CG News : जीतेन्द्र सिन्हा, राजिम. ब्लॉक मुख्यालय के अंतिम छोर पर स्थित ग्राम पंचायत लचकेरा में बीते पखवाड़े से सूखा नदी में अवैध रेत उत्खनन और डंपिंग का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि रेत माफिया दिन में नदी से रेत निकालकर ट्रैक्टर से ऊपर डंप करते हैं. इसके बाद रात के अंधेरे में हाइवा वाहनों के जरिए उसका परिवहन किया जाता है.

ग्राम पंचायत लचकेरा के सरपंच अरुण कुमार ध्रुव ने इसकी लिखित शिकायत तहसीलदार फिंगेश्वर से की थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. जबकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के स्पष्ट निर्देशानुसार 15 जून से 15 अक्टूबर तक नदी-नालों से रेत उत्खनन और परिवहन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है. इसके बावजूद अवैध रेत खनन बदस्तूर जारी है, जिससे प्रशासनिक निष्क्रियता और मिलीभगत की आशंका को बल मिल रहा है.

रेत माफियाओं के आगे प्रशासन बेबस?

स्थानीय लोगों का कहना है कि रेत माफिया पूरी तरह बेखौफ है. आरोप लगाया कि अधिकारियों की मिलीभगत से यह धंधा चल रहा है. इसे लेकर कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन अब तक न तो एफआईआर दर्ज हुई और न ही कोई वाहन जब्त किया गया. ग्रामीणों का आरोप है कि “यह छत्तीसगढ़ है, यहां NGT की नहीं, अधिकारियों की मनमर्जी चलती है.”

नदी में दफन शव भी असुरक्षित

लचकेरा और आसपास के गांवों में लोग अंतिम संस्कार के बाद शवों को नदी किनारे दफनाते आ रहे हैं. लेकिन कुछ वर्ष पहले रेत माफियाओं की खुदाई के दौरान दफन शवों के कंकाल बाहर आ गए थे, जिससे गांव में भारी बवाल हुआ था. इसके बाद ग्रामीणों ने स्वयं अवैध उत्खनन पर रोक लगाने की काफी कोशिश भी की, लेकिन वह विफल रही. माफियाओं की ताकत और प्रशासनिक चुप्पी के आगे अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लगा सकी.

सूखा नदी : जीवनदायिनी जलधारा पर संकट

फिंगेश्वर क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लिए सूखा नदी न केवल भावनात्मक बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. खरीफ और रबी सीजन में नहरों और अन्य सिंचाई साधनों के अभाव में किसान इसी नदी से नलकूप के माध्यम से सिंचाई करते हैं. लेकिन अगर रेत की ऊपरी परत हटाई जाती रही, तो वाटर लेवल में भारी गिरावट आएगी और खेती पूरी तरह चौपट हो जाएंगे.

रात के अंधेरे में होता है खेल

स्थानीय सूत्रों की मानें तो रात होते ही रेत माफिया के लोग सक्रिय हो जाते हैं. पहले इलाके की रेकी की जाती है और फिर हाइवा वाहन में रेत भरकर सीमा क्षेत्र से बाहर भेज दिए जाते हैं. यह पूरा खेल इतनी शातिर तरीके से होता है कि पुलिस और प्रशासन को भनक तक नहीं लगती. 

राजनीतिक संरक्षण की चर्चा

स्थानीय लोगों का दावा है कि रेत माफिया को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, जिसके चलते न तो उन पर छापा मारा जाता है और न ही कोई गिरफ्तारी होती है. खनिज और राजस्व विभाग ने कुछ ही कार्रवाई की है, वो भी केवल औपचारिकता निभाने तक सीमित है.

विधायक की चेतावनी भी बेअसर

राजिम के ग्राम पितईबंद में रेत माफिया के गुर्गों ने 9 जून को पत्रकारों से  मारपीट की थी. घटना के बाद राजिम विधायक रोहित साहू ने गरियाबंद कलेक्टर और एसपी को कड़ी चेतावनी दी थी और अवैध रेत खदानों को तत्काल बंद कराने के निर्देश दिए थे. इसके बाद संयुक्त टास्क फोर्स का गठन भी किया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई असर देखने को नहीं मिला.

क्या प्रशासन नींद से जागेगा?

फिंगेश्वर की सूखा नदी, जो कभी जीवनदायिनी मानी जाती थी, अब अवैध रेत उत्खनन के चलते अस्तित्व संकट में है। यदि समय रहते प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई, तो आने वाले वर्षों में यह जलधारा केवल नक्शे में ही दिखाई देगी। अब देखना यह है कि प्रशासन और सरकार कब तक आंख मूंदे बैठी रहती है, और क्या वाकई में कानून का राज कायम होता है या माफिया राज यूं ही चलता रहेगा.

मामले में जिला खनीज आधिकारी रोहित साहू ने मौके पर पहुंकर कार्रवाई किए जाने की जानकारी दी है.