रामायण में प्रसंग आता है कि भगवान श्रीराम ने शबरी के झूठे बैर खाएं थे. लेकिन ऐसी बहुत सी बाते है तो शायद आप मां शबरी के बारे में नहीं जानते होंगे. तो चलिए हम आपको आज कुछ खास बातें उनकी बताते है.
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पौराणिक संदर्भों के अनुसार शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा. कहते हैं कि उसका विवाह दुराचारी और अत्याचारी व्यक्ति से हुआ था, जिससे तंग आकर श्रमणा ने ऋषि मातंग के आश्रम में शरण ली थी. दूसरी मान्यता के अनुसार उसके पिता ने जब उसका विवाह किया तो उस दौरान पशु बलि देखकर उसके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया था.
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ऋषि मातंग के आश्रम में शबरी ऋषि-मुनियों की सेवा करती और प्रवचन सुनती. वहां रहकर उसके मन में प्रभु भक्ति जागृत हुई. मतंग ऋषि शबरी के गुरु थे. मतंग ऋषि के यहां माता दुर्गा के आशीर्वाद से जिस कन्या का जन्म हुआ था वह मातंगी देवी थी. दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या देवी मातंगी ही है. यह देवी भारत के आदिवासियों की देवी है. Click- (भगवान राम को लेकर ‘जया किशोरी जी’ ने गाया ये सुंदर भजन)
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ऋषि मतंग ने शबरी से एक समय कहा था कि तुम्हारी कुटिया में प्रभु श्रीराम आएंगे तभी तुम्हारे मोक्ष का मार्ग खुलेगा. बस तभी से शबरी प्रभु श्रीराम के आने का इंतजार कर रही थी. इंतजार करते-करते वह बुढ़ी हो गई लेकिन उसने आस नहीं छोड़ी थी.
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तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए श्री राम और लक्ष्मण चले सीता की खोज में. जटायु और कबंध से मिलने के पश्चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे. रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी को ढूंडने लगे. लोगों से जब शबरी को पता चला की दो राजकुमार उन्हें ढूंढ रहे हैं तो शबरी व्याकुर हो ऊठी. वह समझ गई की मेरे प्रमु श्रीराम आ गए हैं. राम और शबरी के मिलन का तुलसीदासजी ने बहुत ही भावुक वर्णन किया है. शबरी की कुटिया में पहुंचने के बाद राम को देखकर शबरी की आंखों से आंसू बहने लगे. उनके गुरु की भविष्यवाणी सही हुई.
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शबरी के पास वन-फलों की अनगिनत टोकरियां भरी थीं. उसमें से उन्होंने श्रीराम को बेर खिलाएं. कहते हैं कि कोई बेर खट्टा न हो इसलिए शबरी ने प्रत्येक बेर को पहले थोड़ासा चखा फिर ही श्री राम को दिया और श्री राम ने भी बड़े प्रेम से उसे खाया. तब श्री राम ने कहा कि मैंने वन में कई जगह और आश्रमों के फल खाए लेकिन इस इस बेर के फल में जो मिठास और रस है उसकी तुलना किसी ने नहीं की जा सकती. श्री राम ने यह बेर खाकर शबरी को नवधा भक्ति की शिक्षा दी और शबरी को परमधाम मिला. आजकल शबरी की कुटिया को शबरी का आश्रम कहा जाता है, जो केरल में स्थित है. (गुरुदेव का भजन… जी जी रं, जी जी रं, जी जी रं) सुना क्या ? नहीं तो यहां करें क्लिक
शबरी या मतंग ऋषि के आश्रम के क्षेत्र को प्राचीनकाल में किष्किंधा कहा जाता था. यहां की नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है. केरल का प्रसिद्ध ‘सबरिमलय मंदिर’ तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है. शबरी का भक्ति साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है.