रोहित कश्यप, मुंगेली। कोरोना महामारी के संकट काल में लोग इलाज के लिए सरकारी से लेकर निजी अस्पतालों में चक्कर लगा रहे हैं. इसके बाद भी अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे हैं. राजधानी व न्यायधानी से लेकर प्रदेश के तमाम छोटे-बड़े अस्पतालों में यही आलम हैं. अगर कुछ निजी अस्पतालों में अगर बेड मिल भी जा रहे हैं तो वहां इलाज के नाम पर जमकर लूट खसोट की जा रही है. जिसके चलते चिकित्सा जगत बदनाम हो रहा है. हद तो तब हो जाती है जब किसी गरीब की कोरोना से मौत होने पर उसके परिवार को शव देने से इंकार कर दे.

ऐसा ही एक शर्मनाक मामला मुंगेली के अवध लाईफ केयर हॉस्पिटल से सामने आया है. जहां रानी डेरा निवासी यशोदाबाई टंडन को तबियत खराब होने पर 12 अप्रैल को जिला अस्पताल में दाखिल कराया गया था. कोरोना टेस्ट कराने पर रिपोर्ट  पॉजिटिव निकला. तबियत बिगड़ने पर परिजनों के द्वारा मरीज को निजी हॉस्पिटल अवध लाइफ केयर  में 14 अप्रैल को भर्ती कराया गया था. जहां 16 अप्रैल शुक्रवार शाम को उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. जिसके बाद अस्पताल प्रबंधन के द्वारा कोरोना मरीज होने का हवाला देते हुए शव देने से इंकार कर दिया गया.

शनिवार सुबह जब परिजनों के द्वारा मृतका के शव को डिस्चार्ज करने कहा गया तब 59 हजार का बिल अस्पताल प्रबंधन के द्वारा थमा दिया गया. मृतका के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन के द्वारा अनाप-शनाप बिल उन्हें भुगतान करने कहा जा रहा था और भुगतान नहीं करने पर शव देने से इंकार किया गया.

परिजनों का यह भी कहना है कि शुक्रवार शाम को मौत हो जाने के बाद शव को अस्पताल में जो रखा गया उसका भी बिल जोड़ दिया गया था. शनिवार सुबह 10 बजे से लेकर करीब शाम 5 बजे तक परिजनों के द्वारा जनप्रतिनिधि से लेकर कई अधिकारियों के माध्यम से फीस में कटौती करने व शव को देने की मांग को लेकर गुहार लगाई. मगर मानवता मर चुकी अस्पताल प्रबंधन ने एक न सुनी. अस्पताल में माहौल बिगड़ता देख आखिर में मुंगेली जिला प्रशासन के अधिकारियों ने हस्तक्षेप कर शव को अस्पताल प्रबंधन से परिजनों को दिलाया.

मुंगेली एसडीएम नवीन कुमार भगत ने बताया कि शीर्ष अधिकारी जिले के संयुक्त कलेक्टर तीर्थराज अग्रवाल ने इस मामले पर अस्पताल प्रबंधन से मामले की पटाक्षेप के लिए बात की और परिजनों के द्वारा  25 हजार इलाज और 10 हजार मेडिसिन का बिल भुगतान किया गया, तब कहीं जाकर शव को परिजनों को दिया गया.

इस घटना से एक बात तो जाहिर है कि निजी अस्पतालों की मनमानी पर स्वास्थ्य विभाग एवं जिला प्रशासन शिकंजा कस पाने में नाकाम है. इसके अलावा चिंता का विषय यह भी है कि संकट की इस घड़ी में निजी अस्पताल मनमानी और लूट खसोट करने पर उतारू यह बिल्कुल भी जायज नहीं है.