बार प्रचार प्रजातंत्र में जनदेवता का आशीर्वाद पाने के लिए है. देखना इंटरेस्टिंग होगा कि यह छत्तीसगढ़ी कनेक्शन असम के निकट चुनावों पर क्या प्रभाव डालता है.
चुनाव के नतीजे जो भी हों, हम जैसे आम छत्तीसगढ़ी व्यक्ति को उससे क्या ही फर्क पड़ना है किन्तु इन चुनावों में एक छत्तीसगढ़ी व्यक्ति ने जिस प्रकार से छत्तीसगढ़िया की प्रतिभा और क्षमता को स्थापित किया है, उससे हम सब छत्तीसगढ़ियों के आत्मविश्वास में थोड़ी सी सही, वृद्धि तो होती है, थोड़ा सा ही, गर्व तो होता है.
(लेखिका- प्रोफेसर अनुपमा सक्सेना. ये लेखिका की निजी राय है. लेखिका गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र की प्रोफेसर हैं. )
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