डिलेश्वर देवांगन, बालोद। वैसे मजदूरों के साथ अक्सर अन्याय ही होता आया है. चाहे वो फिर फैक्ट्रियों के मजदूर हों या फिर किसी ठेकेदार के अंडर में मजदूरी कर रहे मजदूर. इनसे दिन-रात मेहनत कराने के बाद भी कम पैसे ही दिए जाते हैं, फिर भी मजदूर बेचारा डरा सहमा सा कम पैसे में गुजरा कर परिवार को पालता है. कुछ इसी तरह की तस्वीरें बालोद जिले में देखने को मिली, जहां एक दबंग ठेकेदार मजदूरों को प्रताड़ित और धमकी देकर काम कराता है. रेलवे सफाई कर्मियों के हक पर डाका डालता है. आधा से ज्यादा मजदूरी हजम कर जाता है, जब पत्रकार सवाल करते हैं, तो धमकी देता है.
दरअसल, चार साल पहले लगभग 15 लोग दल्लीराजहरा रेलवे कॉलोनी की सफाई करने और 4 लोग रेलवे स्टेशन के भीतर सफाई करने के लिए एक निजी कंपनी की ओर से नियुक्त किए गए थे. जैसे ही काम में ज्वॉइनिंग लिया गया, उसके बाद सभी कर्मचारियों का पासबुक और एटीएम कार्ड कंपनी के ठेकेदार ने रख लिया.
कर्मचारियों को बताया तक नहीं कि क्यों उनका पासबुक और एटीएम ठेकेदार ने रखा है. कुछ महीने बाद एक कर्मचारी के मोबाइल पर जब उसके खाते से पैसे निकलने का मैसेज आता है, तब उन्हें पता चलता है कि उन्हें जो मजदूरी के एवज में 175 रूपये भुगतान किया जाता है. उससे दोगुना से अधिक राशि 452 रूपये उनके खाते में आती है, जिसे ठेकेदार गटक जाते हैं.
पैसे पूरे नहीं मिलने की जानकारी के बाद कर्मचारी संघ के अध्यक्ष ने कई बार क्षेत्रिय आयुक्त को भी पत्र लिखा, लेकिन एक भी बार जवाब नहीं आया. कर्मचारियों की मजबूरी है, उन्हें अपना परिवार चलाना है तो उतने दर में ही काम करने पर मजबूर है, क्योंकि उनकी आवाज कोई सुनता नहीं. अगर रेलवे के कोई बड़े अधिकारी आते हैं, तो पहले ही सभी कर्मचारियों को धमका दिया जाता है. उनके सामने मुंह नहीं खोलेंगे, .नहीं तो काम से निकाल दिया जाएगा. अगर कोई अधिकारी मानदेय के बारे में पूछता है तो 452 रूपये के हिसाब से पैसे मिलने की बात पहले ही पढ़ा दी जाती है.
बता दें कि जब लल्लूराम डॉट कॉम के संवाददाता ने ठेकेदार से फोन के माध्यम से मामले की जानकारी मांगी, तो ठेकेदार आग बबूला हो गया. ठेकेदार संवाददाता से तू तड़ाक से बात करने लगा. इतना ही नहीं खुली धमकी भी दी है, जिसकी रिकॉर्डिंग लल्लूराम के पास मौजूद है.
बहरहाल, सफाईकर्मी दिन-रात कचरा ढोते हैं, तभी सफाई होती है. अगर देश में सफाई कर्मचारी नहीं हो तो पूरे देश में गंदगी फैल जाएगी, लेकिन इन सफाई कर्मचारियों की मेहनत को ठेकेदार मजबूरी समझने लगे हैं. आवाज बुलंद करने से पहले दबा दी जाती है. मजदूरी तो मजबूरी है. परिवार चलाना है, तो काम तो करना पड़ेगा. न पूरा पैसा मिलता है और न ही समय पर पैसा मिलता है. क्या इन मजदूरों को न्याय मिल पाएगा या फिर इसी तरह उम्मीदों के आसरे अपनी जिन्दगी को गुजारते रहेंगे.
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