रायपुर. पलारी क्षेत्र के 27 वर्षीय दृष्टिहीन छात्र उत्तम कुमार वर्मा ने जीवन में आए कठिन संघर्षों से जूझते हुए सफलता हासिल की है. सफलता की कहानी अब बाकी लोगों के लिए मील का पत्थर साबित हो रही है. कहते हैं न अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात आपको वो चीज दिलाने में जुट जाती है, कुछ ऐसा ही बलौदाबाजार जिले के ग्राम दतान निवासी उत्तम कुमार के साथ हुआ है.

उत्तम कुमार वह शख्स है, जो बचपन से पूर्णतः नेत्रहीन छात्र रहते हुए तैयारी की और अपनी मेहनत से इस मुकाम पर पहुंचा है कि वह अब अपने ही जिले बलौदाबाजार के डीके स्नातकोत्तर महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर (इतिहास) के पद पर नियुक्त हुआ है. उनका यहां तक का सफर काफी रोमांचक है. उत्तम कुमार ने अपनी सक्सेस स्टोरी साझा करते हुए कहा कि मुझे बड़ा गर्व महसूस हो रहा है कि इस ग्राम दतान ने एक असिस्टेंट प्रोफेसर को जन्म दिया है. अगर मेरी इस कहानी और उनके सफर से एक भी व्यक्ति इंस्पायर हो जाता है तो मुझे बहुत खुशी महसूस होगी.

कठिन परिस्थितियों में भी नहीं मानी हार
छोटे से गांव से निकलकल रायपुर तथा रायपुर से दिल्ली और दिल्ली से निकलकर चंडीगढ़ तक का सफर काफी प्रेरणादायक है. रायपुर के शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधितार्थ विद्यालय में पढ़े उत्तम कुमार ने अच्छे ग्रेड के साथ 12वीं की परीक्षा को पास किया था, लेकिन परिस्थितियों को कुछ और ही मंजूर था. उनके बाकी साथियों ने जहां छत्तीसगढ़ में पढ़ाई की, वहीं उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज काॅलेज से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया. उन्होंने बाकायदा कंप्यूटर की ट्रेनिंग पूरी की. साथ ही वे एंड्रॉयड फोन भी चलाना सीखा. किसी ने उनका मार्गदर्शन नहीं किया है. उत्तम बस यूं ही आगे बढ़ता चलता गया और जीवन में आई विपरीत परिस्थितियों से सीख लेता गया. उनका ध्येय एक ही था एक कुशल शिक्षक बनना. और आज प्रोफेसर के पद पर नियुक्त होकर उन्होंने उसे पूरा कर दिखाया है.

हंसराज काॅलेज से जेएनयू तक का सफर
हंसराज कॉलेज ने उसे यह समझाया कि किस तरह से अच्छा वक्ता बन सकते हैं. अध्ययन के दौरान उत्तम को यह समझ में आ चुका था कि बाहर भी एक बहुत बड़ी दुनिया है. उत्तम को जेएनयू जाने का मौका मिला पर वहां उन्होंने अपने आप को सबसे अलग पाया. उसे हिचकिचाहट होती थी और इस बात का भ्रम और डर दोनों ही था कि शायद उत्तम जेएनयू के वातावरण में खुद को ढाल न सके. उत्तम की अंग्रेजी भी अच्छी नहीं थी, लेकिन उनके कई मित्रों ने अपने डर पर उन्हें विजय प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया.

उत्तम के पिता सामान्य किसान और मां गृहणी
बचपन में जब रायपुर के दृष्टि बाधित स्कूल में उत्तम का दाखिला हुआ तो वे स्कूल छोड़कर अपना घर जाना चाहते थे. उनको पढ़ने में बिलकुल मन नहीं लगता था. उनके पिताजी कृषक हैं. अपने घर तथा पास के अन्य गांवों में अखंड नवधा रामायण में टीकाकार का काम करते हैं. पिता के दिए हुए संस्कार उत्तम में कूट कूट कर भरे थे. उन्होंने रामायण के दोहा और चैपाई अपने पिताजी के माध्यम से कंठस्थ कर लिए थे. ये उनकी सबसे बड़ी खासियत थी. उनकी मां गृहणी हैं.

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
जिंदगी में आई इतनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी जिस तरह से उत्तम ने अपनी सफलता की कहानी बुनी है उसने इस बात को भी सिद्ध कर दिया है कि लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. बता दें कि उत्तम कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं. संगीत से उन्हें काफी ज्यादा लगाव है. वहीं उनका चंडीगढ़ विवि से पीएचडी जारी है, वे यथा शीघ्र पीएचडी भी पूर्ण कर लेंगे. बीते मंगलवार को ही उत्तम का असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति पत्र आया है.